Move to Jagran APP

मिशन 2019: सवर्ण आरक्षण पर RJD का U-turn, चुनाव में भारी पड़ सकता विरोध

केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा दिए गए सवर्ण आरक्षण पर राजद ने पहले विरोध का रूख अख्तियार किया, लेकिन अब वह इसके साथ खड़ा है। राजद के बदले स्‍टैंड के निहितार्थ टटोलती खबर।

By Amit AlokEdited By: Published: Mon, 21 Jan 2019 10:51 AM (IST)Updated: Mon, 21 Jan 2019 10:59 PM (IST)
मिशन 2019: सवर्ण आरक्षण पर RJD का U-turn, चुनाव में भारी पड़ सकता विरोध
मिशन 2019: सवर्ण आरक्षण पर RJD का U-turn, चुनाव में भारी पड़ सकता विरोध

पटना [अरविंद शर्मा]। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा गरीब सवर्णों के दिए गए 10 फीसद आरक्षण के मुद्दे पर संसद के दोनों सदनों में राष्‍ट्रीय जनता दल (राजद) के विरोध पर पहला सवाल खड़ा होता है कि लालू प्रसाद यादव की पार्टी ने ऐसा क्यों किया? क्या अगले चुनाव में उन्हें इसका फायदा मिलेगा? उनके समर्थक क्या गोलबंद होकर राजद की जीत में सहायक बनेंगे? सवाल यह भी था कि पांच-दस साल पहले राजद के घोषणा पत्र में सवर्णों के लिए 10 फीसद आरक्षण के प्रस्ताव को शामिल करने वाले लालू के रणनीतिकारों ने मौका आने पर यू-टर्न क्यों लिया? और अगर एक बार स्टैंड ले लिया तो बाद में कन्फ्यूज क्यों हो गए? राज्यसभा में मनोज झा ने झुनझुना बजाकर केंद्र सरकार की जिस आरक्षण व्यवस्था को खारिज कर दिया, उसे महज दो दिन बाद ही रघुवंश प्रसाद सिंह ने पलट क्यों दिया?

loksabha election banner

राजद को हुआ अहसास: नहीं रहा मंडल-कमंडल की राजनीति का युग

शुरुआत आखिरी लाइन से ही करते हैं। रघुवंश प्रसाद का बयान बताता है कि कांग्रेस, हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) और राष्‍ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) के साथ चुनाव मैदान सजा रहे राजद के रणनीतिकारों को कुछ घंटे बाद ही अहसास हो गया कि अब मंडल-कमंडल की राजनीति का युग नहीं रहा। जिस धारा की राजनीति करके लालू ने सत्ता को 15 सालों तक अपने कब्जे में रखा, अब उसका दौर खत्म हो गया है।

मंडल कमीशन की सिफारिशों ने पलट दिए थे सभी समीकरण

दरअसल, 80 के दशक तक बिहार में सत्ता के शीर्ष पर सवर्णों का बोलबाला था। सियासत के पहिए उन्हीं के आसपास घूमते थे। किंतु मंडल कमीशन की सिफारिशों ने सारे समीकरण को पलट दिया, जिसकी फसल लालू की राजनीति ने अगले डेढ़ दशक तक काटी। लालू ने पिछड़ों में सत्ता और सियासत की भूख जगाई। उन्हें प्रोत्साहित किया। सपने दिखाए और खुद के लिए रास्ते बनाए।

समाजशास्त्र के हिसाब से सत्ता और सियासत का एक चक्र जब पूरा हो गया और मंडल का उभार थम गया तो लालू की सत्ता को पिछड़ों से ही चुनौती मिलने लगी। नीतीश कुमार की कोशिशों से लालू पार नहीं पा सके और सत्ता में भागीदारी के लिए जगह खाली करनी पड़ी।

सवर्ण वोटों के लिए राजद को बदलना पड़ा स्‍टैंड

उसके बाद सवर्ण सियासत धीरे-धीरे हाशिये की ओर प्रस्थान कर गई। अब सवर्ण, वोट बैंक से ज्यादा नहीं रह गए हैं। ऐसे में लोकसभा चुनाव की तैयारी कर रहे लालू के सवर्ण सिपहसालारों को जब वोट की चोट का डर सताने लगा तो राजद के स्टैंड की दोबारा समीक्षा की गई। रघुवंश प्रसाद सिंह और जगदानंद सिंह को नुकसान की आशंका दिखने लगी। रघुवंश का चुनाव क्षेत्र वैशाली है और जगदानंद का बक्सर। दोनों क्षेत्रों में सवर्ण वोटरों की अच्छी तादाद है। जाहिर है, अपने वोट बैंक की चिंता में राजद के रणनीतिकारों को पलटना पड़ा।

आर्थिक तौर पर कमजोर वर्गों के लिए है व्‍यवस्‍था

सामाजिक विश्लेषक और प्रसिद्ध कथाकार प्रेम कुमार मणि राजद के संदर्भ में फायदे और नुकसान की गणित से अलग नजरिए से देखते हैं। पहले तो वह खारिज करते हैं कि यह कोई सवर्ण आरक्षण है। उनके मुताबिक यह व्यवस्था आर्थिक तौर पर कमजोर वर्गों के लिए है, जिसमें अलग-अलग राज्यों के जाट, पटेल, बनिया एवं कुर्मी भी आएंगे। प्रेम कुमार मणि के मुताबिक राजद ने आरक्षण लागू करने के तरीके पर सवाल उठाया है और आबादी के हिसाब सबके लिए उचित भागीदारी की मांग की है। इसमें विरोध जैसी कोई बात नहीं है।

तेजस्‍वी से अलग दिखी रघुवंश की लाइन

प्रेम कुमार मणि का हिसाब चाहे जो हो, लेकिन राजद में आधिकारिक बयानों को लेकर शीर्ष स्तर की कवायद को चुनावी नजरिए से ही देखा जा रहा है। तेजस्वी यादव एवं मनोज कुमार झा के बयान की लाइन एक दिखती है, लेकिन रघुवंश प्रसाद सिंह की लाइन दूसरी तरफ जाती दिख रही है।

2015 में अगड़ों व पिछड़ों में बंट गई थी राजनीति

राजद के सवर्ण नेताओं के स्टैंड से अलग पार्टी के आधिकारिक स्टैंड को समझने के लिए थोड़ा पीछे जाने की जरूरत है। 2015 के विधानसभा चुनाव में लालू ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के खिलाफ समाज को स्पष्ट तौर पर दो धाराओं में बांट दिया था। नीतीश कुमार के साध गठबंधन करके मैदान में उतरे लालू ने अपने समर्थकों को समझा दिया था कि यह चुनाव अगड़ा-पिछड़ा के मुद्दे पर लड़ा जा रहा है।

इस बार नहीं हो सकती 2015 की पुनरावृत्ति

किंतु अबकी नीतीश कुमार के भाजपा के साथ चले जाने के कारण 2015 की पुनरावृत्ति नहीं हो सकती है, लालू को यह बेहतर पता है। इसलिए राजद के लिए एक-एक वोट की कीमत होगी। खासकर उस स्थिति में जब महागठबंधन में कांग्रेस, हम और रालोसपा जैसी पार्टियों को सवर्णों से भी उतनी ही उम्मीदें हैं। जाहिर है, सवर्ण आरक्षण के मुद्दे को जितना उछाला जाएगा, राजद के सहयोगी दलों को उतना ही नुकसान उठाना पड़ सकता है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.