Lok Sabha Election 2019: दर्द का मारा... बेचारा दर्दमारा
दर्दमारा पेयजल सिंचाई स्वास्थ्य बिजली आदि समस्याएं यहां मुंह बाएं खड़ी हैं। तालाब सिंचाई कूप आदि सुविधाओं का यहां अभाव है।
बेंगाबाद, रणविजय सिंह। झलकडीहा पंचायत का दर्दमारा गांव जिला मुख्यालय से 24 और प्रखंड मुख्यालय से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां के ग्रामीणों को आजादी के इतने दिनों बाद भी मूलभूत सुविधाएं मयस्सर नहीं हैं। पेयजल, सड़क, स्वास्थ्य, सिंचाई, बिजली आदि समस्याओं से यहां के ग्रामीणों को हर रोज दो-चार होना पड़ता है।
दर्दमारा गांव का दैनिक जागरण ने जायजा लिया। एनएच 114 ए से कटकर लगभग तीन किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद गांव पहुंचे। वहां पहुंचने के लिए दोनों ओर से जंगल के बीचो बीच उबड़ खाबड़ और गड्ढों में तब्दील रास्ता मिला, जो गांव के विकास की कहानी बयां कर रहा था। इस रास्ते से होकर बरसात या अंधेरी रात में आवागमन करना कैसा होगा, इसका सहज अनुमान लगाया जा सकता है। लगभग 77 घरों की आबादी वाले गांव में सर्वाधिक संख्या आदिवासियों की है। यहां 40 परिवार आदिवासी, 30 मोहली और शेष नाई जाति के लोग निवास करते हैं। यहां शत प्रतिशत मजदूर वर्ग के ही लोग हैं। गांव में प्रवेश करने पर देखा कि कुछ लोग बांस के बर्तन बना रहे थे। उनलोगों से बात करने पर अपनी परेशानियों को बयां किया।
बताया कि बरसात के दिनों में इस गांव में चार पहिया वाहन नहीं आना चाहता है। गंभीर रूप से बीमार मरीजों को इलाज के लिए ले जाने में परेशानी होती है। वहां से थोड़ी दूर बीच बस्ती में कुछ लोग बैठकर बातें कर रहे थे। जब उनलोगों से बात की गई तो सभी ने पेयजल संकट का रोना रोया। कहा कि गांव में चार चापाकल हैं, जिनमें दो खराब पड़े हैं। स्थिति यह हो गई है कि खेत में बने डोभा से पानी लाकर प्यास बुझानी पड़ रही है।सिंचाई सुविधा के बारे में कहा कि यहां तालाब व सिंचाई कूप का अभाव है, जिस कारण यहां मात्र वर्षा आधारित खेती ही हो पाती है।
गांव के अंतिम छोर पर आंगनबाड़ी केन्द्र और विद्यालय बने हैं। विद्यालय के बगल पेड़ के पास कुछ लोग बैठे थे। उनलोगों ने बताया कि यहां के लगभग सभी लोगों के राशन कार्ड बने हैं लेकिन कई योग्य लाभुक पेंशन और उज्ज्वला योजना के लाभ से वंचित हैं। दो चार लोगों को छोड़कर अधिकांश लोग प्रधानमंत्री आवास योजना के लाभ से वंचित हैं। लोगों ने बताया कि यहां के लोग अपने मताधिकार का प्रयोग करते हैं लेकिन दुर्भाग्य है कि इस गांव में आज तक कोई प्रत्याशी वोट मांगने नहीं आया है। न ही जीते हुए सांसद या विधायक ने दर्दमारा के ग्रामीणों का दर्द जानने की जरूरत महसूस की है। 1952 में पहला चुनाव हुआ था। तब से आज तक यहां किसी निर्वाचित सांसद या विधायक ने गांव में आने की जरुरत नहीं समझी। ग्रामीण हेमलाल सोरेन ने बताया कि गांववासी आवागमन की समस्या से त्रस्त हैं। गड्ढेनुमा रास्ते पर चलना यहां के लोगों की आदत सी हो गई है। अच्छी सड़क मानों ग्रामीणों के भाग्य में नहीं है। पारा शिक्षक बुधन सोरेन ने कहा कि ग्रामीणों को चौतरफा समस्याओं से रोजाना जूझना पड़ता है।
पेयजल, सिंचाई, स्वास्थ्य, बिजली आदि समस्याएं यहां मुंह बाएं खड़ी हैं। तालाब, सिंचाई, कूप आदि सुविधाओं का यहां अभाव है। यदि गांव में डीप बोरिंग कराकर खेतों तक पानी पहुंचाने की व्यवस्था की जाए तो इस पिछड़े गांव की सूरत बदल सकती है। मुंशी मुर्मू ने बताया कि यहां के आदिवासी आवास योजना से वंचित हैं। फौलादी मुर्मू ने बताया कि अधिकांश लोग उज्ज्वला योजना के लाभ से वंचित हैं।