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Lok Sabha Election Result: कांग्रेस की एक और करारी हार, आखिर कब सबक लेंगे राहुल गांधी!

पांच साल पहले कांग्रेस 44 के अंक पर पहुंच गई थी। दंभ और बेझिझक बयानबाजी और बेरोकटोक आरोपों के बाद अब पार्टी 52 पर टिकी है।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Sun, 26 May 2019 12:55 AM (IST)Updated: Sun, 26 May 2019 12:55 AM (IST)
Lok Sabha Election Result: कांग्रेस की एक और करारी हार, आखिर कब सबक लेंगे राहुल गांधी!
Lok Sabha Election Result: कांग्रेस की एक और करारी हार, आखिर कब सबक लेंगे राहुल गांधी!

नई दिल्ली, [प्रशांत मिश्र]। इसे हताशा कहा जाए या कोरा ड्रामा? अपमानजनक हार के दो दिन बाद ईमानदारी से जनादेश को स्वीकार कर सबकुछ दुरुस्त करने का साहस दिखाने की बजाय जिस तरह उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफे की पेशकश की वह किसी के गले नहीं उतर रहा है। क्या वह नहीं जानते कि वर्तमान कांग्रेस में यह साहस नहीं है कि कोई उनका इस्तीफा स्वीकार कर ले। क्या अच्छा नहीं होता कि वह कार्यसमिति में कहते कि बड़ी चूक हो गई कि वह मुद्दों को नहीं समझ पाए, वह यह नहीं तय कर पाए कि चुनाव राफेल जैसे हवाहवाई मुद्दों की बजाय जमीनी आधार पर लड़ा जाए।

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वह यह समझने में असमर्थ थे कि बालाकोट में हमारे सैनिकों के साहस पर उंगली उठाना गलत था। यह गलती हुई कि कांग्रेस के अंदर भी वरिष्ठों की राय लेकर बढ़ते और कम से कम औपचारिक रूप से विपक्षी दल का रुतबा हासिल करते। इस्तीफा उछालने की बजाय अगर उन्होंने अपनी गलतियों के लिए माफी मांग ली होती तो पार्टी के अंदर भी उनका कद बढ़ता और देश की जनता भी इस ईमानदार स्वीकारोक्ति को मानती। पर वह फिर चूक गए।

पांच साल पहले कांग्रेस 44 के अंक पर पहुंच गई थी। दंभ और बेझिझक बयानबाजी और बेरोकटोक आरोपों के बाद अब पार्टी 52 पर टिकी है। यानी इस बार भी पार्टी औपचारिक रूप से प्रतिपक्ष की पार्टी नही बन पाई है। 17 राज्यों में पार्टी खाता ही नहीं खोल पाई है। और इसमें वे राज्य भी शामिल हैं जहां कांग्रेस की सरकार है। क्या उन्हें महसूस नहीं हो रहा है कि उनकी डायनेस्टी(वंशवाद) वाली पार्टी डायनासोर की तरह लुप्त होने वाली पार्टी बनने की ओर अग्रसर है?

देश की सबसे पुरानी पार्टी सोच के स्तर पर भी पुरानी होती जा रही है। जनता से जुड़ाव खत्म होता जा रहा है। जब जनादेश को सिर आंखो पर लेना चाहिए और बड़े मन से आगे बढ़ने का संकल्प लेना चाहिए था तो वह इस्तीफे के बहाने सिर्फ खुद को ढाढस दे रहे हैं कि पार्टी उनके साथ खड़ी है, पार्टी ने उनका इस्तीफा अस्वीकार कर दिया है और विश्वास जताया है। क्या राहुल बता पाएंगे कि पार्टी मे ऐसा कोई बचा है जो साहस दिखाए। या फिर वर्तमान कार्यसमिति में कितने फीसद लोग थे जो खुद जीतकर आए। राहुल तो खुद भी पार्टी की परंपरागत सीट अमेठी गंवा चुके हैं।

अब केरल की जिस वायनाड सीट से जीतकर आए हैं उसके बारे मे भी सबको सबकुछ पता है। वायनाड मल्लापुरम का हिस्सा हुआ करता है जहां से जीएम बनातवाला सात बार संसद में प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। वह भी मलयालम नहीं जानते थे। मुंबई और दिल्ली में रहते थे और मल्लापुरम से जीतते थे। राहुल ने उसी वायनाड को अपनाया है। जाहिर है कि उन्हें खुद पर कितना विश्वास है। बगल में सोनिया गांधी थी और सामने बहन प्रियंका, आसपास हारे हुए चेहरे, फिर इस्तीफे पर मुहर कौन लगाता। क्या राहुल यह साहस दिखा पाएंगे कि निराश कार्यकर्ताओं के सामने जाकर अपने इस्तीफे की पेशकश करें?

उन्हें अच्छे से याद होगा कि पहले किस तरह कई स्थानों से उनकी जगह प्रियंका को आगे बढ़ाने बढ़ाने की बात नहीं उठती रही थी। अब जबकि खुद प्रियंका की क्षमता और प्रभाव का खोललापन भी साबित हो गया है तो कांग्रेस इस्तीफे को स्वीकार कर नेता माने भी तो किसे। हर किसी को इसका अहसास है कि इकट्ठे एक परिवार के ही साये में रहेंगे।

राजनीतिक मर्यादा को तार तार करते हुए एक बार राहुल गांधी न सुप्रीम कोर्ट को भी घसीट लिया था। चुनाव के वक्त फायदा उठाने की कोशिश हुई थी। बाद में उन्हें गलतबयानी के लिए लिखित रूप में माफी मांगनी पड़ी थी। अब तो चुनाव हो चुनाव हो चुका है, क्या बड़ा दिल दिखाते हुए वह गलतबयानी के लिए उनसे भी माफी मागेंगे जिसपर आरोप लगाया करते थे। आखिर उनके आरोपों को जनता ने तो नकार ही दिया है।

राहुल गांधी अगर सचमुच पार्टी की हार को ईमानदारी से स्वीकार करते हैं तो इस्तीफे की अधूरी पेशकश की बजाय उन्हें कार्यसमिति के समक्ष वादा करना चाहिए था कि अगला पांच साल वह पार्टी के लिए संकल्पित होंगे। वह पूरा वक्त पार्टी और कार्यकर्ताओं को देंगे और नकारात्मक राजनीति की बजाय समाज के लिए कोई सकारात्मक काम करेंगे।

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