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Jharkhand : महागठबंधन की मैच फिक्सिंग समझने लगे कार्यकर्ता

Lok Sabha Polls 2019. महागठबंधन के नेता रह-रहकर उम्मीदवारी को लेकर आए दिन नया-नया शिगूफा छोड़ रहे हैं। कभी कोई किसी सीट के लिए अड़ जा रहा है तो कभी कोई सीट के लिए।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Mon, 18 Mar 2019 09:48 AM (IST)Updated: Mon, 18 Mar 2019 09:48 AM (IST)
Jharkhand : महागठबंधन की मैच फिक्सिंग समझने लगे कार्यकर्ता
Jharkhand : महागठबंधन की मैच फिक्सिंग समझने लगे कार्यकर्ता

जमशेदपुर [वीरेंद्र ओझा]। लोकसभा चुनाव के लिए झारखंड के उम्मीदवारों की घोषणा अभी तक नहीं हुई है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ने यह तो घोषणा कर दी कि किसी का सांसद का टिकट नहीं कटेगा, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। उधर, महागठबंधन के नेता भी रह-रहकर उम्मीदवारी को लेकर आए दिन नया-नया शिगूफा छोड़ रहे हैं। कभी कोई किसी सीट के लिए अड़ जा रहा है, तो कभी कोई सीट के लिए।

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फिर अफवाह उड़ती है कि यह तो ड्रामा था, सिर्फ अपने कार्यकर्ताओं को संतुष्ट करने के लिए।मैच तो पहले से फिक्स हो चुका है। नाम न छापने की शर्त पर कार्यकर्ताओं ने कहा कि उन्हें पता है कि यह सब नाटक है। दिखावे के लिए अमुक सीट से दावेदारी पेश कर रहे हैं, लेकिन वास्तविकता यही है कि सबकुछ पहले से तय हो चुका है। उनका कहना है कि थोड़े दिन बाद जैसे ही नामों की घोषणा शुरू होगी, सब पता चल जाएगा।

डॉक्टर साहब ने अपनों में खेला इमोशनल कार्ड

जमशेदपुर लोकसभा क्षेत्र के लिए कांग्रेस समेत विपक्षी महागठबंधन की पहली पसंद डॉ. अजय कुमार हैं। इनके लिए कांग्रेसी शुरू से ही वकालत कर रहे हैं, लेकिन खुद डॉक्टर साहब ने पहले ही चुनाव लड़ने से मना कर दिया था। जमशेदपुर के कांग्रेसियों को मनाते हुए डॉक्टर साहब ने कहा कि वे किसी भी हाल में महागठबंधन को टूटने नहीं देना चाहते। इसके लिए यदि उन्हें अपनी सीट भी कुर्बान करनी पड़े, तो परवाह नहीं। वैसे यह शुरू से ही तय था कि जमशेदपुर लोकसभा सीट झामुमो के खाते में जाएगी, लेकिन कांग्रेसी कार्यकर्ताओं का जोश बनाए रखने के लिए खुद डॉक्टर साहब इस बात की हवा बनाते रहे कि पार्टी जो कहेगी, मानेंगे। कांग्रेस के एक बड़े कार्यकर्ता ने कहा कि डॉक्टर साहब ऐसा इमोशनल कार्ड खेला कि कार्यकर्ता ही नहीं, पूरा महागठबंधन उनके आगे नतमस्तक हो गया।


नजर नहीं आ रहे उभरते हुए नेता

हाल ही में एक राष्ट्रीय दल ने एक छोटे से अनजाने से उभरते हुए नेता को भारी-भरकम झंडा पकड़ा दिया गया। इसकी खबर जैसे ही बड़े नेताओं को लगी, उन्होंने झंडा फेंकने में देर नहीं लगाई। इससे उभरते हुए नेता परेशान हो गए। उन्हें समझ में नहीं आ रहा कि कर्ता-धर्ता की जिम्मेदारी कैसे निभाएं। उन्होंने सोचा था कि बनी-बनाई टीम है, किला फतह तो कर ही लेंगे। कुछ नहीं तो अपना वजूद तो बना ही लेंगे। लेकिन अब उन्हें जमीन के नीचे से धरती खिसकती नजर आ रही है। तीन महीने बाद उन्हें रिपोर्ट कार्ड देना है, उसमें कितना नंबर भरा जाएगा, यह सोचकर परेशान हैं। इसका नतीजा है कि वे घर से निकल ही नहीं रहे हैं। निकल भी रहे हैं कि नहीं, यह भी पता नहीं चल रहा है।


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