महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव की भूमिका तैयार करेंगे लोकसभा चुनाव के परिणाम
Lok Sabha elections 2019. महाराष्ट्र में 2019 के लोकसभा चुनाव परिणाम न सिर्फ देश की सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेंगे।
मुंबई, ओमप्रकाश तिवारी। उत्तर प्रदेश के बाद सर्वाधिक सीटों वाले महाराष्ट्र में 2019 के लोकसभा चुनाव परिणाम न सिर्फ देश की सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेंगे, बल्कि छह माह बाद ही होने जा रहे राज्य विधानसभा चुनावों की भूमिका भी तैयार करेंगे।
चुनाव परिणाम आने के दो दिन पहले, यानी मंगलवार को ही सूबे के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने सभी किसानों की कर्जमाफी करने के संकेत दे दिए हैं। अगले माह शुरू हो रहे विधानमंडल के मानसून सत्र से पहले ही मंत्रिमंडल विस्तार की सुगबुगाहट भी होने लगी है। ये संकेत हैं कि सरकार छह माह बाद होने जा रहे विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुट गई है। माना जा रहा है कि प्रदेश भाजपा 23 मई को आने वाले चुनाव परिणामों से उपजे जोश से ही विधानसभा चुनाव के लिए अपने अभियान की शुरुआत कर देगी। ज्यादातर एक्जिट पोल ने महाराष्ट्र में भाजपा-शिवसेना गठबंधन को 34 से 44 के बीच सीटें मिलती दिखाई हैं, जबकि 48 सीटों वाले इस सूबे में 2014 में इस गठबंधन को 42 सीटें मिली थीं।
2014 के लोकसभा चुनाव साथ-साथ लड़ने के बाद विधानसभा चुनाव में ही शिवसेना-भाजपा गठबंधन टूट गया था। शिवसेना सरकार बन जाने के कुछ माह बाद सरकार में शामिल तो हुई, लेकिन भाजपा के साथ उसकी तनातनी लगभग साढ़े चार साल तक चलती रही है। भाजपा-शिवसेना के बीच की इस फुटमत से कांग्रेस-राकांपा को बड़ी उम्मीदें बंधी थीं। दोनों विपक्षी दल उसी के अनुसार साथ मिलकर भाजपा और शिवसेना को परास्त करने की रणनीति भी बना रहे थे। लेकिन फरवरी मध्य में न सिर्फ शिवसेना-भाजपा में लोकसभा चुनावों के लिए पुन: गठबंधन हो गया, बल्कि कांग्रेस-राकांपा की शेष दलों को साथ लेकर चुनाव लड़ने की योजना भी सफल नहीं हो सकी।
डॉ. भीमराव आंबेडकर के पौत्र प्रकाश आंबेडकर ने एमआइएम के साथ मिलकर वंचित बहुजन आघाड़ी का गठन कर लिया, तो दूसरी ओर उत्तर प्रदेश में हुए सपा-बसपा गठबंधन का असर महाराष्ट्र में भी दिखा और यहां भी दोनों दलों ने गठबंधन कर लिया। 2018 में हुए भीमा-कोरेगांव कांड के बाद से ही सूबे की दलित राजनीति में प्रकाश आंबेडकर का पलड़ा रामदास आठवले जैसे दूसरे दलित नेताओं से भारी हो गया था। एमआइएम के साथ आ जाने से आंबेडकर की ताकत और बढ़ गई। दूसरी ओर 2004 के लोकसभा चुनाव में राज्य की करीब एक चौथाई सीटों पर अपनी ताकत दिखा चुकी बसपा व सदैव मुस्लिमों की आवाज उठाते रहे अबू आसिम आजमी के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र समाजवादी पार्टी के गठबंधन ने भी लगभग सभी सीटों पर उम्मीदवार खड़े कर दिए।
हालांकि कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस ने महाराष्ट्र की राजनीति में लगभग हाशिए पर पहुंच चुके राज ठाकरे को लेकर शिवसेना के मराठी मतों में सेंध लगाने की कोशिश जरूर की। कांग्रेस और राकांपा के समर्थन में हुई राज ठाकरे की रैलियों में लोग भी उन्हें सुनने के लिए बड़ी संख्या में जुटते रहे। लेकिन एक्जिट पोल में भाजपा-शिवसेना गठबंधन को मिलने वाली सीटों की दिखाई जा रही संख्या से यह कतई नहीं लगता कि राज ठाकरे का कोई विशेष असर मराठी मतदाताओं पर हुआ हो। इसके विपरीत आंबेडकर-ओवैसी की वंचित विकास आघाड़ी एवं सपा-बसपा गठबंधन के उम्मीदवार पूरे राज्य में सेक्युलर मतों के बंटवारे में बड़ी भूमिका निभाते दिखाई दे रहे हैं।
लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप