महाराष्ट्र: शिवसेना-भाजपा गठबंधन की असली परीक्षा अब, सफलता को दोहराना बनी बड़ी चुनौती
महाराष्ट्र में शिवसेना-भाजपा गठबंधन ने शानदार सफलता दर्ज की है लेकिन विस चुनाव में इस सफलता को दोहराना इस गठबंधन के लिए बड़ी चुनौती होगी।
मुंबई, ओमप्रकाश तिवारी। महाराष्ट्र में शिवसेना-भाजपा गठबंधन ने लोकसभा चुनाव में पिछला प्रदर्शन दोहराते हुए शानदार सफलता दर्ज की है। लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती, बल्कि शुरू होती है। कुछ ही महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में गठबंधन बरकरार रखते हुए इसी सफलता को दोहराना इन दोनों दलों के लिए एक बड़ी चुनौती होगी।
लोकसभा चुनाव के लिए तो 2014 में भी शिवसेना-भाजपा के बीच गठबंधन था। लेकिन कुछ ही महीने बाद हुए विधानसभा चुनाव में तनातनी ऐसी बढ़ी कि 25 साल पुराना गठबंधन टूट गया था। दोनों दलों के बीच तब से शुरू हुआ कटुता का अध्याय इस वर्ष फरवरी तक जारी रहा। हालांकि पिछले विधानसभा चुनाव के कुछ माह बाद शिवसेना भाजपानीत सरकार में शामिल हो गई थी। लेकिन सरकार में रहते हुए भी उसके तेवरों में कोई फर्क नहीं आया।
साढ़े चार साल तक शिवसेना कभी अपने मुखपत्र "सामना" के जरिये तो कभी प्रत्यक्ष बयान देकर प्रधानमंत्री मोदी के साथ-साथ केंद्र व राज्य सरकार को घेरती आई। राज्य की राजनीति में भाजपा का वर्चस्व शिवसेना बर्दाश्त नहीं कर पाती। परिस्थितियां फिर वैसी ही बन रही हैं। लोकसभा चुनाव हो चुके हैं। सूबे के सभी दलों को विधानसभा चुनाव केलिए तुरंत कमर कसनी होगी। शिवसेना-भाजपा को भी लोकसभा चुनाव में हुआ गठबंधन बरकरार रखने के लिए फिर साथ बैठना होगा। दोनों के बीच सीटों के लिए खींचतान शुरू होगी।
करीब 30 साल पहले शिवसेना-भाजपा के बीच गठबंधन करते के समय तय हुआ था कि केंद्र की राजनीति में भाजपा अधिक सीटों पर लड़ेगी, जबकि प्रदेश में शिवसेना। इसी नीति के तहत लंबे समय तक शिवसेना राज्य की 288 विधानसभा सीटों में से 171 सीटों पर और भाजपा 117 सीटों पर लड़ती रही। शिवसेना अधिक सीटों पर लड़ती थी, तो अधिक सीटें जीतती भी थी। हालांकि लड़ी गई सीटों पर जीत का फीसद भाजपा का ही बेहतर रहता था। लेकिन सीटों की कुल संख्या में पीछे रह जाने के कारण भाजपा मुख्यमंत्री पद की दावेदारी में पीछे रह जाती थी। 2014 के विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा बराबरी की सीटों पर लड़कर अधिक सीटें जीतने वाले को मुख्यमंत्री पद देने की मांग पर अड़ गई। जबकि शिवसेना इस पर सहमत नहीं थी।
यही मुद्दा गठबंधन टूटने का बहाना बना। दोनों दल अलग-अलग लड़े। भाजपा को 122 सीटें मिलीं और शिवसेना 63 पर सिमट गई थी। अब 2019 के विधानसभा चुनाव से पहले दोनों दलों में गठबंधन की बातचीत शुरू होने पर सीटों का मसला फिर फंसेगा। माना जा रहा है कि भाजपा बराबरी की सीटों पर लड़ने का फार्मूला पेश करेगी, साथ ही रिपब्लिकन पार्टी जैसे कुछ साथी दलों को भी अपने-अपने हिस्से से सीटें देने की बात करेगी। जबकि शिवसेना में सूबे में अपना बड़प्पन कायम रखना चाहेगी।
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