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Lok Sabha Election 2019 : एक वक्त था जब बेहद आसानी से जुड़ जाता था लोगों का नाम

वोटर लिस्ट में नाम जुड़वाने की प्रक्रिया पर नजर डालें तो पता चलेगा कि पहले यह प्रक्रिया बेहद आसान थी। हवीं अब नाम जुड़वाना आसान नहीं रह गया है।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Tue, 30 Apr 2019 12:14 PM (IST)Updated: Tue, 30 Apr 2019 12:14 PM (IST)
Lok Sabha Election 2019 : एक वक्त था जब बेहद आसानी से जुड़ जाता था लोगों का नाम
Lok Sabha Election 2019 : एक वक्त था जब बेहद आसानी से जुड़ जाता था लोगों का नाम

प्रयागराज : वर्तमान में मतदाता सूची में नाम दर्ज कराने की प्रक्रिया जटिल है लेकिन वक्त वह भी था जब नाम बेहद आसानी से मतदाता सूची में दर्ज हो जाता था। लोकसभा या विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया शुरू होने के काफी पहले यह काम शुरू हो जाता था। खास बात यह भी थी कि तब लोगों को अफसरों के चक्कर नहीं लगाने होते थे, बल्कि कर्मचारी खुद घर पर जाकर तय प्रोफॉर्मा पर नाम लिखकर ले जाते थे और उसे मतदाता सूची में अंकित कर दिया जाता था। 

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अब नाम जुड़वाने की लंबी और कठिन हो गई है प्रक्रिया

वर्तमान में मतदाता सूची में नाम दर्ज कराने की प्रक्रिया काफी बदल चुकी है। मतदाता सूची में नाम दर्ज करना आसान नहीं होता। फॉर्म-6 भरना होता है और उसके साथ पहचान पत्र भी लगाकर बीएलओ को देना होता है। बीएलओ संबंधित आवेदक के घर जाकर जांच करते हैैं और अपनी रिपोर्ट लगाकर रजिस्ट्रार कानूनगो को देते हैैं। रजिस्ट्रार कानूनगो जांच के बाद उसे तहसीलदार को भेजते हैैं। तहसीलदार एडीएम के पास भेजते हैैं। फिर आवेदन को कंप्यूटर ऑपरेटर के पास भेजा जाता है, जहां फॉर्म स्कैन होता है।

ऐसा जुड़ता है मतदाता का नाम

स्कैन के बाद निर्वाचन आयोग की साइट खोलकर फिर उसमें संबंधित विधानसभा की साइट खोली जाती है, उसके बाद उस विधानसभा के भाग संख्या में जाकर मतदाता का नाम जोड़ा जाता है। फिर मतदाता को क्रम संख्या आवंटित होती है। करीब तीन दशक पहले तक ऐसा नहीं था। मतदाता सूची में नाम दर्ज कराने के लिए लोगों को कार्यालय तक जाने की जरूरत नहीं पड़ती थी। 

वरिष्ठ समाजवादी नेता कृष्ण कुमार ने बताई पुरानी प्रक्रिया 

वरिष्ठ समाजवादी नेता कृष्ण कुमार श्रीवास्तव बताते हैैं कि मतदाता सूची में नाम जोडऩे के लिए प्राथमिक विद्यालयों के शिक्षकों की ड्यूटी लगाई जाती थी। तहसील से कार्बन कॉपी के साथ प्रोफॉर्मा दिया जाता था। शिक्षक उसे लेकर लोगों के घरों में पहुंचते थे। वहां मुखिया से मतदाताओं के बारे में जानकारी लेते थे, जिनका नाम मतदाता सूची में नहीं होता था, उनका प्रोफॉर्मा में नाम लिखते थे। हर घर से अलग-अलग प्रोफॉर्मा पर नाम लिखने के बाद उस पर अपने हस्ताक्षर कर कार्बन कॉपी मुखिया को दे देते थे और मूल प्रति पर उनके हस्ताक्षर करा लेते थे। फिर यह प्रोफॉर्मा तहसीलदार को सौंप देते थे, जिसके बाद नाम मतदाता सूची में दर्ज हो जाता था। 


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