Lok Sabha Election 2019: तीन दशक से सड़क खराब, 50 साल पुराना कुआं बुझा रहा प्यास
गांव में एक भी हैंडपंप नहीं है। मोरहाडीह गांव के लोग 50 साल पुराने कुएं पर निर्भर हैं। सबसे अधिक दिक्कत महिलाओं को होती है।
धनबाद, आशीष सिंह। धनबाद मुख्यालय से 26 किमी की दूरी पर तोपचांची प्रखंड का एक गांव है मोरहाडीह। यह गिरिडीह लोकसभा क्षेत्र में पड़ता है। लगभग 300 लोगों की आबादी वाले इस गांव में जाने के लिए ब्राह्मणडीहा होते हुए टूटी-फूटी सड़क से होकर जाना पड़ता है। जैसे ही गाड़ी इस सड़क पर पहुंचती है इस कदर हिचकोले खाती है कि आपको लगेगा कि किसी सुदूरवर्ती गांव में आ गए हैं।
89 वर्षीय गांव के बुजुर्ग अमूल्य रतन तिवारी 1988 में जिला परिषद में बड़े बाबू थे, उन्हीं के समय इस गांव में पहुंचने के लिए डेढ़ किमी की पक्की सड़क बनी थी। यह कहना है कि इस गांव के दिलीप कुमार तिवारी और प्रदीप कुमार तिवारी का। इस बात को 30 साल गुजर गए, सड़क जर्जर होती चली गई और इस स्थिति में पहुंच गई है कि बरसात में तो इसपर चलना दूभर हो जाता है। दिलीप कुमार कहते हैं कि कितने विधायक और सांसद आए और गए इस गांव की सुध किसी ने नहीं ली।
यहां पानी, रोजगार की भी समस्या है। साढ़े चार साल पहले चुनाव के समय नेताजी आए थे, उसके बाद नजर नहीं आए। यह गांव नक्सल प्रभावित गांवों से सटा है, इसलिए यहां विकास की दर भी वैसी ही है।
50 साल पुराने कुएं से पानी भरती हैं महिलाएं : गांव में एक भी हैंडपंप नहीं है। मोरहाडीह गांव के लोग 50 साल पुराने कुएं पर निर्भर हैं। सबसे अधिक दिक्कत महिलाओं को होती है। खोरठा भाषा में बात करते हुए संतरा देवी और छुटनी देवी ने बताया कि गांव एक छोर से यदि पीने का पानी भी लेना हो तो महिलाएं बाल्टी और घड़ा भरकर यहां से पैदल लेकर जाती हैं। वोट मांगने आ जाते हैं, लेकिन एक हैंडपंप तक नहीं लगवा सकते कोई भी जनप्रतिनिधि।
15 एकड़ का तालाब भी किसी काम का नहीं : गांव में 9.29 एकड़ का एक बड़ा तालाब और छह एकड़ का एक छोटा तालाब है। छोटे तालाब में दलदल युक्त पानी है तो बड़ा तालाब जलकुंभियों से अटा पड़ा है। बड़ा तालाब तो छह एकड़ का रहा गया है। मोरहाडीह ही नहीं कोटालअड्डा, ब्राह्मणडीहा और खुरडीह के लगभग दो हजार लोग इसी तालाब पर आश्रित हैं। नहाने से लेकर, कपड़े धोने और पशुओं को पानी पिलाने के लिए इसी पर निर्भर हैं। तालाब की देखभाल न हाने से समुचित मात्रा में पानी जमा नहीं हो पाता है। नतीजतन तालाब पर निर्भर 100 एकड़ की जमीन पर ढंग से खेती नहीं हो पा रही है।
सड़क जर्जर है और गांव में नालियां भी नहीं हैं। बरसात से लेकर घरों तक का पानी सड़क पर आ जाता है। हर उस जनप्रतिनिधि से समस्या रखी गई, जो इसका निदान कर सकता था। आज तक सुनवाई नहीं हुई, गांव वाले खुद से जो सुधार कर सकते हैं वो करते हैं।
- सोमनाथ तिवारी, मोरहाडीह
तालाब का जीर्णोद्धार होना बहुत जरूरी है। सिर्फ मोरहाडीह ही नहीं आसपास के कई गांव इसी पर निर्भर हैं। यहां की खेती को पानी की बहुत दरकार है। हम लोग अपनी जमीन देने तक को तैयार हैं, बस सरकार एक-दो जगह बोङ्क्षरग करवा दे तो पानी की किल्लत कम हो जाएगी।
- प्रदीप कुमार तिवारी, मोरहाडीह
जनप्रतिनिधियों से तो अब भरोसा ही उठ गया है। हमारे गांव की आबादी कम है तो क्या हमें मूलभूत सुविधाएं भी नहीं मिलेंगी। सिर्फ वोट पाने के लिए आते हैं और जीतने के बाद गायब हो जाते हैं। यहां सिर्फ बिजली ही ठीक है, बाकी सब बेकार।
- दिलीप कुमार तिवारी, ग्रामीण
आप भी देखिए हमें कितनी परेशानी हो रही है, सिर पर ढो कर पानी लेकर ऊपर गांव तक चढऩा पड़ेगा। यह किसी को क्यों नहीं दिखता। शहर में कोई समस्या होने पर आप बोलकर ठीक करवा लेंगे, यहां तो बोलने के बाद भी कोई नहीं आता।
- संतरा देवी, गृहणी
इससे बड़ी विडंबना क्या हो सकती है कि गांव के दूसरे किनारे से इस तरफ सिर्फ सुबह-शाम पानी भरने के लिए आना पड़ रहा है। महिलाओं को अगर नहाना भी हो तो तालाब में जाएं या फिर इस कुंए पर आएं।
- छुटनी देवी, स्थानीय निवासी