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Jharkhand Lok Sabha Election 2019 : सिंहभूम में अबकी नहीं चलेगा प्रलोभन का बाण

Lok Sabha Election 2019. अति पिछड़े क्षेत्र की पहचान रखने वाला सिंहभूम लोकसभा क्षेत्र तेजी से बदल रहा है। प्राथमिकताओं में जनजीवन से जुड़े मुद्दे शामिल हो रहे हैं।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Sun, 24 Mar 2019 11:13 AM (IST)Updated: Sun, 24 Mar 2019 11:13 AM (IST)
Jharkhand Lok Sabha Election 2019 : सिंहभूम में अबकी नहीं चलेगा प्रलोभन का बाण
Jharkhand Lok Sabha Election 2019 : सिंहभूम में अबकी नहीं चलेगा प्रलोभन का बाण

चक्रधरपुर, जागरण संवाददाता। अति पिछड़े क्षेत्र की पहचान रखने वाला सिंहभूम लोकसभा क्षेत्र तेजी से बदल रहा है। इंटरनेट युग में तकनीक के साथ कदमताल करते हुए क्षेत्र के लोगों की धारणा व सोच बदल रही है। प्राथमिकताओं में जनजीवन से जुड़े मुद्दे शामिल हो रहे हैं। नतीजतन इस चुनाव में मतदाताओं के एजेंडे में विकास, विकास और सिर्फ विकास है। 

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अबकी हडिय़ा पिलाकर, रुपये बांटकर और भोज खिलाकर कोई भी प्रत्याशी वोट नहीं बटोर सकेगा। शिक्षा, सड़क, बिजली और अन्य आधारभूत संरचना निश्चित रूप से मुद्दा बनेंगे। नेताओं के मतदाताओं पर छोड़े गए प्रलोभन रूपी बाण पहले की तरह असर नहीं दिखा सकेंगे। 

प्रत्याशियों को खींचना होगा विकास का खाका

अब तक हर चुनाव में मतदान से एक दिन पहले प्रत्याशी के प्रतिनिधि गांवों में जाकर पैसे बांटकर और हडिय़ा पिलाकर वोट अपने पक्ष में गिरवा लेते थे। इस बार लोग जागरूक है। गांव-देहात में विकास की बात हो रही है। आम आदमी सड़क और स्वास्थ्य सुविधा  के बारे पूछ रहा है। ऐसे में प्रत्याशियों को जवाब देने होगा। प्रत्याशियों क्षेत्र के  विकास का खाका लेकर ही वोट मांगना होगा। 

कई गांवों में वोट बहिष्कार की सुगबुगाहट

शिक्षा के प्रचार-प्रसार के बाद क्षेत्र के लोगों में बढ़ी जागरूकता है। लोग अपने गांव की स्थिति पर और पार्टी प्रत्याशियों पर नजर डालते हैं। विकास को अंजाम तक पहुंचाने का माद्दा रखने वाले प्रत्याशी को ही मतदाता वोट देना चाहते हैं। इतना ही नहीं पूर्व के विधायक व सांसद यदि मतदाताओं की कसौटी पर खरे नहीं उतरे और दोबारा वोटों मांगने द्वार पर पहुंच गए, तो आक्रोश भी भड़क उठता है। जिसके कारण कई गांवों में वोट बहिष्कार की सुगबुगाहट भी तेज होने लगी है। 

नेताओं को भ्रम में डाल रहे मतदाता

सबसे मजेदार बात तो यह है कि अब नेताओं के आश्वासनों की तर्ज पर ही मतदाता प्रत्याशियों को भी भरमाने लगे है। नेताजी द्वार पर पहुंचे नहीं कि मतदाता 'हम आप ही को वोट देंगे, निश्चित रहेंÓ  का राग अलापना आरंभ कर देते हैं। सभी प्रत्याशियों के साथ ऐसा ही व्यवहार कर राजनीतिक पार्टियों को भ्रम में डालना बिल्कुल नई बात है, पहले ऐसा नहीं था। 

जातिगत आधार पर वोटिंग का प्रचलन भी बढ़ा

बढ़ती जागरूकता से विचारों में आया बदलाव भले ही शुभ संकेत हैं, लेकिन यह भी सच है कि लोकसभा क्षेत्रों में जातिगत आधार पर वोटिंग का प्रचलन भी आरंभ हुआ है। पहले अपने वोट से ही मतलब रखने में मगन मतदाता अब जातिगत समूह खोजने लगे हैं। महतो, प्रधान व अन्य जातिगत समुदाय के मतदाता इस तरह का वैचारिक ²ष्टिकोण अपना रहे हैं। 2009 व 2014 के लोकसभा चुनाव में यह स्थिति देखने को मिली थी। गौड़, गोप, ग्वाला समुदायों ने चुनाव से कुछ दिन पूर्व एक मिलन समारोह आयोजित कर मतदान हेतु गुप्त निर्णय लिया था। 

पहले अल्पसंख्यक समुदाय के वोटों का होता था ध्रुवीकरण

पहले जातिगत आधार पर मतदान का प्रचलन नहीं था। केवल अल्पसंख्यक समुदाय (मुस्लिम, ईसाई) के वोटों का ध्रुवीकरण होता था। अब महतो, प्रधान व अन्य समुदाय के कथित रहनुमा अपने लोगों को लामबंद करने में लगे हैं। चुनाव के समय यह कवायद और तेज हो जाती है। जिसके बाद सामूहिक रूप से किसी पार्टी या प्रत्याशी विशेष को वोट देने के लिए उकसाया जाता है। 


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