Loksabha Election 2019: पोलिंग बूथ तक पहुंचने को चढ़ना होगा 'पहाड़'
टिहरी गढ़वाल संसदीय क्षेत्र में आज भी 50 पोलिंग बूथ ऐसे हैं जिन तक पहुंचने के लिए पांच किलोमीटर से लेकर 18 किलोमीटर तक की खड़ी चढ़ार्इ चढ़नी पड़ती है।
नर्इ टिहरी, दीपक श्रीयाल। बदलाव के दौर में बैलेट से ईवीएम(इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) पर आ गए। पोलिंग पार्टियां वोटर वैरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल से(वीवीपैट) मतदान करने लगीं। लेकिन पर्वतीय क्षेत्र में पोलिंग बूथ तक पहुंचने की राह आज तक नहीं बदल पार्इ है।
उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल संसदीय क्षेत्र में आज भी पचास पोलिंग बूथ ऐसे हैं, जिन तक पहुंचने के लिए पांच किलोमीटर से लेकर 18 किलोमीटर तक की खड़ी चढ़ार्इ चढ़नी पड़ती है। यह चढ़ार्इ जनता और पोलिंग पार्टियों दोनों को ही पार करनी पड़ती है। इन बूथों पर सिर्फ इतना बदलाव आया कि पहले यहां घोड़े-खच्चरों से बैलेट पेपर और मतपेटियां पहुंचार्इ जाती थी और अब वीवीपैट मशीनें पहुंचार्इ जाएंगी।
टिहरी गढ़वाल संसदीय क्षेत्र में चौदह में से छह विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं, जहां सड़कों के इंतजार में सुदूरवर्ती गांवों के लोगों की आंखें पथरा गर्इ हैं। संसदीय क्षेत्र के कुछ गांव तो ऐसे हैं, जहां पहुंचने के लिए ग्रामीणों को पूरे दिन चलना पड़ता है। पहाड़ सी जिंदगी जी रहे ग्रामीणों के लिए भले ही यह दुश्वारी उनकी नियति बन चुकी हो, लेकिन चुनाव के दौरान पोलिंग पार्टियों को भी इन गांवों में स्थित पोलिंग बूथों तक पहुंचने के लिए हांफना पड़ता है। टिहरी संसदीय क्षेत्र में सबसे अधिक पैदल दूरी पर पड़ने वाले पोलिंग बूथों में पिलंग, जौड़ाव, ओसला, लिवाड़ी, उदावां, राला, कासला आदि शामिल हैं।
इनमें पिलंग पोलिंग बूथ 18 किलोमीटर और ओसला 16 किलोमीटर दूर है। जहां पैदल पहुंचने में सात से आठ घंटे का समय लगना सामान्य बात है। गांव बचाओ आंदोलन से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता द्वारिका सेमवाल बताते हैं कि टिहरी संसदीय क्षेत्र में करीब सवा लाख की आबादी आज भी सड़क सुविधा से वंचित है, जो लंबे समय से सड़क का इंतजार कर रही है।
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