Move to Jagran APP

MP : दस साल में कांग्रेस के पांच फीसदी वोट बढ़े, पर घटती गईं सीटें

इस बार कांग्रेस, सरकार के प्रति जनता का गुस्सा भुनाने में लगी है।

By Saurabh MishraEdited By: Published: Sat, 27 Oct 2018 08:59 AM (IST)Updated: Sat, 27 Oct 2018 08:59 AM (IST)
MP : दस साल में कांग्रेस के पांच फीसदी वोट बढ़े, पर घटती गईं सीटें
MP : दस साल में कांग्रेस के पांच फीसदी वोट बढ़े, पर घटती गईं सीटें

मनोज तिवारी, भोपाल। लगातार तीन विधानसभा चुनावों में हार का सामना कर रही कांग्रेस ने पिछले दो चुनाव में वोटों का प्रतिशत तो बढ़ाया है, लेकिन सीटें बढ़ाने में कामयाब नहीं हो सकी। 2003 की तुलना में कांग्रेस ने 2013 में पांच फीसदी वोट बढ़ाए, लेकिन सीटें कम होती चली गईं।

loksabha election banner

इस चुनाव में भाजपा के 30 प्रत्याशी ढाई हजार से भी कम वोटों के अंतर से चुनाव जीते। इस बार कांग्रेस, सरकार के प्रति जनता का गुस्सा भुनाने में लगी है। वह उन सीटों को लेकर गंभीर है, जिन पर कम वोटों से भाजपा को जीत मिली है। इस बार भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने वोट प्रतिशत को बरकरार रखने की है।

जनता, कर्मचारियों, व्यापारियों और वर्ग विशेष की नाराजगी के चलते इस बार वोट प्रतिशत को बरकरार रखना भाजपा के सामने बड़ी चुनौती रहेगी। जनता केंद्र और राज्य सरकारों के फैसले से खासी नाराज हैं। जिसके चलते छोटे राजनीतिक दल (सपाक्स पार्टी, जयस, सवर्ण समाज पार्टी) मैदान में उतर आए हैं।

इसके अलावा राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा), सीपीआई, सीपीएम, गोंगपा, बसपा, समाजवादी पार्टी भी सत्ताधारी दल का गणित बिगाड़ेंगे। विशेषज्ञ कहते हैं कि ऐसे दल दो-धारी तलवार हैं। किसे नुकसान पहुंचाएंगे, ये तय नहीं है, लेकिन भाजपा ऐसी परिस्थिति में अपना वोट प्रतिशत बरकरार रख पाई, तभी सत्ता में लौटेगी।

उधर, कांग्रेस के लिए वोटों का प्रतिशत बढ़ाना बड़ी चुनौती है। प्रदेश में भाजपा के खाते में ऐसी 11 सीटें हैं, जिनसे भाजपा के प्रत्याशी एक हजार से भी कम वोटों के अंतर से जीते हैं। कांग्रेस को इन्हीं सीटों पर फोकस करना पड़ेगा।

दो फीसदी वोटों के अंतर से सरकार बना रही थी कांग्रेस

वर्ष 1993 से 2013 तक के वोटिंग आंकड़ों पर नजर डालें, तो भाजपा और कांग्रेस को मिले वोटों की संख्या में ज्यादा अंतर नहीं रहा है, लेकिन 1998 तक कांग्रेस महज एक और दो फीसदी वोटों के अंतर से सरकार बना रही थी और 2003 के बाद भाजपा ने यह सिलसिला जारी रखा। 2003 में भाजपा का जीत का अंतर ज्यादा था।

भाजपा ने 42.50 फीसदी वोट लेकर सरकार बनाई थी। तब कांग्रेस को 31.59 फीसदी वोट मिले थे। भाजपा को 173 सीटें मिली थीं, जबकि कांग्रेस की सीटें 38 पर सिमट गई थीं। दस साल बाद सत्ता में लौटी भाजपा में अंदरुनी विवाद बढ़े और दिग्विजय सरकार से सत्ता छीनने की जिम्मेदारी निभाने वाली उमा भारती अपनों के ही फैसलों से नाराज हो गईं।

भाजपा से असंतुष्ट होकर उमा भारती वर्ष 2008 में भारतीय जनशक्ति पार्टी को लेकर चुनाव मैदान में उतरीं। इस पार्टी ने कांग्रेस से ज्यादा भाजपा को नुकसान पहुंचाया। जिससे भाजपा का वोट बैंक भी प्रभावित हुआ और सीटों का अंतर भी कम हो गया।

इस साल भाजपा को सीधा 30 सीटों का नुकसान हुआ था और 173 से घटकर 143 सीटें रह गईं। जबकि कांग्रेस की सीटों की संख्या 38 से बढ़कर 71 हो गई। इस बार बसपा ने भी भाजपा को नुकसान पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। 2008 के विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के वोटिंग प्रतिशत में महज 4.86 (क्रमश: 37.24 और 32.38 फीसदी) का अंतर था।

वोटों में आठ फीसदी का अंतर

वर्ष 2008 में वोटों का जो अंतर 4.86 फीसदी था, वह 2013 में बढ़कर लगभग दोगुना यानी 8.49 फीसदी हो गया। इस साल भाजपा ने वोट प्रतिशत और सीटें दोनों बढ़ाए। पार्टी ने 44.87 फीसदी वोट लेकर 165 सीटें हासिल कीं। जबकि कांग्रेस 36.38 फीसदी वोट लेकर 58 सीटों के साथ फिर से विपक्ष में पहुंच गई। पिछले चुनाव की तुलना में कांग्रेस को 13 सीटों का नुकसान हुआ।

उल्लेखनीय है कि 1998 में 320 सीटों के लिए हुए चुनाव में कांग्रेस ने 40.63 फीसदी वोट और 172 सीटें लेकर दूसरी बार सरकार बनाई थी। तब भाजपा को 39.03 फीसदी वोट और 119 सीटें मिली थीं। वर्ष 1990 में राम लहर में भी भाजपा ने वोटों में 5.51 फीसदी की बढ़त बनाई थी। तब भाजपा को 39.04 और कांग्रेस को 33.53 फीसदी वोट मिले थे।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.