मध्य प्रदेश में एक जैसे नाम वाले मतदाताओं की जांच
प्रदेश कांग्रेस ने भी 53 विधानसभा क्षेत्रों में 17 लाख से ज्यादा डुप्लीकेट नाम होने की शिकायत दर्ज कराते हुए मतदाता सूची पर सवाल उठाया है।
नईदुनिया, भोपाल। मध्य प्रदेश में मतदाता सूची में दर्ज एक जैसे नाम वाले मतदाताओं की पड़ताल शुरू हो गई है। यदि इसमें गड़बड़ी पाई जाती है तो नाम हटाए जाएंगे। मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी कार्यालय ने इस काम को अंजाम देने के लिए पूरी टीम लगा दी है। गौरतलब है कि प्रदेश कांग्रेस ने भी 53 विधानसभा क्षेत्रों में 17 लाख से ज्यादा डुप्लीकेट नाम होने की शिकायत दर्ज कराते हुए मतदाता सूची पर सवाल उठाया है। इससे मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी कार्यालय और भी चौकन्ना हो गया है।
मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी वीएल कांताराव ने बताया कि एक जैसे नाम वाले मतदाताओं की जांच की जा रही है। ये हमारी व्यवस्था का हिस्सा भी है। कांग्रेस की ओर से भी ऐसी ही शिकायत की गई है।
पूर्व मंत्री के मामले में अफसर निलंबित
टीकमगढ़ की मतदाता सूची से पूर्व मंत्री यादवेंद्र सिंह का नाम हटाने के मामले में टीकमगढ़ कलेक्टर ने संबंधित बूथ लेवल ऑफिसर को निलंबित कर दिया है। भोपाल की नरेला विधानसभा की मतदाता सूची में अब भी 11 हजार से ज्यादा नाम बोगस होने की शिकायत को जांच के लिए भेज दिया है।
गड़बड़ी पकड़ने के लिए कांग्रेस ने ली एजेंसी की सेवा
कांग्रेस का मानना है कि मतदाता सूची में जिस तरह से बड़े पैमाने पर बोगस मतदाताओं के नाम सामने आ रहे हैं, उससे किसी षड्यंत्र की आशंका से इन्कार नहीं किया जा सकता है। यही वजह है कि पार्टी ने मतदाता सूची की बारीकी से जांच के लिए एक एजेंसी की मदद भी ले ली है, जो सभी 230 विधानसभा सीट की मतदाता सूची की जांच करके रिपोर्ट देगी। यह एजेंसी विशेष सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करके एक-एक विधानसभा क्षेत्र की मतदाता सूची की पड़ताल कर रही है।
31 जुलाई को जारी सूची की जांच में पकड़ी गड़बड़ी
द पॉलिटिक्स डॉट इन नामक कंपनी ने 31 जुलाई को जारी हुई मतदाता सूची में से भोपाल, इंदौर, जबलपुर, देवास, मुरैना और ग्वालियर जिले की मतदाता सूची की जांच की। इसमें लगभग 17 लाख से ज्यादा एक जैसे नाम, रिश्तेदारी और लिंग व उम्र के मतदाताओं की जानकारी सामने आई। इसके आधार पर कांग्रेस के प्रतिनिधिमंडल ने मंगलवार को सभी 53 विधानसभा क्षेत्र के बोगस मतदाताओं से जुड़ी जानकारी की सीडी बनाकर मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी वीएल कांताराव को जांच के लिए सौंपी थी।