Lok Sabha Election 2019 : सहानुभूति की लहर के आगे कांग्रेस का दुर्ग नहीं भेद पाए रामदेव दुबे
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सहानुभूति की लहर इस कदर उठी कि उसमें लोकदल के प्रत्याशी रामदेव दुबे भी फंस गए। वह कांग्रेस प्रत्याशी को पराजित नहीं कर सके।
प्रतापगढ़ : मछलीशहर संसदीय क्षेत्र से बाहर निकल कर प्रतापगढ़ संसदीय क्षेत्र में ताल ठोंकने वाले बीरापुर के पूर्व विधायक प्रो. रामदेव दुबे 1984 में कांग्रेस का दुर्ग नहीं भेद पाए। इंदिरा गांधी की हत्या से उपजी सहानुभूति लहर की बदौलत कांग्रेस प्रत्याशी राजा दिनेश सिंह जीत की हैट्रिक लगाने में कामयाब रहे और रामदेव को हार का सामना करना पड़ा।
बेल्हा राजा रजवाड़ों की धरती है। प्रतापगढ़ संसदीय सीट के चुनाव में राजघरानों की दिलचस्पी भी कम नहीं रहती। प्रतापगढ़ संसदीय क्षेत्र से 1952 व 1957 में पं. मुनीश्वर दत्त उपाध्याय ने कांग्रेस के टिकट से जीत दर्ज की। वर्ष 1962 में राजा अजीत प्रताप सिंह ने जनसंघ के टिकट से जीत दर्ज कर कांग्रेस के विजय रथ को रोका। 1967 व 1973 में राजा दिनेश सिंह ने कांग्रेस को जीत दिलाई। 1977 में जनता पार्टी के टिकट से रूपनाथ यादव को सफलता मिली। 1980 में अजीत प्रताप सिंह ने कांग्रेस को जीत दिलाई।
1984 के लोकसभा चुनाव में लोकदल प्रत्याशी रामदेव दुबे थे
वर्ष 1984 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी राजा दिनेश ङ्क्षसह के सामने थे लोकदल प्रत्याशी रामदेव दुबे। इससे पहले प्रो. रामदेव दुबे 1967,1969 में संसोपा व 1977 में जनता पार्टी से बीरापुर के विधायक रह चुके थे। धुरंधर राजनीतिज्ञ माने जाने वाले रामदेव दुबे पहले मछलीशहर संसदीय क्षेत्र में लोकसभा चुनाव में किस्मत आजमाई। जब उन्हें सफलता नहीं मिली तो वह प्रतापगढ़ संसदीय क्षेत्र में किस्मत आजमाने निकल पड़े।
इंदिरा की हत्या से कांग्रेस के पक्ष में सहानुभूति की लहर चली
समाजवादी विचारधारा प्रभावित प्रो. रामदेव दुबे लोकदल के टिकट से कांग्रेस प्रत्याशी राजा दिनेश ङ्क्षसह के सामने थे। इंदिरा गांधी की हत्या की वजह से कांग्रेस के पक्ष में सहानुभूति की ऐसी लहर चली की राजा दिनेश ङ्क्षसह की रिकॉर्ड जीत हुई और रामदेव की करारी हार। राजा दिनेश सिंह ने यह चुनाव तकरीबन 2 लाख 32 हजार से अधिक के रिकॉर्ड मतों से जीता। रामदेव को तकरीबन 47 हजार से भी कम मत ही मिल सके थे। राजा दिनेश सिंह की इस जीत ने विपक्षियों की एकता के मंसूबों पर पानी फेरते हुए उन्हें चारों खाने चित कर दिया था।
...बाबूजी कहते थे चुनाव एक परीक्षा है
रामदेव दुबे के बेटे डॉ. महेंद्र दुबे का कहना है कि बाबूजी ने इसके पहले मछली शहर संसदीय क्षेत्र का भी चुनाव लड़ा था, लेकिन सफलता नहीं मिली थी। बाबूजी इरादे के पक्के थे और समाजवादी विचारधारा से जुड़े थे। चुनाव हारने के बाद भी बाबूजी ने हम सब को सिखाया था कि चुनाव भी एक परीक्षा की तरह होता है। इसमें हार-जीत तो होती रहती है। कभी मायूस नहीं होना चाहिए। उनका यह मंत्र आज हम सभी के लिए हर क्षेत्र में काम आ रहा है।
बीरापुर से रामदेव दुबे तीन बार विधायक रहे
बीरापुर व पट्टी दोनों विधानसभा क्षेत्र मछली शहर संसदीय क्षेत्र में था तो उस वक्त इन दोनों विधानसभा क्षेत्र मछली शहर लोकसभा के लिए काफी अहम माने जाते थे। बीरापुर से रामदेव दुबे तीन बार व एक बार उनकी पत्नी शिव कुमारी दुबे विधायक चुनी गईं थीं। इस क्षेत्र में प्रो. दुबे की दिग्गज नेताओं में गिनती हुआ करती थी। इस क्षेत्र में उनकी राजनीतिक आंधी का दौर आज भी बुजुर्गों को याद है।