Lok Sabha Election 2019: चुनावी माहौल में राजनीति और नेताओं से क्या चाहती है देश की युवा पीढ़ी?
भारत युवाओं का देश है। अमूमन राजनीति में युवाओं की दिलचस्पी कम देखी जाती है। इस बार के चुनाव में युवाओं की संख्यां पार्टी आइडियोलॉजी और कास्ट से ऊपर उठ कर मतदान के लिए तैयार है।
नई दिल्ली [यशा माथुर]। शिक्षा का बुनियादी ढांचा मजबूत हो। हेल्थ सेक्टर को बाजार न बनाया जाए। जमीनी हकीकतों को समझें नेतागण। युवाओं के सामने ऐसा परिदृश्य न पेश किया जाए जो झूठ हो और युवा वर्ग उसी के आधार पर अपनी सोच विकसित कर ले। राजनीति में युवाओं के प्रवेश को बाधित न किया जाए। अच्छे, सच्चे और ईमानदार नेता सामने आएं। यही है देश के उस युवा की राजनीति से आकांक्षाएं जो समाज को बदलने की ताकत रखता है।
चुनावों का मौसम है। राजनीति हर दिन नई करवट बदल रही है। युवाओं का देश है भारत और युवा भी राजनीति में दिलचस्पी दिखा रहे हैं। ऐसे में प्रश्न उठता है कि राजनीति और नेताओं से क्या चाहती है देश की नई पीढ़ी? किस तरह की उम्मीद है उसे इनसे।
सांसद बन जाना मात्र राजनीति नहीं
सबसे पहले तो यह देखने की बात है कि युवा राजनीति को किस संदर्भ में देखते हैं? क्या वे यह मानते हैं कि राजनीति का मतलब हमेशा यह नहीं होता कि वे किसी पॉलिटिकल पार्टी से जुड़ें। अगर वे चुप हैं तो चुप रहने की राजनीति कर रहे हैं। अगर आवाज उठा रहे हैं तो वह भी राजनीति है। राजनीति का मतलब इलेक्शन लडऩा और विधायक या सांसद बन जाना मात्र नहीं है बल्कि राजनीति समाज में बदलाव लाने की प्रक्रिया है। बिहार के वैशाली के रहने वाले शिवम कुमार इंजीनियर हैं लेकिन कॉरपोरेट जॉब छोड़ कर सिविल सेवा में आने की कोशिश कर रहे हैं ताकि समाज में बदलाव लाने की इच्छा पूरी कर सकें।
शिवम कहते हैं, 'किताबों में लिखा है कि राजनीति में जरूरी नहीं है कि आप रोल मॉडल बनें, आप अपने स्तर से किसी की मदद करें और किसी के लिए अच्छा करें। समाज में बदलाव लाएं लेकिन आज शब्द परिवर्तित हो गए हैं। मायने बदल दिए गए हैं। आज युवाओं को जो दिखाया जा रहा है वह जमीनी स्तर पर है नहीं लेकिन युवा इस बात को समझ नहीं पा रहा है।शिवम कहीं न कहीं युवाओं के उदासीन होने पर भी चिंता व्यक्त करते हैं।
वे कहते हैं कि जो बच्चे आइआइटी, आइआइएम जैसे संस्थानों से आते हैं वे सेटल होने के बाद इधर देखते भी नहीं। और जो आम युवा है वह वास्तविकता समझ नहीं पा रहा। उसके पास रोज का डेढ़ जीबी डेटा है। वह पबजी खेल रहा है। उसकी दुनिया ही बदल दी गई है। उन्हें पता ही नहीं कि उनकी जिम्मेदारी क्या है। शिवम आगे कहते हैं कि मैंने एक मुहिम चलाई है कि शिक्षित लोग सप्ताह में मात्र 45 मिनट का समय दें और अपने आसपास के स्लम एरिया में बुनियादी और जरूरत के मुताबिक शिक्षा दें। मैं यह आंदोलन चलाना चाहता हूं।
हमें क्या मिलेगा, यह भी है प्रश्न
आखिर युवा भारत में राजनीति से क्या चाहते हैं? उनके द्वारा चुन कर आने वाले नेता कैसे होने चाहिए? निश्चित रूप से वे ऐसे नेता चाहते हैं जो चुनाव से पहले किए गए वादे पूरे करें, जो अपनी कथनी के प्रति जिम्मेदार हों और जनता के प्रति जवाबदेह हों। युवाओं का सबसे बड़ा मुद्दा है कि राजनीति से भ्रष्टाचार दूर होना चाहिए। नेता अपनी आइडियोलॉजी, कास्ट और जेंडर से ऊपर उठ कर आगे आएं। राजनीति में परिवारवाद की समस्या जड़ से खत्म हो। लेकिन बरेली के युवा मोटिवेशनल स्पीकर फैजान शेख कहते हैं, 'कहीं न कहीं युवा उन बुनियादी सेवाओं को ढूंढते हैं जो उन्हें उनके स्तर पर मिलनी चाहिए। उन्हें कोई मतलब नहीं है कि कौन-सी राजनीतिक पार्टी लीड कर रही है और राजनीति का क्या परिदृश्य है। उन्हें दिलचस्पी होती है कि उन्हें क्या मिलने वाला है। हाल ही में न्यूनतम आय की बात हुई तो वह उनकी रुचि की बात है।'
मानवता दूसरे नंबर पर न हो
दिल्ली यूनिवर्सिटी के साउथ कैंपस के छात्र हिमांशु तिवारी चाहते हैं कि अब जो भी नेतृत्व आए वह युवाओं को प्राथमिकता दे। सबसे पहले हमारी शिक्षा व्यवस्था में सुधार की जरूरत है। एक इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलप करने की जरूरत है क्योंकि दिमाग वहीं से बन रहे हैं। राजनीति से युवाओं की उम्मीदें बताते हुए कहते हैं हिमांशु, 'मुझे लगता है कि कृषि पर भी ध्यान देने की जरूरत है। इंडस्ट्री भारी पड़ रही है कृषि पर। हम डिजिटल इंडिया की बात करें तो हमारे पास संसाधन भी सारे होने चाहिए। विश्वविद्यालय की राजनीति में बाहर के दलों का काफी हस्तक्षेप रहता है। मैं चाहता हूं कि राजनेता अपने क्षेत्र तक राजनीति करें। अपने स्तर तक रखें। घुसपैठ नहीं होनी चाहिए।
आज सभी की सहनशक्ति एग्रेशन की तरफ बढ़ रही है। राजनीति को उग्र बनाकर परिदृश्य पेश किया जा रहा है। राजनीति पहले नंबर पर है और मानवता दूसरे नंबर। युवाओं के जागरूक नहीं होने और सुनी-सुनाई बातों पर अपना विचार बना लेने को गलत मानते हैं। वे कहते हैं, 'हम मोदी और राहुल की बात करते हैं लेकिन हमें यह पता नहीं होता कि कितनी सीटों से विधानसभा में जीत होगी? लोकसभा क्या होती है? राष्ट्रपति का चुनाव कैसे होता है? यह चीजें ही युवाओं के सामने स्पष्ट नहीं होतीं और कम उम्र में ही हम आसपास की बातें सुनकर एक विचार बना लेते हैं और स्वंय को बुद्धिजीवी समझने लगते हैं जबकि हममें समझ विकसित नहीं हो पाती।'
क्या समझौता करने का मूड में हैं युवा
राजनीति में इतना कुछ घट रहा है, समाज बदलना तो दूर, राजनीति निजी जागीर बन गई है और युवा वर्ग खामोश है तो क्या युवाओं ने सामाजिक, राजनीतिक जकड़बंदी से टकराने के बजाय उससे समझौता करने का मूड बना लिया है। युवा छात्र नासिर कहते हैं कि राजनीति में बहुत नकारात्मकता है। मैं इसमें नहीं आना चाहता। मैं आरटीआइ कार्यकर्ता हूं। जिस जगह मैं रहता हूं वहा हमेशा मुझ पर दबाव आता है कि मैं अपनी आरटीआइ वापस ले लूं। हिमांशु कहते हैं कि हम युवा पॉलिटिकल साइंस को प्रोडक्टिव सब्जेक्ट की तरह पढ़ते हैं ताकि इससे पैसे कमा सकें।
इस सोच के कारण युवाओं के सामने यह एक जॉब ओरिएंटेड फ्रेम बन गया है, जिससे सेवा का भाव दूसरे नंबर पर चला गया है। इसी के कारण राजनीति पिछड़ी है। वे युवाओं को आगे आने का समाधान बताते हैं, 'मुझे लगता है कि हम पढ़ें ज्यादा, समझें ज्यादा और उसके बाद माइंडसेट डेवलप कर स्वस्थ परिचर्चा करें। हमें वोट देने में भी अपनी सोच बनानी है। अपनी और समाज की बेहतरी देखनी है। हम अंबेडकर को पढ़ें, गांधी पढ़ें तो हम ज्यादा अच्छा सोच पाएंगे।'
जब युवा वोट ही नहीं दे पाते
कहीं युवा पढ़ाई करने के लिए घर से बाहर हैं। कहीं वे नौकरी करने घर छोड़ कर निकले हैं। ऐसे में वे वोट देने भी घर नहीं आ पाते। इन युवाओं को चुनाव में भागीदारी नहीं हो पाना काफी खलता है। बाराबंकी शहर की नसीम फातिमा दिल्ली में पढ़ती हैं। वे 22 साल की हो गई हैं लेकिन कभी वोट नहीं दिया। वे कहती हैं, 'हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में रह रहे हैं। यह युवाओं का देश है लेकिन युवा ही राजनीति में सहभागिता नहीं कर पाते हैं जितनी उन्हें करनी चाहिए। मैं बाइस साल की हूं लेकिन मैंने कभी वोट नहीं दिया क्योंकि छात्रा हूं और आर्थिक समस्या के कारण वोट डालने घर नहीं जा पाती हूं। मैं अपना विचार बताती जरूर हूं कि मुझे यह नेता पसंद है, यह नहीं, लेकिन मैं अपनी पसंद को सामने नहीं ला पाती। मैं चाहती हूं कि देश का हर युवा वोट डाले। उसे उसके मतदान केंद्र तक जाने की सहूलियत हो। जो जॉब और पढ़ाई के लिए बाहर हैं वे वोट कैसे डालें। इस समस्या का स्थाई हल ढूंढ़ा जाए।'
दबाव की राजनीति नहीं हो
हमें राजनीति में ऐसे कोई आइकॉन दिखाई नहीं देते जिनका विजन साफ हो, इसलिए हम राजनीति में जाना नहीं चाहते। राजनीति जैसी जगह पर किसी को रोल मॉडल देखकर ही युवा आगे बढ़ते हैं। आज लीडर्स ने राजनीति को इतना घिचपिच कर दिया है कि युवा इसमें घुसना ही नहीं चाहते। एक तो बेरोजगारी बहुत है दूसरे, राजनीति में पैसा भी चाहिए इसलिए युवा इससे दूरी बनाते हैं। आज दबाव की राजनीति है, अगर कोई युवा आगे आना भी चाहे तो उसे आगे आने नहीं दिया जाता। ऐसे में युवा पहले अपनी रोटी का जुगाड़ करता है और युवाओं ने मौजूदा स्थितियों से ही गुजारा करना सीख लिया है। इस स्थिति को बदलने के लिए शिक्षा बहुत महत्वपूर्ण है। शिक्षा में बदलाव आना जरूरी है ताकि शिक्षित युवक आगे आएं और जिम्मेदारी लें।
-फैजान शेख, युवा मोटिवेशनल स्पीकर
शिक्षा और स्वास्थ्य बन गए बाजार
मैं नोटा का सपोर्टर हूं। मैं वैसी राजनीति चाहता हूं जो हम किताबों में पढ़ते हैं। जो सैद्धांतिक है, लेकिन ऐसा हो नहीं रहा। राजनेता किताबों से विपरीत चल रहे हैं। पढ़े-लिखे युवा चाहते हैं कि पढ़े-लिखे लोग राजनीति में आए। अच्छे, सच्चे और ईमानदार नेता सामने आएं। राजनेताओं को शिक्षा और स्वास्थ्य को प्राथमिकता देनी चाहिए। आज की शिक्षा व्यवस्था में पढ़कर भी कुछ अच्छा करने की भावना नहीं जागती। बस अच्छी नौकरी और बढिय़ा जीवन जी लीजिए। ओवरऑल डेवलपमेंट नहीं हो रहा। शिक्षा और स्वास्थ्य को बाजार बना दिया गया है। अस्पताल होटल जैसे हो गए हैं जहां गरीब जा ही नहीं सकते। हमें इन क्षेत्रों को सुदृढ़ करना होगा।
-शिवम कुमार, इंजीनियर
युवा को सक्रिय होने की जरूरत
जब हमने संविधान बनाया तो कई देशों के नियमों को अपनाया लेकिन राजनीति में हम ऐसा नहीं कर पा रहे हैं। यह विशुद्ध भारतीय बनकर रह गई है। हम बाहर के देशों से काफी कुछ ले सकते हैं। दूसरे, हमारी राजनीति जातिगत आधार पर विभाजित है। हमें लगता है कि अगर कोई उम्मीदवार हमारे धर्म या हमारी जाति से है तो वही हमारी बात रख सकता है, जबकि ऐसा नहीं होता है। नतीजतन वह हमारा प्रतिनिधित्व इस प्रकार से नहीं कर पाता जैसी हमारी जरूरतें हैं। इस पूरे फ्रेम को तोडऩे के लिए युवाओं को सक्रिय होने की जरूरत है। हम शिक्षित राजनीति चाहते हैं।
-हिमांशु तिवारी, डीयू छात्र
बाज आएं नेता, शब्दों की बाजीगरी से
मैं तो चाहता हूं कि राजनीति में केवल शब्दों की बाजीगरी न हो। नेता जो वादा करें उसे अमल में भी लाएं। इनकी कथनी और करनी में बहुत अंतर है। बड़े-बड़े दावे करने के बजाय ये जनता के लिए कुछ करें। अगर ये कुछ करते हैं तो उसका आगे भी खयाल रखें। अब देखिए हर स्थान पर शौचालय बनाए गए हैं लेकिन उनकी सफाई और उनका रखरखाव नहीं हो पा रहा। इस बारे में तुरंत ध्यान दिए जाने की जरूरत है।
-शशांक व्यास, एक्टर
राजनेता जमीनी हालात समझें
जनता द्वारा चुनी गई सरकार जनता के लिए ही होती है लेकिन चुन कर आए प्रतिनिधि यह बात भूल जाते हैं और अपने निजी फायदों के लिए काम करने लगते हैं। मैं चाहता हूं कि जनता की समस्याएं उनके प्रमुख एजेंडा में हों। एक बात और है कि केवल मानक तय करना ही काफी नहीं होता बल्कि उन पर निगरानी भी रखना होता है कि उनके हिसाब से काम हो भी रहा है कि नहीं। जैसे सुरक्षा व्यवस्था के मजबूत होने और कानूनों के शक्तिशाली होने के बावजूद स्थानीय स्तर पर दबंग लोग आम लोगों को परेशान करते हैं। राजनेता जमीनी हालात समझें और इस पर काम करें।
-शरद मल्होत्रा, एक्टर
राष्ट्र शक्तिशाली बने, युवा शिक्षित
हम युवा चाहते हैं कि चुनाव में चुन कर आए नेता युवाओं की आकांक्षाओं को समझें। नेता वही होता है जो समय के साथ खुद को एजुकेट करे। भारत की शिक्षा प्रणाली में सुधार की आवश्यकता है। नई सरकार शिक्षा के ढांचे में सुधार लाए। शिक्षित युवा राष्ट्र को शक्तिशाली बनाता है।
-श्वेता रोहिरा, एक्टर