मध्य प्रदेश चुनाव: चुनिंदा सीटों पर परिवार ही सब-कुछ, सियासत को बना लिया विरासत
मध्य प्रदेश में कई विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां परिवार ही सब-कुछ है। सियासत यहां विरासत बन गई है। जहां माता या पिता विधायक रहे, वहां अब बेटा या बेटी विधायक बनकर राजनीति कर रहे हैं।
वैभव श्रीधर, भोपाल। मध्य प्रदेश में कई विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां परिवार ही सब-कुछ है। सियासत यहां विरासत बन गई है। जहां माता या पिता विधायक रहे, वहां अब बेटा या बेटी विधायक बनकर राजनीति कर रहे हैं। विपरीत समय में भी यहां के मतदाताओं ने इनका साथ नहीं छोड़ा।
फिर चाहे अर्जुन सिंह का क्षेत्र चुरहट हो या फिर दिग्विजय सिंह का राघौगढ़। इसी तरह लक्ष्मीनारायण पांडे, सुंदरलाल पटवा, वीरेंद्र कुमार सकलेचा, कैलाश जोशी, कैलाश सारंग या फिर निर्भय सिंह पटेल हों, इनके पुत्र-पुत्री भी विरासत संभाल रहे हैं। इस बार भी चुनाव में कुछ ऐसी ही तस्वीर बनती नजर आ रही हैं।
मप्र की राजनीति में स्थापित नेताओं के बाद उनकी परंपरागत सीट पर परिवार ही सब-कुछ है। संविद सरकार में जुलाई 1967 से मार्च 1969 तक मुख्यमंत्री रहे गोविंद नारायण सिंह का परिवार राजनीति में सक्रिय है। हर्ष सिंह रामपुर बघेलान सीट से विधायक और शिवराज सरकार में मंत्री हैं। इनके भाई धु्रवनारायण सिंह भोपाल की मध्य विधानसभा सीट से विधायक रह चुके हैं।
एक अन्य भाई अशोक सिंह बसपा से भोपाल लोकसभा का चुनाव लड़ चुके हैं। इसके अलावा दिवंगत नेता हरवंश सिंह के पुत्र रजनीश सिंह केवलारी से विधायक हैं तो प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और हिमाचल प्रदेश की राज्यपाल रहीं दिवंगत उर्मिला सिंह के पुत्र योगेंद्र सिंह ने उनकी राजनीतिक विरासत संभाली।
लंबे समय तक विधायक और मंत्री रहे इंद्रजीत पटेल के पुत्र कमलेश्वर पटेल, पटवा सरकार में मंत्री रहे निर्भय सिंह पटेल के पुत्र मनोज पटेल, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष ईश्वरदास रोहाणी के पुत्र अशोक रोहाणी, दिलीप सिंह भूरिया की पुत्री निर्मला भूरिया, विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे सत्यदेव कटारे के पुत्र हेमंत कटारे, प्रेमसिंह दत्तीगांव के पुत्र राजवर्द्धन सिंह दत्तीगांव, लिखीराम कांवरे की बेटी हिना कांवरे सहित कई ऐसे नाम हैं जो माता-पिता की राजनीतिक विरासत को संभाल चुके हैं।
कैलाश जोशी/दीपक जोशी
जून 1977 से जनवरी 1978 तक मुख्यमंत्री रहे कैलाश जोशी के पुत्र दीपक जोशी ने पिता की विरासत संभाली। पहले पिता की सीट बागली और फिर हाटपीपल्या से विधायक चुने गए। मौजूदा सरकार में मंत्री भी बने। तीसरी बार चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी।
वीरेंद्र कुमार सकलेचा/ओमप्रकाश सकलेचा
जनवरी 1978 से जनवरी 1980 तक मुख्यमंत्री रहे। बेटे ओमप्रकाश सकलेचा नीमच की जावद सीट से भाजपा विधायक। इस बार फिर चुनाव मैदान में ताल ठोंकने की तैयारी।
सुंदरलाल पटवा/सुरेंद्र पटवा
पहली पारी में जनवरी 1980 से फरवरी 1980 और दूसरी बार मार्च 1990 से दिसंबर 1992 तक मुख्यमंत्री रहे। भतीजे सुरेंद्र पटवा ने विरासत संभाली। भोजपुर विधानसभा से विधायक। शिवराज सरकार में राज्यमंत्री हैं।
अर्जुन सिंह/अजय सिंह
प्रदेश के तीन बार मुख्यमंत्री रहे अर्जुन सिंह के पुत्र अजय सिंह विंध्य की चुरहट विधानसभा क्षेत्र की नुमाइंदगी करते हैं। पिता ने जब कांग्रेस छोड़कर तिवारी कांग्रेस का दामन थामा था, तब भी अजय सिंह कांग्रेस के साथ जुड़े रहे। आज उनका प्रदेश कांग्रेस में अपना मुकाम है।
बृजमोहन मिश्रा/अर्चना चिटनिस
मार्च 1990 से दिसंबर 1993 तक विधानसभा अध्यक्ष रहे बृजमोहन मिश्रा की पुत्री अर्चना चिटनिस ने विरासत संभाली। बुरहानपुर से विधायक और शिवराज सरकार की वरिष्ठ मंत्री हैं।
दिग्विजय सिंह/जयवर्द्धन सिंह
दो बार के मुख्यमंत्री और प्रदेश में कांग्रेस की राजनीति के केंद्र माने जाते हैं। बेटे जयवर्द्धन सिंह ने राघोगढ़ विधानसभा क्षेत्र में पिता की विरासत संभाली। चुनावी रण में फिर ताल ठोंकने की तैयारी।
श्रीनिवास तिवारी/सुंदरलाल तिवारी
दिवंगत श्रीनिवास तिवारी दस साल तक विधानसभा अध्यक्ष रहे। पुत्र सुंदरलाल तिवारी ने विरासत संभाली। सांसद और फिर विधायक बने। अजय सिंह से तालमेल बैठाया। विधानसभा में मुखर रहने के लिए चर्चित। भतीजे विवेक तिवारी भी सिरमौर सीट से चुनाव लड़ चुके हैं पर अभी तक जीत नहीं मिली।
कैलाश सारंग/विश्वास सारंग
भाजपा नेता कैलाश सारंग ने 80 के दशक में भोपाल दक्षिण विधानसभा से उपचुनाव लड़ा था। पार्टी ने राज्यसभा भेजा। पुत्र विश्वास सारंग ने परिसीमन से बनी भोपाल जिले की नई सीट नरेला को कर्मभूमि बनाया। दो बार से विधायक और शिवराज सरकार में राज्यमंत्री हैं। चुनाव लड़ने को लेकर कोई संशय नहीं।
लक्ष्मीनारायण पांडेय/राजेंद्र पांडेय
लंबे समय तक मंदसौर लोकसभा क्षेत्र की नुमाइंदगी करने वाले लक्ष्मीनारायण पांडेय के पुत्र डॉ. राजेंद्र पांडेय जावरा क्षेत्र से विधायक हैं। फिर से चुनाव लड़ने की तैयारी।