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मिशन 2019: किशनगंज से बांका तक महागठबंधन की प्रतिष्ठा दांव पर

लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान महागठबंधन के लिए महत्वपूर्ण है। पांच लोकसभा सीटों भागलपुर बांका पूर्णिया किशनगंज और कटिहार पर उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला होना है।

By Kajal KumariEdited By: Published: Tue, 12 Mar 2019 03:51 PM (IST)Updated: Wed, 13 Mar 2019 11:36 AM (IST)
मिशन 2019: किशनगंज से बांका तक महागठबंधन की प्रतिष्ठा दांव पर
मिशन 2019: किशनगंज से बांका तक महागठबंधन की प्रतिष्ठा दांव पर
पटना [सुनील राज]। लोकसभा चुनाव का दूसरा चरण महागठबंधन प्रत्याशियों की अग्निपरीक्षा लेगा। इस चरण में पांच लोकसभा सीटों भागलपुर, बांका, पूर्णिया, किशनगंज और कटिहार पर उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला होना है।  इन पांच महत्वपूर्ण सीटों में दो राजद के कब्जे में हैं तो दो कांग्रेस के पास। पांचवी सीट जदयू के पाले में है। 
महागठबंधन इस बार फिर अपनी चार सीटों पर जीत कायम रखने का प्रयास करेगा ।  इस लिहाज से वह प्रत्याशियों को बदलने की बजाय इन्हीं पर विश्वास कर रहा है। महागठबंधन में फिलहाल सीटों का बंटवारा नहीं हुआ है, मगर माना जा रहा है कि इन सीटों के तालमेल पर कोई समस्या नहीं होगी। 
बता दें कि किशनगंज सीट पर कई दलों के नेता चुनाव लड़ चुके हैं। यहां हमेशा ही बाहरी बनाम स्थानीय का मुद्दा उठता रहा है।
किशनगंज सीट से भाजपा नेता शाहनवाज हुसैन 1999 में जीते और संसद पहुंचे। उन्होंने राजद नेता तस्लीमुद्दीन को शिकस्त दी। पर 2004 के चुनाव में शाहनवाज तस्लीमुद्दीन से हार गए। इसके बाद 2009 और 2014 में कांग्रेस नेता मौलाना असरार-उल-हक कासमी ने चुनाव जीता।
कासमी का निधन दिसंबर 2018 में होने की वजह से फिलवक्त यह सीट रिक्त हैं। आम चुनाव नजदीक होने की वजह से यहां उप चुनाव नहीं कराए गए। माना जा रहा है कि इस बार भी किशनगंज सीट बंटवारे में कांग्रेस के पाले में ही आएगी।  
कटिहार सीट को तारिक अनवर का गढ़ माना जाता है। तारिक अनवर इस सीट से पांच बार सांसद रहे हैं। तारिक अब राकांपा को अलविदा कह कांग्रेस के साथ जुड़ गए हैं। महागठबंधन एक बार फिर तारिक पर विश्वास करेगा और उन्हें कटिहार से अपना उम्मीदवार बनाकर मैदान में उतारेगा ऐसी उम्मीद की जा सकती है।  
भागलपुर लोकसभा सीट से इस वक्त राष्ट्रीय जनता दल के शैलेश कुमार उर्फ बुलो मंडल सांसद हैं। बुलो मंडल की इस जीत को इसलिए महत्वपूर्ण माना जा सकता है क्योंकि उन्होंने यहां से पिछले चुनाव भाजपा प्रत्याशी सैयद शाहनवाज हुसैन की शिकस्त दी। इस लिहाज से राजद से उनका टिकट पक्का माना जा रहा है।
इसी तरह बांका सीट कभी जदयू नेता दिग्विजय सिंह जीत दर्ज कराते थे। उनके निधन के बाद 2010 के उपचुनाव में उनकी पत्नी बांका से प्रत्याशी बनाई गई और चुनाव जीत गईं। लेकिन, 2014 के चुनाव में पुतुल देवी ने निर्दलीय चुनाव लड़ा तो राजद प्रत्याशी रहे जयप्रकाश नारायण यादव ने उन्हें करीब दस हजार मतों से पराजित किया। 
पूर्णिया सीट पर पिछला चुनाव जदयू-भाजपा ने अलग-अलग लड़ा था। भाजपा ने उदय सिंह को अपना उम्मीदवार बनाकर मैदान में उतारा तो जदयू ने संतोष कुमार कुशवाहा को टिकट दिया था। जदयू प्रत्याशी पर जनता ने विश्वास जताया और उनकी झोली में जीत डाल दी। 

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