Move to Jagran APP

Lok Sabha Elections 2019 : कानों में आज भी गूंजती है भोंपू की आवाज

80 के दशक में चुनाव प्रचार का तरीका इतर था। उस समय राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता रिक्‍शे पर या पैदल ही मुंह में भोंपू लगाकर प्रचार करते थे। बदलते दौर के साथ अब प्रचार का तरीका भी बदला।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Thu, 14 Mar 2019 05:29 PM (IST)Updated: Thu, 14 Mar 2019 05:29 PM (IST)
Lok Sabha Elections 2019 : कानों में आज भी गूंजती है भोंपू की आवाज
Lok Sabha Elections 2019 : कानों में आज भी गूंजती है भोंपू की आवाज

प्रयागराज : 'सुनिए...सुनिए...सुनिए...। क्षेत्र का विकास करना है तो ईमानदार नेता को चुनिए। नेता ऐसा हो जो आपके अच्छे और बुरे दिन का साक्षी बने। हर पल आपका हाथ बंटाए। हमारा प्रत्याशी हर पल आपके कंधे से कंधा मिलाकर चलेगा...।' 1980 के चुनावी दौर में भोंपू से कुछ ऐसे ही शब्द गूंजते थे। राजनीतिक दल के कार्यकर्ता रिक्शे में बैठकर व पैदल टहलते हुए मुंह में भोंपू लगाकर प्रचार करते थे। यह कहना है वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. राजेंद्र कुमार का, जो अतीक के चुनाव की स्मृति को बताते हैं।

loksabha election banner

भोंपू की जगह 1990 में लाउडस्पीकर ने ले लिया स्थान

प्रो. राजेंद्र कुमार कहते हैं कि भोंपू की वह कर्णप्रिय आवाज आज भी मेरे कानों में गूंजती है। भोंपू का प्रचार तंत्र जिस मार्ग से गुजरता वहां उसे सुनने के लिए भीड़ जुट जाती थी। संचार क्रांति का दखल होने के बाद चुनाव का प्रचार तंत्र भी बदलने लगा। भोंपू की जगह 1990 में लाउडस्पीकर ने ले लिया। प्रत्याशी व उनके समर्थक अपनी आवाज को बुलंद करने के लिए लाउडस्पीकर के जरिए प्रचार करने लगे।

तीन दशक पूर्व में चुनाव प्रचार तंत्र सरल था

अगर देखा जाए तो दो-तीन दशक पहले चुनाव का प्रचार तंत्र सरल था। प्रत्याशी भी उसके अनुरूप ईमानदार हुआ करते थे। आज वैसा नहीं है। प्रो. राजेंद्र कहते हैं कि आज की राजनीतिक धन व बाहुबल पर आधारित हो गई है। प्रचार में पानी की तरह पैसा बहाया जाता है। प्रत्याशी घर-घर पहुंचने के बजाय समर्थकों को भेजकर काम चलाते हैं, जबकि पहले ऐसा नहीं था।

...प्रचार का यही तंत्र लोगों को नेताओं के करीब लाता था

प्रत्याशी हर घर में जाकर सबसे व्यक्तिगत रूप से मिलने का प्रयास करता था। प्रो. राजेंद्र कहते हैं कि प्रचार का यही तंत्र लोगों को नेताओं के करीब लाता था। मतदान से पहले वोटिंग की पर्चियां रातभर बनाकर घर-घर पहुंचाई जाती थी। प्रत्याशी स्वयं उस पर नजर रखते थे, आज वह नजर नहीं आता। वह कहते हैं कि यही कारण है कि मतदाताओं में वोटिंग के प्रति नीरसता आ गई है। ऐसा न हो, इसलिए हर राजनीतिक दल के लोगों को अपनी कार्यप्रणाली बदलनी चाहिए।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.