Lok Sabha Election 2019: जो हार गए टिकट की लड़ाई वो दूसरों की नाव पार लगाएंगे
सरफराज अहमद गिरिडीह लोकसभा क्षेत्र से एक बार परचम फहरा चुके हैं। तिलकधारी प्रसाद सिंह दो बार कोडरमा से लोकसभा चुनाव जीते हैं। राजेंद्र प्रसाद सिंह गिरिडीह से सांसद नहीं बन सके।
गिरिडीह, दिलीप सिन्हा। अविभाजित बिहार में कांग्रेस के अध्यक्ष डा सरफराज अहमद। कांग्रेस की प्रदेश अनुशासन समिति के अध्यक्ष तिलकधारी प्रसाद सिंह। इंटक के राष्ट्रीय महामंत्री राजेंद्र सिंह। तीनों कांग्रेस के बड़े नाम। तीनों कोडरमा एवं गिरिडीह लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ चुके हैं। दमदार तरीके से। इस बार कांग्रेस न गिरिडीह से चुनाव लड़ रही है, न कोडरमा से। सियासत का अजीब खेल देखिए, तीनों कांग्रेस दिग्गज अब उन लोगों को विजेता बनाने के लिए मेहनत कर रहे हैं जिनके साथ कभी उनकी राजनीतिक अदावत रही है। डा सरफराज अहमद एवं तिलकधारी प्रसाद सिंह कोडरमा में यूपीए महागठबंधन के उम्मीदवार बाबूलाल मरांडी को विजयी बनाने के लिए मेहनत कर रहे हैं। राजेंद्र सिंह गिरिडीह में यूपीए महागठबंधन से झामुमो उम्मीदवार जगरनाथ महतो की चुनावी नाव के खेवैया बन गए हैं।
डॉ. सरफराज अहमद गिरिडीह लोकसभा क्षेत्र से एक बार अपना परचम फहरा चुके हैं। तिलकधारी प्रसाद सिंह दो बार कोडरमा से लोकसभा चुनाव जीते हैं। राजेंद्र प्रसाद सिंह गिरिडीह से सांसद नहीं बन सके हैं। दो बार भाजपा को कांटे की टक्कर जरुर दी है। इस बार भी तीनों नेताओं ने टिकट के लिए दावेदारी की थी। यूपीए महागठबंधन में दोनों सीट सहयोगी दलों को चली गई तो कांग्र्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने तीनों नेताओं को नई भूमिका के निर्वहन का निर्देश दिया है।
गिरिडीह लोकसभा क्षेत्र में झामुमो, झाविमो एवं कांग्र्रेस के नेताओं एवं कार्यकर्ताओं में बेहतर समन्वय के लिए राजेंद्र सिंह ने बुधवार को बेरमो में बैठक की थी। राजेंद्र सिंह ने सारे सहयोगी दलों के नेताओं को समझाया कि सारे गिले शिकवे भूल जाइए। बता दें कि कुछ दिन पहले राजेंद्र सिंह एïवं जगरनाथ महतो के रिश्ते तल्ख थे। अब उनके संबंध सामान्य हो चुके हैं। जहां तक कोडरमा की बात है तो बाबूलाल मरांडी को मालूम है कि सहयोगी दलों को साथ लेकर किस तरह चला जाय। वे खुद तिलकधारी सिंह एवं सरफराज अहमद के आवास पर गए। लंबी गुफ्तगू की। इसके बाद मरांडी ने मंगलवार को सभी सहयोगी दलों की समन्वय बैठक भी की। इसमें सरफराज अहमद और राजद प्रदेश अध्यक्ष गौतम सागर राणा ने शिरकत की। सरफराज अहमद की कोशिश है कि अल्पसंख्यक हो अथवा बहुसंख्यक, कांग्रेसी विचारधारा को मानने वाले सारे लोग मरांडी का साथ दें।
कांग्रेस नेतृत्व ने वर्तमान हालात का अध्ययन करने के बाद गिरिडीह और कोडरमा सीट सहयोगी दल को देने का फैसला लिया है। यह पुरानी बात हो चुकी है। गिरिडीह और कोडरमा में यूपीए की जीत के लिए कांग्र्रेस के सारे कार्यकर्ता को मेहनत बढ़ा देनी चाहिए।
-सरफराज अहमद, पूर्व सांसद, गिरिडीह
पहले गिरिडीह फिसली, अब कोडरमाः कभी गिरिडीह और कोडरमा को कांग्र्रेस का गढ़ माना जाता था। गिरिडीह के पहले कांग्र्रेसी सांसद डाक्टर आइ अहमद थे। चपलेंदू भïट्टाचार्या एवं सरफराज अहमद भी सांसद बने थे। झामुमो के संस्थापक विनोद बिहारी महतो ने ही सरफराज अहमद को पीछे छोड़ कर गिरिडीह सीट पर कब्जा किया था। लगातार दो चुनाव हारने के बाद सरफराज ने मैदान छोड़ दिया था। वे वापस अपने गांडेय विधानसभा क्षेत्र लौट गए थे। सरफराज के मैदान छोडऩे के बाद राजेंद्र प्रसाद सिंह ने मोर्चा संभाला था। उन्हें सफलता नहीं मिली थी। बाद में कांग्रेस ने इस सीट को गठबंधन के तहत झामुमो के खाते में डाल दिया। 91, 92 एवं 2004 में कांग्रेस के समर्थन से झामुमो इस सीट पर कब्जा करने में सफल रहा था। जहां तक कोडरमा की बात है तो 1984 से तिलकधारी प्रसाद सिंह लगातार चुनाव लड़ते रहे हैं। पिछला चुनाव भी लड़े थे। एक बार उन्हें मौका नहीं दिया गया था। यह पहला मौका है, जब कांग्र्रेस ने गठबंधन के तहत सीट छोड़ी है। 2004 में कांग्रेस एवं झामुमो के बीच दोस्ताना संघर्ष हुआ था।
संथालपरगना में साफ, उत्तरी छोटानागपुर में हाफ और दक्षिणी छोटानागपुर में फुलः लोकसभा चुनाव में झारखंड में यूपीए महागठबंधन का नेतृत्व कांग्र्रेस कर रही है। 14 में सात सीट पर कांग्र्रेस ने उम्मीदवार खड़ा किया है। सीट बंटवारे पर गौर करे तो संताल परगना में कांग्र्रेस साफ है। संताल परगना की तीन लोकसभा सीट दुमका, राजमहल एवं गोड्डा में कांग्र्रेस ने उम्मीदवार नहीं उतारे हैं। उत्तरी छोटानागपुर में चार सीट है। धनबाद एवं हजारीबाग से कांग्र्रेस लड़ रही है। गिरिडीह और कोडरमा सहयोगी दलों को मिली है। कांग्र्रेस यहां हाफ हुई है। कोल्हान प्रमंडल की दो सीट में सिंहभूम से कांग्र्रेस लड़ रही है तो जमशेदपुर से झामुमो। यहां भी कांग्र्रेस हाफ में है। दक्षिणी छोटानागपुर की चार सीट रांची, खूंटी, लोहरदगा व चतरा से कांग्रेस लड़ रही है। सहयोगी दलों को कोई सीट नहीं। पलामू प्रमंडल में पलामू एवं चतरा से राजद ने उम्मीदवार उतारे हैं। चतरा में कांग्र्रेस दोस्ताना संघर्ष को तैयार है।