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LokSabha Election 2019: ... और काम नहीं आया मैडम का 0+0+0=0 का फंडा

प्रो. रीता वर्मा चार बार से लगातार जीत रही थीं। वाजपेयी सरकार में कोयला व ग्रामीण विकास समेत कई विभागों की मंत्री रह चुकी थीं।

By mritunjayEdited By: Published: Sun, 07 Apr 2019 07:33 PM (IST)Updated: Mon, 08 Apr 2019 08:28 AM (IST)
LokSabha Election 2019: ... और काम नहीं आया मैडम का 0+0+0=0 का फंडा
LokSabha Election 2019: ... और काम नहीं आया मैडम का 0+0+0=0 का फंडा

धनबाद, जेएनएन। 2004 के लोकसभा चुनाव ने देशभर की तरह धनबाद के लोगों को भी चौंका दिया था। तब देश भर में वाजपेयी सरकार के कार्यकलापों के आधार पर चुनाव लड़ा गया। भाजपा के रणनीतिकारों का मानना था कि देश भर में फील गुड का माहौल है। वे पूर्ण बहुमत से सत्ता में लौटेंगे। कुछ ऐसा ही ख्याल भाजपा की स्थानीय प्रत्याशी प्रो. रीता वर्मा का भी था। उनके मुकाबिल थे कांग्रेस के चंद्रशेखर दुबे, हमेशा से उनके प्रतिद्वंद्वी रहे माक्र्सवादी समन्वय समिति (मासस) के एके राय और झारखंड वनांचल कांग्रेस के समरेश सिंह। 

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प्रो. रीता वर्मा चार बार से लगातार जीत रही थीं। वाजपेयी सरकार में कोयला व ग्रामीण विकास समेत कई विभागों की मंत्री रह चुकी थीं। सीएमपीएफ गेस्ट हाउस में पत्रकार वार्ता में उनसे प्रतिद्वंद्वियों से मिल रही कड़ी टक्कर के बावत सवाल पूछा। वर्मा ने कड़ी टक्कर को सिरे से नकार दिया। आत्मविश्वास से लबरेज वर्मा ने कहा कि सभी प्रत्याशी उनके सामने जीरो हैं। गणित में 0+0+0=0 होता है। उन्होंने अपनी कई जनसभाओं में भी इस बात को दोहराया। उन्हीं की तरह आत्मविश्वास से लबरेज उनकी पार्टी भी जमीनी हकीकत को जाने बगैर कारपेट बांबिंग करती चली गई। लेकिन परिणाम ठीक उल्टा निकला। प्रो. वर्मा को कांग्रेस के चंद्रशेखर दुबे ने करारी शिकस्त दी।

प्रो. वर्मा की एक लाख 19 हजार 378 वोटों से हार हुई थी। कांग्रेस प्रत्याशी चंद्रशेखर दुबे उर्फ ददई दुबे को तीन लाख 55 हजार 499 वोट मिले थे जबकि प्रो. रीता वर्मा को दो लाख 36 हजार 121 मतों से ही संतोष करना पड़ा था। इस चुनाव के बाद प्रो. वर्मा को फिर चुनाव में टिकट भी नहीं मिला। वर्ष 2009 में भाजपा ने उनका टिकट काट कर पीएन सिंह को थमा दिया जिनके नेतृत्व में पार्टी ने वर्ष 09 में तो चुनाव जीता ही 2014 में तो सर्वाधिक मतों से जीतने का रिकॉर्ड ही बना दिया। सिंह इस बार भी मैदान में हैं और तिकड़ी लगाने के ख्वाब देख रहे हैं। जबकि प्रो. रीता वर्मा लगभग नेपथ्य में चली गई हैं।


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