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LokSabha election 2019 : इस बार 'खुला खेल' नहीं, मतदाताओं की खामोशी त्रिकोणीय मुकाबले को बना रही रोचक

चुनाव से स्थानीय मुद्दे गायब सुबह एक प्रत्याशी के साथ घूमने वाला शख्स शाम को दूसरे के खेमे में भी दिख रहा है।

By AbhishekEdited By: Published: Fri, 19 Apr 2019 12:16 PM (IST)Updated: Fri, 19 Apr 2019 03:24 PM (IST)
LokSabha election 2019 : इस बार 'खुला खेल' नहीं, मतदाताओं की खामोशी त्रिकोणीय मुकाबले को बना रही रोचक
LokSabha election 2019 : इस बार 'खुला खेल' नहीं, मतदाताओं की खामोशी त्रिकोणीय मुकाबले को बना रही रोचक
फर्रुखाबाद, [विजय प्रताप सिंह]। 'खुला खेल फर्रुखाबादी' कहावत बेहद पुरानी है। फर्रुखाबाद लोकसभा क्षेत्र के मतदाता इसे चरितार्थ भी करते रहे हैं। हालांकि इस बार सियासी महासमर का समीकरण कुछ अलग ही कह रहा है, जो बता रहा है, इस बार खेल खुला नहीं है। सियासी फिजां में यह कहावत भी कि 'पहले फरक बाद में बात] गंूज रही है। सुबह एक प्रत्याशी के साथ घूमने वाला शख्स शाम को दूसरे के खेमे में भी दिख रहा है। गली-मोहल्लों में चुनावी चर्चा तो शबाब पर है, लेकिन तर्क अलग-अलग हैं। खास बात ये है कि इन बहसों से स्थानीय मुद्दे गायब हैं।
कोई जातीय आंकड़ों के बलबूते जीत का गणित लगा रहा है तो कोई पिछले परिणाम के आधार पर सिर्फ भाजपा और बसपा-सपा गठबंधन के बीच मुकाबला मान रहा है। दिलचस्प ये है कि प्रसपा गठबंधन की टांग खींच रही है। ईवीएम से साइकिल का चुनाव चिह्न भी गायब है। ऐसे में कांग्रेस खुद को कमतर नहीं आंक रही और मुकाबले को त्रिकोणीय रूप दे रही है। इसीलिए यहां से चुनावी मैदान में उतरे महारथी चिंतित हैं। मतदाता की खामोशी ने इस संघर्ष को और भी रोमांचक बना दिया है। ऐसे में पार्टियों के सामने यह चुनौती होगी।
लहर, जोड़तोड़ और समीकरण का चुनाव
यह फर्रुखाबाद है। जरदोजी, कपड़ा छपाई, आलू, तंबाकू और गन्ना उत्पादन इसकी पहचान हैं, लेकिन चुनावी तर्कों से यह मुद्दे गायब हैं। तेज धूप में दिनभर जाम से जूझने वाले लोग आरओबी के वादे करने वालों को कोसते हैं। गड्ढों में बनी सड़क पर हिचकोले की हिचकी आते ही गड्ढा मुक्त सड़कों के वादे याद आते हैं। अस्पतालों की आलीशान इमारतें उन मरीजों को चिढ़ाती जो दर्द से कराहते हुए इलाज की उम्मीद में जाते हैं, लेकिन वहां डाक्टर नहीं मिलते। इन सभी मुद्दों को भी सियासत के इस महासमर में स्थान नहीं दिया गया है। लहर, जोड़तोड़ और जातीय समीकरण पर चुनावी घोड़े दौड़ाए जा रहे हैं। चुनौती भरे इस घमासान में भाजपा ने सांसद मुकेश राजपूत पर भरोसा जताया है तो कांग्रेस ने दो बार सांसद रह चुके सलमान खुर्शीद पर फिर से दांव खेला है। बसपा ने पूर्व एमएलसी मनोज अग्रवाल को टिकट देकर मैदान में उतारा है।
मुकेश को 'मोदी लहर' का सहारा
लोकसभा क्षेत्र में भाजपा प्रत्याशी मुकेश राजपूत की सियासी स्थिति जानने से पहले यह स्वीकारना बेहद जरूरी है कि यह चुनाव भी पिछले लोकसभा चुनाव की तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर ही लड़ा जा रहा है। भाजपा प्रत्याशी के लिए यही सबसे मजबूत बात है। जनता खुद चुनाव लड़ रही है इसलिए मुकेश को अपने हथियारों को धार देने की जरूरत नहीं जान पड़ती। भाजपा का खांटी वोट प्रत्याशी से नाराजगी व्यक्त जरूर करता है, लेकिन मोदी के साथ होने का भरोसा दिलाता है। अब तक इस सीट पर तीन बार भाजपा जीत दर्ज कर चुकी है।
यह है कमजोरी
फर्रुखाबाद लोकसभा सीट के अलावा क्षेत्र की सभी विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा का कब्जा है। इससे मतदाताओं की नाराजगी और भितरघात रोकना सबसे बड़ी चुनौती होगी। मजबूत संगठन के बावजूद कार्यकर्ताओं की नाराजगी और चुनावी कुप्रबंधन भारी पड़ सकता है।
सलमान को गौरवशाली इतिहास का भरोसा 
कांग्रेस प्रत्याशी सलमान खुर्शीद की बात की जाए तो इस सीट पर उनका गौरवशाली इतिहास रहा है। एक बार उनके पिता खुर्शीद आलम और दो बार वे स्वयं सांसद रह चुके हैं। पूर्व राष्ट्रपति डा. जाकिर हुसैन के नवासे पूर्व विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद कांग्रेस के टॉप-5 नेताओं में शुमार किए जाते हैं। सुप्रीम कोर्ट के बड़े वकील होने के साथ देश भर के नेताओं में बड़े चेहरे के रूप में उनकी पहचान है। सलमान को इस बार पार्टी के परंपरागत वोट के अलावा सजातीय और गठबंधन से नाराज लोगों से बड़ी उम्मीद है।
यह है कमजोरी
लोकसभा क्षेत्र से गायब रहने के आरोप झेलने वाले सलमान खुर्शीद को कमजोर संगठन से जूझना पड़ रहा है। उनके शाही स्वभाव के कारण कार्यकर्ता उदासीन हैं और जातीय समीकरण भी कमजोर पड़ रहा है।
हाथी की सवारी कर रहे मनोज को साइकिल का सहारा 
बसपा-सपा गठबंधन प्रत्याशी मनोज अग्रवाल लोकसभा चुनाव के मैदान में नया चेहरा हैं। उन्हें बसपा के कैडर वोट के साथ सपा के मजबूत संगठन से काफी उम्मीद है। दलित-यादव और मुस्लिम गठजोड़ की गणित के आंकड़े लगाकर मनोज संसद की चौखट तक पहुंचने की उम्मीद लगाए हैं। शहरी राजनीति के कुशल खिलाड़ी मनोज अग्रवाल की सौम्य छवि और बेहतर चुनाव प्रबंधन उनकी मजबूती है। लोकसभा चुनाव में नया चेहरा होने के कारण ज्यादा बुराई-भलाई का भी डर नहीं है।
यह है कमजोरी
भितरघात के खतरे के साथ कार्यकर्ताओं में उत्साह की कमी मनोज के लिए चुनौती है। प्रसपा की टंगड़ी समस्या बन रही है। केवल शहरी राजनीति में ही सक्रिय रहे मनोज अग्रवाल दो बार देहात की राजनीति में बेअसर साबित हो चुके हैं।
पिछले लोकसभा चुनाव का परिणाम
प्रत्याशी पार्टी मिले वोट
मुकेश राजपूत भाजपा 406195
रामेश्वर यादव सपा 255693
जयवीर ङ्क्षसह बसपा 114521
सलमान खुर्शीद कांग्रेस 95543 

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