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Wayanad Lok Sabha से आसान नहीं राहुल की राह, 2014 में महज 20 हजार से जीती थी कांग्रेस

Wayanad Lok Sabha Election 2019 राहुल गांधी के लिए शाख का सवाल है। लिहाजा पार्टी ने यहां पूरी ताकत झोंक रखी है। बावजूद 2014 का प्रदर्शन राहुल की चिंता बढ़ा सकता है।

By Amit SinghEdited By: Published: Tue, 23 Apr 2019 09:05 AM (IST)Updated: Tue, 23 Apr 2019 09:06 AM (IST)
Wayanad Lok Sabha से आसान नहीं राहुल की राह, 2014 में महज 20 हजार से जीती थी कांग्रेस
Wayanad Lok Sabha से आसान नहीं राहुल की राह, 2014 में महज 20 हजार से जीती थी कांग्रेस

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। देश के बड़े नेताओं से जुड़ने के बाद किस तरह कोई अनजान सी जगह अचानक हाईप्रोफाइल हो जाती है, इस चुनावी सीजन में केरल के वायनाड से बड़ा इसका उदाहरण नहीं हो सकता। जबसे कांग्रेस अध्‍यक्ष राहुल गांधी ने यहां से चुनाव लड़ने का फैसला किया है, तब से यह सीट लगातार राष्‍ट्रीय और अंतरराष्‍ट्रीय सुर्खियों में बनी हुई है। यही कारण है कि आज जिन 117 सीटों के लिए चुनाव हो रहे हैं, उनमें सबसे अधिक चर्चा वायनाड की ही हो रही है।

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महज 20 हजार वोटों से जीती थी कांग्रेस पिछली बार

कांग्रेस की परंपरागत सीट होने के बावजूद वायनाड में वाम मोर्चा और भाजपा ने इस बार जिस तरह से राहुल गांधी की घेराबंदी की है, उसे देखते हुए कांग्रेस अध्‍यक्ष के लिए यहां भी चुनावी राह आसान नहीं रह गई है। वैसे भी 2014 में कांग्रेस के शानवास ने महज 20 हजार वोटों के अंतर से ही भाकपा नेता सत्यन मोकेरी को हराया था। इस बार भाकपा के तेजतर्रार छात्र नेता पी पी सुनीर और एनडीए के तुषार वेलापल्ली उनके खिलाफ खड़े हैं। वेलापल्ली भारत धर्म जन सेना के उम्मीदवार हैं, जो एनडीए का घटक दल है।

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राहुल ने वायनाड का इसलिए किया चयन

अमेठी और रायबरेली से सपा और बसपा ने भले ही अपना उम्‍मीदवार खड़ा नहीं किया है, लेकिन इस बार के संसदीय चुनाव में कांग्रेस के प्रति उनका रुख अच्‍छा नहीं रहा। ऐसे में अमेठी से भी खड़े राहुल के मामले में कांग्रेस कोई जोखिम लेना नहीं चाहती थी। हालांकि कांग्रेस ने इस मामले में कुछ और सफाई दी है। उसके अनुसार, यह सीट तमिलनाडुकर्नाटक और केरल की साझी संस्कृति की मिसाल है. केरल के पूर्व मुख्‍यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्‍ठ नेता ए के एंटनी के अनुसार, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु तीनों राज्यों से राहुल को चुनाव लड़ाने की भारी मांग थी. चूंकि, वायनाड इन तीनों राज्यों का केंद्र बिंदु है, इसीलिए इसे चुना गया।

मुस्लिम और ईसाइयों की अच्‍छी है आबादी

वायनाड की जमीनी हकीकत से भी उपरोक्‍त सवाल का जवाब मिल जाता है। यहां की 28.65% जनसंख्या मुस्लिम समुदाय और 21.34 फीसद ईसाइयों की है। दोनों मिलाकर लगभग 50 फीसद हो जाते हैं। माना जा रहा है कि दोनों का झुकाव राहुल की तरफ हो सकता है। वैसे यहां हिंदू आबादी भी लगभग 50 फीसद हैं।

राहुल को खल रही है शानवास की अनुपस्थिति

2014 में जीते कांग्रेस के दिग्‍गज नेता एमआई शानवास की 2018 में मृत्‍यु हो गई। वे 2009 में वायनाड सीट बनने के बाद से लगातार यहां से सांसद थे। उनकी अनुपस्थिति में इस सीट के गणित को समझना अब उतना आसान नहीं रह गया है।

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1951 के बाद केरल से पहली बार पीएम प्रत्‍याशी

1951 के बाद पहली बार प्रधानमंत्री पद का कोई प्रत्‍याशी केरल की 20 सीटों में से किसी सीट से चुनाव लड़ रहा है। ऐसे में केरलवासियों में वायनाड के प्रति एक तरह की दिलचस्‍पी भी देखी जा रही है।

वायनाड का भूगोल और गणि

वायनाड लोकसभा क्षेत्र पड़ोसी राज्‍य तमिलनाडु के नीलगिरि और कर्नाटक के मैसूर क्षेत्र से लगा हुआ है। खास बात यह भी है कि यहां पर महिला मतदाताओं की संख्या पुरुषों से ज्यादा है। इस सीट का गठन 2009 में किया गया था। कांग्रेस नेता एम आई शानवास तभी से यहां से सांसद थे। शानवास ने 2009 में भाकपा के एम रहमतुल्ला को डेढ़ लाख वोटों से हराया था। इसी तरह 2014 में शानवास ने भाकपा नेता सत्यन मोकेरी को 20 हजार वोटों के अंतर से पराजित किया।

वायनाड का चुनावी इतिहास

वायनाड सीट 2008 परिसीमन के बाद ही अस्तित्व में आई. 2009 और 2014 के चुनावों में यहां कांग्रेस की जीत हुई। कांग्रेस नेता शानवास ने 2009 में करीब 50% वोट हासिल किए थे, हालांकि 2014 के चुनावों में भी उन्हें 41% वोट ही मिले थे और जीत का अंतर भी महज 20 हजार तक सिमट गया था।

राहुल की उम्‍मीदवारी पर विवाद भी

केरल से राहुल की उम्‍मीदवारी पर विवाद भी है। एनडीए के उम्मीदवार वेलापल्‍ली ने राहुल गांधी के नामांकन की समीक्षा की भी मांग की। उन्होंने कहा है कि राहुल गांधी के पास विदेशी पासपोर्ट है, लेकिन नॉमिनेशन और एफिडेविट में इस बात का उन्‍होंने खुलासा नहीं किया है. ऐसे में उनका नोमिनेशन रद्द होना चाहिए।

चुनाव की विस्तृत जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें


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