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देश का 13वां लोकसभा चुनाव लाया स्थिरता का दौर, अटल बिहारी वाजपेयी का रहा जोर

कारगिल युद्ध के बाद हुए चुनाव में 182 सीटों के साथ भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर सामने आई। चुनाव पूर्व 17 राजनीतिक दलों के साथ NDA बनाकर अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने।

By Nitin AroraEdited By: Published: Tue, 26 Mar 2019 11:26 AM (IST)Updated: Tue, 26 Mar 2019 11:26 AM (IST)
देश का 13वां लोकसभा चुनाव लाया स्थिरता का दौर, अटल बिहारी वाजपेयी का रहा जोर
देश का 13वां लोकसभा चुनाव लाया स्थिरता का दौर, अटल बिहारी वाजपेयी का रहा जोर

नई दिल्ली, जेएनएन। एक वोट से विश्वासमत हारने के बाद प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इस्तीफा दे दिया। कांग्रेस के नेतृत्व में सरकार न बन पाने की स्थिति में तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायणन ने नए सिरे से चुनाव के लिए अपनी सहमति दी। लिहाजा 1999 में लोकसभा के चुनाव हुए। सरकार की अकाल सियासी मौत के चलते वाजपेयी जी को इस चुनाव में लोगों की सहानुभूति मिली।

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कारगिल युद्ध के खात्मे के कुछ महीने बाद हुए इस चुनाव में 182 सीटों के साथ भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनकर सामने आई। चुनाव पूर्व 17 राजनीतिक दलों के साथ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) बनाकर अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने। करिश्माई व्यक्तित्व के धनी वाजपेयी को सत्रह दलों को साधने में मुश्किल नहीं पेश आई और उन्होंने सरकार का पांच साल का कार्यकाल सफलतापूर्वक पूरा किया।

पांच चरणों में चुनाव

  • 5 सितंबर को 146 सीट पर
  • 11 सितंबर को 123 सीट पर
  • 18 सितंबर को 76 सीट पर
  • 25 सितंबर को 74 सीट पर
  • 3 अक्टूबर को 121 सीट पर
  • 6 अक्टूबर को मतगणना

बता दें कि इस चुनाव में 61.95 करोड़ कुल वोट थे, जिनमें 58.08% वोट पड़े। कुल उम्मीदवार- 4648। प्रति लोकसभा चुनाव क्षेत्र उम्मीदवारों का औसत- 8.56 रहा। वहीं जमानत जब्त कराए उम्मीदवार 73.1 फीसद रहे। चुनाव कराने में लगे 50 लाख चुनाव अधिकारी। देश भर में बने 8 लाख मतदान केंद्र।

हालांकि अतीत के आइने में देखा जाए तो काफी कुछ बाते सामने आती है। 13वां लोकसभा चुनाव से पहले और बाद में तमाम तर्क सामने थे। भाजपा को उस समय कई मुद्दों पर फायदा पहुंचा। आइय उस समय की राजनीति पर एक नजर डालें...

स्वदेशी बनाम विदेशी मसला

सोनिया गांधी ने 1998 में कांग्रेस अध्यक्ष का पदभार संभाला था। हाल में ही विदेशी के नाम पर उनके नेतृत्व को मराठा क्षत्रप शरद पवार ने चुनौती दी थी। मुद्दा देश के सियासी माहौल में गूंज रहा था। चुनाव के दौरान भाजपा ने यह मुद्दा लपक लिया और देश में पैदा हुए अटल बिहारी वाजपेयी (स्वदेशी) और परदेस में पैदा हुई सोनिया (विदेशी) को अपने चुनाव प्रचार अभियान का हिस्सा बनाया।

कारगिल जीत का असर

इन चुनावों के कुछ महीने पहले ही भारत ने कारगिल में पाकिस्तानी घुसपैठियों को मार भगाया था। कश्मीर को लेकर भारतके दृढ़ और कड़े रुख का दुनिया भर में बहुत सकारात्मक संदेश गया। देश की जनता ने भी इस जीत का सियासत में अपने मतों से जश्न मनाया।

विकास की राजनीति

पिछले दो साल के दौरान भारत ने तेज आर्थिक विकास का मॉडल पेश किया। तेज औद्योगिक विकास और निचले स्तर पर रही महंगाई को भारतीय जनता पार्टी ने अपनी उपलब्धि के तौर पर पेश किया।

उप्र में भाजपा को नुकसान

इस चुनाव में सात राष्ट्रीय पार्टियों समेत 162 क्षेत्रीय पार्टियों ने हिस्सा लिया। 10 सीट के साथ कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में बेहतर प्रदर्शन किया। बहुजन समाज पार्टी से हुए गठबंधन के खात्मे के चलते भारतीय जनता पार्टी को 28 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा। टीडीपी की आंध्र प्रदेश में आंधी चली। जेडीयू के साथ भाजपा ने बिहार और झारखंड में सबका सूपड़ा साफ कर दिया।


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