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Lok Sabha Election 2019: सवाल जनकल्याणकारी सामाजिक योजनाओं में सक्रिय जनभागीदारी का

बड़ा सवाल यह कि क्या खामियों को दूर करने पर चिंतन की जगह ऐसी योजनाओं को सिरे से नकार दिया जाना उचित है? और यह भी कि खुद जनता की क्या जिम्मेदारी है?

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 13 Apr 2019 10:48 AM (IST)Updated: Sat, 13 Apr 2019 10:48 AM (IST)
Lok Sabha Election 2019: सवाल जनकल्याणकारी सामाजिक योजनाओं में सक्रिय जनभागीदारी का
Lok Sabha Election 2019: सवाल जनकल्याणकारी सामाजिक योजनाओं में सक्रिय जनभागीदारी का

अतुल पटैरिया, नई दिल्ली। विभिन्न जनकल्याणकारी योजनाओं की सफलता-असफलता और औचित्य को लेकर देश में राजनीति का दौर बदस्तूर जारी रहा। ऐसी लगभग 135 से ज्यादा सरकारी योजनाएं हैं, जिन्हें मोदी सरकार ने शुरू किया या बेहतर बनाया, लेकिन इनकी अवधारणा पर स्वस्थ विमर्श की जगह राजनीतिक दलों ने इन्हें सरकार पर हमले का औजार बनाए रखा गया। ऐसा करने वालों ने जनता को केवल भ्रमित किया। इस बीच असल विषय कहीं दबकर रह गया। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) ने चार दिन पहले जारी अपनी राजकोषीय निगरानी रिपोर्ट में जो कहा है, उसे हर मतदाता को जानना और समझ लेना चाहिए।

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यह रिपोर्ट असल मुद्दे पर ध्यान दिला रही है। और चूंकि यह एक निष्पक्ष और जिम्मेदार अंतरराष्ट्रीय संस्था का आकलन है, लिहाजा यह राजनीतिक पूर्वाग्रह से परे है, ऐसा माना जा सकता है। सामाजिक योजनाएं जनकल्याण के लिए बनाई जाती हैं और इनका आकलन केवल इसी बात पर होना चाहिए। सरकारें कोई भी हों, क्रियान्वयन के दोषों के आधार पर इनके औचित्य को नकार देना और जनता में इन्हें लेकर भ्रम की स्थिति उत्पन्न करना कतई उचित नहीं है। क्रियान्वयन का एक अलग तंत्र है, जिसके अपने दोष हैं। खामियां भी हैं। लेकिन बड़ा सवाल यह कि क्या खामियों को दूर करने पर चिंतन की जगह ऐसी योजनाओं को सिरे से नकार दिया जाना उचित है? और यह भी कि खुद जनता की क्या जिम्मेदारी है?

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) ने कहा, भारत द्वारा किए कई सुधारों में डिजिटलाइजेशन के फायदों की साफ झलक मिलती है। डिजिटलाइजेशन के चलते मनमाने अधिकारों और धोखाधड़ी जैसे मौकों की संभावना बहुत घट गई है। ई-प्रोक्योरमेंट यानी सरकारी खरीद में ऑनलाइन प्रक्रिया अपनाए जाने से स्पद्र्धा को बल मिला है और निर्माण व उत्पादन की गुणवत्ता बहुत सुधरी है। सामाजिक कार्यक्रम (जनकल्याणकारी योजनाओं) के लाभार्थियों की पहचान और उन तक लाभ पहुंचाने के लिए स्मार्ट आइडी कार्ड का उपयोग किया जा रहा है।

इससे संसाधनों के लीकेज (किसी के नाम पर किसी और द्वारा सुविधा हड़प लेना) में 41 फीसद तक की कमी दर्ज की गई। सोशल ऑडिट की व्यवस्था की वजह से भारत में बड़े पैमाने पर रोजगार गारंटी योजनाओं का

क्रियान्वयन हो पाया है और इस योजना में भ्रष्टाचार के खात्मे में मदद मिली है...। मनमाने अधिकारों... धोखाधड़ी... और संसाधनों के जिस लीकेज की ओर आइएमएफ ने ध्यान दिलाया है, उसे एक शब्द में परिभाषित करें तो यह है- भ्रष्टाचार। इसी पर रोक लगाने को लेकर मोदी सरकार की तारीफ आइएमएफ कर रही है। स्वतंत्रता के बाद देश के विकासक्रम में भ्रष्टाचार ही नासूर बना रहा। आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति भले होती रही, लेकिन इस बड़े विषय पर गंभीर चिंतन नहीं हुआ। जनता के बड़े वर्ग के लिए भी यह मुद्दा नहीं रहा। वह इसे सिस्टम का हिस्सा मान नजरअंदाज करती रही। लेकिन समस्या केवल इतनी ही नहीं है।

लोकतंत्र के तीन अंग हैं। न्यायपालिका, व्यवस्थापिका और कार्यपालिका। व्यवस्थापिका यानी संसद। और कार्यपालिका यानी सरकार। सुशासन के लिए विधायी व्यवस्था का निर्माण करना यानी आवश्यक कानूनों का निर्माण या उनमें संशोधन करना व्यवस्थापिका का मुख्य दायित्व है। विधि द्वारा स्थापित व्यवस्था को लागू करना, जनकल्याण के लिए विभिन्न योजनाएं और नीतियां बनाना और उनका क्रियान्वयन सुनिश्चित करना कार्यपालिका यानी सरकार का काम है। सरकार का आशय केवल मंत्रीमंडल से नहीं है। प्रधानमंत्री से लेकर अधिकारी और चतुर्थ श्रेणी कर्मी तक इसका विस्तार है। दायित्व हर स्तर पर बंटा हुआ है। निर्धारित है। पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा था कि हम दिल्ली से एक रुपया भेजते हैं, लेकिन गांव तक बस 10 पैसे ही पहुंचते हैं...। 90 पैसे कहां गायब हो गए? स्वाभाविक है, दोष सरकार पर ही मढ़ा जाएगा, चूंकि दिल्ली से लेकर गांव तक शासन का जो उपक्रम है, उसी का नाम सरकार है। सुशासन सरकार का परम दायित्व है। लेकिन जनता का क्या दायित्व है?

क्या जनता शासित मात्र है? नहीं। क्योंकि अंग्रेजों को गए तो जमाना बीत गया। आज भी भारत का आम नागरिक, वह जो गांवों-कस्बों में रहता है, वह जो गरीब है, जो किसान है, और वह जिसके लिए दिल्ली से एक रुपया भेजा जाता है, क्या वह आज भी इस बात से वाकिफ हो पाया है कि दिल्ली से भेजा गया एक रुपया केवल और केवल उसके लिए ही भेजा जाता है और इसे हासिल करना न केवल उसका अधिकार वरन कर्तव्य भी होना चाहिए? सबसे बड़ी दिक्कत यही है कि वह आज भी अपने इस अधिकार से वाकिफ नहीं है, कर्तव्य की अपेक्षा तो बहुत दूर की बात है। उसके भीतर जब तक यह उदासीनता बनी रहेगी, उसके हक के 90 पैसे चोरी होते रहेंगे। इसके लिए सरकार को दोष क्यों? आज सरकार की सौ से अधिक बड़ी जनकल्याणकारी योजनाएं लागू हैं, लेकिन जनभागीदारी पर्याप्त नहीं है। यही वजह है कि वर्तमान प्रधानमंत्री गत पांच वर्षों में जनता को यही बताने का प्रयास करते रहे कि जागो, देखो, समझो, जुड़ो, सरकार ने तुम्हारे कल्याण के लिए हर वह उपाय कर दिया है, जो तुम्हें आत्मनिर्भर बनाएगा और देश के समग्र विकास में तुम्हारी सक्रिय भागीदारी को सुनिश्चित करेगा...।

रेडियो पर मन की बात हो या अपने भाषणों के जरिये, या फिर सरकारी अमले के जरिये या पार्टी कार्यकर्ताओं के माध्यम से, मोदी सरकार का पूरा जोर इस बात पर भी साफ दिखा कि जो जनहितकारी योजनाएं वह लेकर आई है, उनके बारे में हाशिये पर खड़ा व्यक्ति भी, जो पात्र है, अच्छी तरह जान जाए, जागरूक हो जाए, ताकि इनका लाभ ले सके। फसल बीमा योजना हो या आवास योजना या फिर उज्जवला योजना या आयुष्मान भारत योजना... तमाम जनकल्याणकारी योजनाओं की जानकारी गांवों, कस्बों में रहने वाली उस बड़ी जनसंख्या तक, जो कि पात्र है, पहुंचाने का ईमानदार प्रयास सरकार ने हर स्तर पर किया और यह एकदम स्पष्ट दिखा। यानी सरकार को भी जनता की यह कमजोरी पता थी। लिहाजा, इस बात को समझने की बड़ी आवश्यकता है

कि जनता की भागीदारी मंद क्यों है? पहली, यह जाहिर होता है कि आज भी वंचित वर्ग अपने हितों को लेकर जागरूक नहीं है। दूसरी, सरकारी तंत्र, जिसे शासन कहते हैं, उसमें विसंगतियां हैं। हितग्राही को चिन्हित करना और उस तक उसका एक रुपया पहुंचा देना, यही शासन का दायित्व है। यदि इस दायित्व की पूर्ति ईमानदारी से हो जाए, तो भी बात बन सकती है। हालांकि डिजिटल इंडिया ने इसमें पारदर्शिता लाने का बड़ा काम किया है।

आजादी के बाद से ऐसा क्या कारण था कि हमने गरीबों को सिर्फ गरीबी के बीच जीने नहीं, लेकिन हमेशा सरकारों के सामने हाथ फैलाने के लिए मजबूर कर के छोड़ दिया, उसके जमीर को हमने खत्म कर दिया। गरीबी के खिलाफ लड़ने का उसका हौसला हमने तबाह कर दिया। वहीं, हम गरीब व्यक्तिकी जिंदगी बदलना चाहते हैं। उसके जीवन में बदलाव लाने के लिए काम कर रहे हैं। गरीबी हटाने के लिए नारे तो बहुत दिए गए, वादे बहुत किए गए, योजनाएं ढेर सारी आईं, लेकिन हर योजना गरीब के घर को ध्यान में रख कर के नहीं बनी, हर योजना मत पेटी को ध्यान में रख कर के बनी। जब तक मत पेटियों को ध्यान में रख कर के गरीबों के लिए योजनाएं बनेंगी, कभी भी गरीबी जाने वाली नहीं है।

गरीबी तब जाएगी, जब गरीब को गरीबी से लड़ने की ताकत मिलेगी। गरीबी तब जाएगी, जब गरीब फैसला कर लेगा कि अब मेरे हाथ में साधन है, मैं गरीबी को परास्त कर के रहूंगा। अब मैं गरीब नहीं रहूंगा, अब मैं गरीबी से बाहर आऊंगा। और इसके लिए उसको शिक्षा मिले, रोजगार मिले, रहने को घर मिले, घर में शौचालय हो, पीने का पानी हो, बिजली हो, ये अगर हम करेंगे, तभी गरीबी से लड़ाई लड़ने के लिए गरीब ताकतवर हो पाएगा। और इसीलिए हम गरीबी के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए काम कर रहे हैं।

नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री (01 मई 2016)

धारणा यह है कि अगर आप अपने आवाम के स्वास्थ्य और पोषण तथा शिक्षा प्रणाली का खयाल रखते हैं, तो आपके उज्जवल भविष्य की इतनी अधिक संभावना है कि इसका अंदाज नहीं लगा सकते। ऐसे साहसी फैसले और प्रौद्योगिकी का उपयोग स्वास्थ्य व शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार कर समावेशी विकास में मदद कर सकता है। डिजिटलीकरण न केवल निगरानी की गुणवत्ता बल्कि अन्य व्यवस्थाओं के सुधार में मददगार है। भारत अगले कळ्छ सालों में जीवन प्रत्याशा, स्वास्थ्य, पोषण जैसे मुद्दों पर बहुत तरक्की करेगा। सिर्फ यही नहीं, यहां लैंगिक असंतुलन को दूर होते हुए भी देखा जा सकता है। इसे लेकर मैं भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा उठाए गए कदमों की सराहना करता हूं।

बिल गेट्स, माइक्रोसाफ्ट (मई, 2016)

भारत निश्चित रूप से दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है, जिसमें पिछले पांच वर्षों में लगभग सात प्रतिशत की औसत वृद्धि हुई है। महत्वपूर्ण सुधारों को लागू किया गया है और हमें लगता है कि इस उच्च विकास को बनाए रखने के लिए और अधिक सुधारों की आवश्यकता है, जिसमें जनसांख्यिकीय लाभांश अवसर का दोहन भी शामिल है, जो भारत के पास है।

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, आइएमएफ (मार्च, 2019)

सरकार के कई अभियान मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्वच्छ भारत, स्वच्छ ऊर्जा और अन्य योजनाएं रफ्तार पकड़ रही हैं। सतत संरचनात्मक सुधारों का असर अब जमीन पर दिखने लगा है और एक बड़ी अर्थव्यवस्था की हालत सुधर रही है। विभिन्न कारोबार क्षेत्रों में बिक्री और आर्डर उल्लेखनीय रूप से बढ़ रहे हैं जो बेहतर क्षमता इस्तेमाल तथा निवेश बढ़ने की उम्मीद जगाते हैं।

भारतीय उद्योग परिसंघ, सीआइआइ (मई, 2018)

डॉ. कलाम ने ड्रोन एक्शन प्लान बियोंड-2020 में सुरक्षा की चार प्रमुख एकीकृत प्रणाली पर जोर दिया था- प्रादेशिक सुरक्षा, आंतरिक सुरक्षा, ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक सुरक्षा। प्रधानमंत्री मोदी ने साइबर सोशल सिक्योरिटी के लिए न्यू इंडिया 2022 मिशन की शुरुआत की, जो सराहनीय है। यह पहल देश के समावेशी विकास के लिए मील का पत्थर साबित होगी। लेकिन मोदी की इस पहल पर राजनीतिक प्रतिक्रिया निराशाजनक रही, यह चिंतनीय है।

प्रो. डॉ. धीरेंद्र शर्मा, वरिष्ठ वैज्ञानिक, सेंटर फॉर साइंस पॉलिसी

भारत के समावेशी विकास, जिसमें हाशिये पर खड़े व्यक्ति के लिए भी भरपूर मदद और प्रोत्साहन हो, उसके लिए ये सभी योजनाएं अत्यंत आवश्यक हैं। क्रियान्वयन में रोड़े हो सकते हैं, शासन में भ्रष्टाचार और जवाबदेही की कमी आड़े आती है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि आप एक बड़े वंचित हिस्से को सततविकास की मुख्यधारा से जोड़ने का कोई प्रयास ही न करें। योजनाओं की मैरिट इनके ध्येय पर और इनके हासिल के पैमाने पर आंकी जानी चाहिए।

डॉ. विकास सिंह, वरिष्ठ अर्थशास्त्री, विशेषज्ञ समग्र विकास

खाद्यापूर्ति के लाभार्थी को राशनकार्ड या राशन, आवास योजना के लाभार्थी को आवास या भूखंड, उज्जवला के लाभार्थी को गैस कनेक्शन, वृद्ध या निराश्रित को पेंशन, किसान को फसल बीमा, गरीब को स्वास्थ्य कार्ड... सरकार की तमाम योजनाएं गरीबों के लिए मददगार हैं, लेकिन किसी लाभार्थी को यदि इसका लाभ नहीं मिल पाता है तो यह खामी ग्राम पंचायत स्तर पर शुरू होती है न कि दिल्ली से। बड़ा वर्ग जो लाभार्थी या पात्र है, वह अशिक्षा और गरीबी के कारण उदासीन बना हुआ है। और उसकी इसी कमी का लाभ भ्रष्टाचारी कर्मचारी उठाते हैं। लिहाजा, ग्राम पंचायत स्तर पर ही बेहतर मॉनीर्टंरग एकमात्र समाधान है।

कमलेश प्रसाद मिश्र, जनसुनवाई फाउंडेशन, ग्राम सत्याग्रह अभियान, उप्र


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