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संकल्प रैली में मजबूत दिखा NDA का समन्वय, रंग लाएगी मंच से मैदान तक की जुगलबंदी

गठबंधन की साझा रैलियों में घटक दलों के बीच समन्वय का संकट आम बात है। लेकिन राजग की संकल्प रैली में भाजपा जदयू व लोजपा की एकजुटता ने महागठबंधन को परेशान कर दिया है।

By Amit AlokEdited By: Published: Mon, 04 Mar 2019 11:55 AM (IST)Updated: Mon, 04 Mar 2019 11:07 PM (IST)
संकल्प रैली में मजबूत दिखा NDA का समन्वय, रंग लाएगी मंच से मैदान तक की जुगलबंदी
संकल्प रैली में मजबूत दिखा NDA का समन्वय, रंग लाएगी मंच से मैदान तक की जुगलबंदी
पटना [मनोज झा]। आमतौर पर गठबंधन की साझा चुनावी रैलियों में समन्वय के संकट और अपनी टोपी ऊंची दिखाने जैसे सियासी जोखिम छिपे रहते हैं। एक सवाल अपनी-अपनी ताकत या दमखम दिखाने का भी रहता है। इन मायने में देखें तो रविवार को गांधी मैदान में राजग की संकल्प रैली ने राजनीतिक मित्रता की न सिर्फ एक नई लकीर खींची है, बल्कि महागठबंधन की पेशानी पर बल भी डाल दिया है।
बिहार में राजग के तीनों घटक दलों के बीच मैदान से लेकर मंच तक जिस तरह जुगलबंदी दिखी, वह चुनावी सफलता को लेकर गठबंधन के नेताओं को कई तरह से आश्वस्ति भी देती है। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संबोधन में मुख्यमंत्री नीतीश का न सिर्फ बार-बार नाम लिया, बल्कि बिहार को पिछड़ेपन और जड़ता से बाहर निकालने में उनके प्रयासों को कई तरीके से रेखांकित भी किया। जवाब में नीतीश और लोजपा सुप्रीमो रामविलास पासवान ने भी मोदी की प्रशंसा में कोई कसर नहीं छोड़ी।

बिहार बता रहा गठबंधन सरकार चलाने का शऊर
चुनावी राजनीति में दलों के गठबंधन को लेकर सबसे बड़ी चुनौती सरजमीन पर कार्यकर्ताओं या समर्थकों के दिल मिलने की होती है। यह ठीक है कि बिहार में इस समय राजग की गठबंधन सरकार न सिर्फ मजे में चल रही है, बल्कि घटक दलों के बीच कभी किसी प्रकार की अनबन भी सुनने-देखने को नहीं मिलती है। उल्टे बिहार पूरे देश को यह बता रहा है कि गठबंधन की सरकार सफलतापूर्वक चलाने का शऊर कोई उससे सीखे।
नेतृत्व के स्तर पर परस्पर बेहतर समन्वय
जाहिर है कि यह सब नेतृत्व के स्तर पर परस्पर बेहतर समन्वय से ही संभव हो पा रहा है। फिर भी करीब छह साल पहले भाजपा और जदयू की पुरानी दोस्ती टूटने और फिर अगले तीन साल तक दोनों की राहें जुदा रहने के चलते कल की संकल्प रैली को लेकर सियासी पंडितों के दिमाग में कुछ सवाल अनसुलझे थे। साथ ही रैली की सफलता भी कसौटी पर थी। ऐसे में यह कहने में अब कोई संशय या हिचक नहीं रह गई है कि राजग गठबंधन इस कसौटी पर सौ फीसद खरा उतरा है।

मोदी, नीतीश व पासवान ने बांधे एक-दूसरे के तारीफ के पुल
ध्यान देने की बात है कि रैली के मंच से ये शब्द किसी भाजपा नेता नहीं, बल्कि लोजपा सुप्रीमो पासवान की जुबान से निकले कि पीएम मोदी का सीना 56 नहीं, बल्कि 156 इंच का है। जाहिर है कि पिछले दिनों सनसनीखेज और साहसिक एयर स्ट्राइक के बाद भारत ने कूटनीतिक मोर्चे पर जिस तरह पाकिस्तान को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया, पासवान उसका सीधा श्रेय मोदी को दे रहे थे। इसी प्रकार जब नीतीश की बारी आई तो उन्होंने न सिर्फ मोदी के नेतृत्व की तारीफों के पुल बांधे, बल्कि एक कदम आगे बढ़कर यह तक कहा कि यदि आज बिहार तेजी से आगे बढ़ रहा है तो उसमें केंद्र सरकार का बड़ा योगदान है। बाद में जब मोदी की बारी आई तो उन्होंने इन दोस्ताना लहजों को तो मानो चाशनी में ही डुबो दिया। पहले तो नीतीश के भाषण के दौरान आठ बार तालियां बजाईं, फिर अपने संबोधन में मुख्यमंत्री को मित्र, मेहनती, कर्मठ. विकास पुरुष जैसे शानदार विशेषणों से नवाजा। सियासी मंच पर अपनी पार्टी से इतर किसी अन्य दल के नेता की ऐसी तारीफें कम ही सुनने को मिलती हैं।

दूरदराज के गांव-गिरांव तक दिखी मंच की यह मेल-मित्रता
सबसे अहम यह है कि मंच की यह मेल-मित्रता प्रदेश के दूरदराज के गांव-गिरांव तक दिखी। पिछले करीब 10 दिन से घटक दलों के कार्यकर्ता जिस तरह कंधे से कंधा मिलाकर रैली की तैयारियों में जुटे रहे, वह आगामी लोकसभा चुनाव के नतीजों की भावी झलक भी दिखाती है। गांव-कस्बों व शहरों से लेकर बस, ट्रेन, विश्राम स्थल और आखिरकार गांधी मैदान तक नेता और निशान के भेद मिटते दिखे, फिजां में भाजपा-जदयू-लोजपा की पुरानी दोस्ती के किस्से फिर से जीवंत होते सुनाई पड़े, गठबंधन की गांठ मजबूत होती दिखी।
संकल्प रैली ने महागठबंधन में बढ़ाया तनाव
उधर, महागठबंधन की अब तक ढीली दिख रही गांठ पर राजग की संकल्प रैली ने तनाव बढ़ा दिया है। वहां दल बेशक मिले हुए दिखाई दे रहे हों, लेकिन दिलों का मिलना बाकी है, तोल-मोल का दौर अभी जारी है। खासकर जातीय अस्मिताओं और कथित वोट बैंक को लेकर बढ़-चढ़कर दावे किए जा रहे हैं। विपक्षी गठबंधन की आखिरी तस्वीर क्या होगी, इस पर अभी कुछ भी कहना शायद जल्दबाजी होगी। फिर भी फिलहाल राजग गठबंधन को चुनावी खेल के पहले दौर का विजेता तो माना ही जा सकता है।
[लेखक दैनिक जागरण्‍ा के स्थानीय संपादक (बिहार) हैं]

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