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Lok Sabha Election 2019: लोहरदगा में सुदर्शन के लिए भाजपा ने निकाला ब्रह्मास्त्र; पढ़ें Reality Check

Lok Sabha Election 2019. कांटे के मुकाबले में फंसी लोहरदगा सीट को जीतने के लिए भाजपा बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जनसभा के जरिये वोटरों को साधेगी।

By Alok ShahiEdited By: Published: Wed, 24 Apr 2019 08:44 AM (IST)Updated: Wed, 24 Apr 2019 08:44 AM (IST)
Lok Sabha Election 2019: लोहरदगा में सुदर्शन के लिए भाजपा ने निकाला ब्रह्मास्त्र; पढ़ें Reality Check
Lok Sabha Election 2019: लोहरदगा में सुदर्शन के लिए भाजपा ने निकाला ब्रह्मास्त्र; पढ़ें Reality Check

लोहरदगा से आनंद मिश्र/संदीप कुमार। वैसे तो सुदर्शन चक्र स्वयं किसी भी अस्त्र की काट है, लेकिन लोहरदगा के चुनावी महासमर में सुदर्शन खुद फंसे हुए दिखते हैं। ऐसे में भाजपा ने अपने महारथी को संकट से उबारने के लिए ब्रह्मास्त्र निकाला है। ब्रह्मास्त्र जिसे युद्ध का आखिरी हथियार माना जाता है, हर संकट को हर कर यह युद्ध में विजय दिलाने का प्रतीक है।

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भाजपा का यह ब्रह्मास्त्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं जो बुधवार को लोहरदगा की धरती पर केंद्रीय मंत्री सुदर्शन भगत की मदद को आ रहे हैं। हवा का रुख बदलने में माहिर नरेंद्र मोदी बुधवार को झारखंड में इस लोकसभा चुनाव की अपनी पहली रैली करेंगे। सुदर्शन को घेर चुके महागठबंधन के योद्धा चुनावी रण में इस ब्रह्मास्त्र की कैसी काट ढूंढते हैं, सबकी निगाहें इसी पर लगी हैं। 

लोहरदगा संसदीय सीट कांटे की लड़ाई में फंसी है, इसका एहसास भाजपा को भी है। यही वजह है कि जिन तीन सीटों के लिए झारखंड में 29 अप्रैल को वोट डाले जाने हैं, उनमें अपने अचूक अस्त्र का इस्तेमाल भाजपा ने लोहरदगा में ही किया। भाजपा ने चुनावी जनसभा को लेकर अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। प्रदेश के शीर्ष नेताओं ने लोहरदगा में कैंप कर रखा है और तैयारियों का जायजा ले रहे हैं। पूरे शहर में भाजपा के झंडे लहरा रहे हैं। सभा स्थल बीएस कालेज मैदान पूरी तरह भगवा रंग में रंगा हुआ है। सुरक्षा के मद्देनजर बड़े पैमाने पर पुलिस बल की तैनाती की गई है। इतनी पुलिस लोहरदगा में शायद ही कभी देखी गई हो।

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लोहरदगा संसदीय सीट पर हमेशा से कांटे का मुकाबला होता आया है, इसकी बानगी हैं पिछले कुछ चुनाव। पिछले चुनाव में भाजपा ने यहां महज साढ़े छह हजार वोटों से जीत हासिल की थी, जबकि 2009 में भी यह आंकड़ा दस हजार वोटों से कम का था। जाहिर है यहां विपरीत परिस्थिति में भी कांग्रेस ने अपनी जमीन नहीं खोई है।

इंडिया शाइनिंग के नारे के बीच 2004 में कांग्रेस के डा. रामेश्वर उरांव ने बड़े अंतर से जीत हासिल की थी। हालांकि कांग्रेस के लिए भी यहां सबकुछ सामान्य नहीं हैं। यहां कांग्रेस की ताकत ही उसकी कमजोरी भी है। बताया जा रहा है कि टिकट की दौड़ में सुखदेव भगत ने अपने जिन साथियों को पीछे छोड़ा था, वे अब तक पूरे मन से चुनाव में नहीं लगे हैं।

मुद्दों की काट ढूंढनी होगी मोदी को

लोहरदगा सीट हाइप्रोफाइल है लेकिन यहां के मुद्दे निहायत ही जमीनी और आम लोगों की समस्याओं से जुड़े हैं। सरना धर्म कोड को महागठबंधन अपने प्रमुख हथियार के रूप में लेकर चुनाव में उतरा है। कांग्रेस प्रत्याशी सुखदेव भगत झारखंड विधानसभा में भी इस मुद्दे को उठाते आए हैं। मुख्यमंत्री रघुवर दास को भी इस अहम मुद्दे का भान है कि कैसे यह पैरों के नीचे की जमीन खींच सकता है। यही वजह है कि हाल ही के अपने लोहरदगा के दौरों में सीएम ने खुद भरोसा दिलाया है कि आने वाले समय में हम सरना धर्म कोड को लागू करेंगे। धर्म कोड के अलावा भी लोहरदगा में मुद्दों की भरमार है।

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रोजगार का अभाव व पलायन के साथ बाक्साइट आधारित उद्योग यहां की मुख्य मुद्दा है, जो आज तक पूरा नहीं हुआ। लोहरदगा व गुमला का एनएच और बाईपास तो मुद्दा है ही। लोहरदगा से लंबी दूरी की ट्रेन और गुमला के रास्ते कोरबा तक रेल लाइन की मांग भी अब तक अधूरी है। अब नजर इस पर होगी कि प्रधानमंत्री अपनी रैली में इन मुद्दों की क्या काट ढूंढते हैं। भाजपा प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव कहते हैं कि प्रधानमंत्री की सभा भाजपा की सौ फीसद जीत की गारंटी है। कांग्रेस प्रत्याशी सुखदेव भगत की मानें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जनसभा से कांग्रेस को कोई फर्क पडऩे वाला नहीं हैं।

जातीय गणित

लोहरदगा का जातीय गणित बेहद रोचक है। आदिवासी बहुल इस सीट पर भाजपा और कांग्रेस ने जिन दिग्गजों को उतारा है वे जातिगत आधार पर अपने-अपने समीकरण बुन रहे हैं। यहां सर्वाधिक आबादी आदिवासियों की है, जिस पर भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दावा करते हैं। करीब दो लाख मुसलमानों से कांग्रेस को आस है। इसाईयों को तो कांग्रेस अपना परंपरागत वोट मानती ही है। सामान्य जाति के मतदाताओं का बड़ा हिस्सा भाजपा के पक्ष में जा सकता है।

चमरा लिंडा-देव कुमार धान फैक्टर

झामुमो विधायक चमरा लिंडा इस बार चुनाव मैदान में नहीं हैं। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़कर उन्होंने एक लाख से अधिक मत प्राप्त किए थे। वे तीसरे स्थान पर थे। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो डा. रामेश्वर उरांव की हार में चमरा लिंडा का बड़ा हाथ था। ईसाई और आदिवासी मतों का धुव्रीकरण कर उन्होंने भाजपा की राह आसान कर दी थी। चमरा के मैदान में न होने से कांग्रेस राहत महसूस कर रही लेकिन इस बार मांडर के देव कुमार धान कांग्रेस की परेशानी बढ़ा सकते हैं।

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