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लोकसभा चुनाव 2019: उपेंद्र कुशवाहा ने लगाई सियासी रिस्‍क की हैट्रिक, जानिए

रालोसपा सुप्रीमो उपेंद्र कुशवाहा ने राजग से नाता तोड़ महागठबंघन कादमान थामा है। वे दो जगह से चुनाव मैदान में हैं। उनके सियसी रिस्‍क की हैट्रिक के बारे में जानिए इस खबर में।

By Amit AlokEdited By: Published: Thu, 04 Apr 2019 08:52 PM (IST)Updated: Fri, 05 Apr 2019 09:54 AM (IST)
लोकसभा चुनाव 2019: उपेंद्र कुशवाहा ने लगाई सियासी रिस्‍क की हैट्रिक, जानिए
लोकसभा चुनाव 2019: उपेंद्र कुशवाहा ने लगाई सियासी रिस्‍क की हैट्रिक, जानिए

पटना [एसए शाद]। राष्‍ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा लगातार जोखिम भरे फैसले कर रहे हैं। काराकाट और उजियारपुर, दोनों सीटों से चुनाव लडऩे का फैसला उनके राजनीति कॅरियर का तीसरा बड़ा रिस्क है। दो जगहों से चुनाव लडऩे के उनके निर्णय की आलोचना करने वालों की भले ही कमी नहीं, मगर वे अपने फैसले से संतुष्ट हैं। उनके करीबी नेताओं का मानना है कि पिछले चुनाव में उनके पास खोने के लिए कुछ नहीं था, मगर इस बार उनका पूरा राजनीतिक कॅरियर दांव पर लगा है।

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कुशवाहाने जब पिछला चुनाव लड़ा था, तब उनकी पार्टी की स्थापना को कुछ ही दिन हुए थे। उन्‍होंने काराकाट से चुनाव लड़कर जीत दर्ज की। इस बार वे काराकाट राष्‍ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के नहीं, बल्कि महागठबंधन के उम्मीदवार के रूप में पहुंचे हैं। पिछली बार जिस सामाजिक समीकरण की गोलबंदी से वे चुनाव जीत पाए थे, वह इस बार उनके पक्ष में खड़ा होगा, यह अपने आपमें बड़ा प्रश्न है। कुशवाहा का मुकाबला जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के महाबली सिंह से है। महाबली सिंह साल 2009 का लोकसभा चुनाव काराकाट से जीत चुके हैं।

काराकाट के अलावा उपेंद्र कुशवाहा उजियारपुर से भी चुनाव लड़ेंगे। उनका यह कदम अपने आप में एक बड़ा रिस्क है, क्योंकि उजियारपुर में उनके खिलाफ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रदेश अध्यक्ष नित्यानंद राय मैदान में है। नित्यानंद राय उजियारपुर के अभी सिटिंग सांसद हैं। भाजपा का संपूर्ण संगठनात्मक तंत्र और राजग के शीर्ष नेता नित्यानंद राय के पक्ष में प्रचार करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।

पार्टी सूत्रों ने बताया कि उपेंद्र कुशवाहा ने यह कदम महागठबंधन में अपनी बड़ी हैसियत बनाने के लिए उठाया है। अगर वे उजियारपुर में कामयाब होते हैं तो निश्चित रूप से 'जाएंट किलर' कहलाएंगे। रालोसपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता फजल इमाम मलिक का दावा है कि कुशवाहा काराकाट में जदयू और उजियारपुर में भाजपा को हराएंगे।

इसके पहले उपेंद्र कुशवाहा ने अपने राजनीतिक कॅरियर का पहला बड़ा रिस्क जनवरी, 2013 में तब लिया था, जब उन्होंने राज्यसभा की सदस्यता से त्यागपत्र दे कर रालोसपा का गठन किया था। वे जदयू से राज्यसभा के सदस्य थे और उनका करीब साढ़े तीन साल का कार्यकाल बाकी था। रालोसपा बनाकर वे एनडीए का हिस्सा बने और तालमेल में आई तीनों सीटों पर 2014 लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज की। तब देश में नरेंद्र मोदी की लहर थी।

दूसरा बड़ा रिस्क उन्होंने हाल में तब लिया जब केंद्रीय राज्यमंत्री के पद से इस्तीफा देकर राजग से नाता तोडऩे का एलान किया। उनके इस फैसले से पार्टी के अनेक वरीय नेता नाखुश हुए और रालोसपा से अलग हो गए। राजग से नाता तोडऩा इस कारण भी बड़ा रिस्क था कि सम्मानजनक सीटें नहीं मिलने के कारण उन्होंने ऐसा किया था। अगर महागठबंधन में उन्हें सम्मानजनक सीटें नहीं मिलतीं तो फजीहत का सामना करना पड़ता। मगर महागठबंधन में उन्हें पांच सीटें मिली हैं।


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