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Loksabha Election 2019 : कानपुर की संसदीय सीट पर चुनाव में विधायकों का कठिन इम्तिहान

विधायकों की परफॉर्मेंस रिपोर्ट पर दलों की नजर होगी।

By AbhishekEdited By: Published: Tue, 16 Apr 2019 06:13 PM (IST)Updated: Tue, 16 Apr 2019 06:13 PM (IST)
Loksabha Election 2019 : कानपुर की संसदीय सीट पर चुनाव में विधायकों का कठिन इम्तिहान
Loksabha Election 2019 : कानपुर की संसदीय सीट पर चुनाव में विधायकों का कठिन इम्तिहान
कानपुर, जेएनएन। यह लोकसभा चुनाव सभी का इम्तिहान लेगा। मैदान में ताल ठोक रहे प्रत्याशियों के साथ हर दल के विधायक भी इसकी जद में हैं। 2014 की मोदी लहर के बाद लगभग हर विधानसभा में छिटके भाजपा के वोटर को फिर समेटना भाजपा विधायकों के लिए चुनौती है तो सुकून उन विपक्षी विधायकों के लिए भी नहीं है, जिन्होंने 2017 के विधानसभा चुनाव में बढ़त पाई या जीत हासिल की। सभी की 'परफॉर्मेंस रिपोर्ट' पर दलों की नजर होगी।
किस दल की मजबूती किस विधानसभा क्षेत्र में है, इसका गुणा-भाग पिछले दो चुनाव पूरी तरह उलझा देते हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर में भाजपा ने कानपुर लोकसभा क्षेत्र की पांच में से छावनी छोड़कर सभी विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज की थी, जबकि 2017 में भाजपा का वोट काफी हद तक छिटक गया और पार्टी सिर्फ दो सीटें ही जीत सकी। वहीं, विधानसभा चुनाव में गठबंधन कर कांग्रेस और सपा ने एक-दूसरे के लिए बैसाखी की भूमिका निभाई।
जो सपा लोकसभा चुनाव में हर सीट पर जमींदोज जैसी स्थिति में थी, वह कांग्रेस के सहारे दो विधानसभा सीटें जीत गई, वहीं साइकिल ने छावनी से कांग्रेस प्रत्याशी को लखनऊ पहुंचा दिया। हां, जिस किदवई नगर को कांग्रेस की मजबूत जमीन माना जाता है, वहां सपा के सहयोग से कांग्रेस बढ़ी जरूर लेकिन, भाजपा की गिरावट के बावजूद उससे पीछे ही रही। यही हाल गोविंदनगर में भी हुआ। अब गोविंद नगर विधायक सत्यदेव पचौरी खुद प्रत्याशी हैं, सो उनके सामने अपने क्षेत्र में परिणाम दोहराने की चुनौती है, वहीं किदवई नगर विधायक महेश त्रिवेदी को 2014 के मुकाबले 2017 में घटे वोटों का आंकड़ा हर हाल में संभालना होगा।
अब सपा की बात करें तो यह पार्टी मोदी लहर में मुस्लिम बहुल छावनी और सीसामऊ विधानसभा क्षेत्र में पांच-साढ़े पांच हजार वोटों पर सिमट गई थी, जबकि 2017 में कांग्रेस के सहारे बढ़त मिली तो सीसामऊ और आर्य नगर मामूली अंतर से ही सही लेकिन जीतने में सफल हुई। अब कांग्रेस को हर सीट पर अकेले संघर्ष करना है। वहीं, सपा ने उस बसपा का हाथ थामा है, जो हर चुनाव में जमानत बचाने को ही जूझती नजर आई है। शहर में उसका कोई विधायक नहीं है और सपा की तरह ही सांसद आज तक नहीं बना पाई है। लोकसभा चुनावों के परिणाम बताते हैं कि शहर के मतदाताओं ने हमेशा भाजपा और कांग्रेस को ही एक-दूसरे के विकल्प के रूप में देखा है। यह वक्त बताएगा कि मायावती और अखिलेश की जोड़ी इतिहास को कितना बदल पाती है।

(2017 के विधानसभा चुनाव में सपा और कांग्रेस का गठबंधन था। हालांकि छावनी में सपा प्रत्याशी ने भी पर्चा भर दिया था)

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