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Lok Sabha Election: पांच साल खूब बोले ये नेता, अब बदली सियासत में बोलती बंद

बिहार की सियासत का अजब खेल देखिए कि पांच साल जो नेता गरजते रहे वे अब खामोश दिख रहे हैं। गिरिराज व शत्रुघ्‍न से लेकर पप्‍पू यादव व अरुण कुमार तक सबकी बोलती बंद है।

By Amit AlokEdited By: Published: Wed, 27 Mar 2019 11:36 AM (IST)Updated: Thu, 28 Mar 2019 12:06 AM (IST)
Lok Sabha Election: पांच साल खूब बोले ये नेता, अब बदली सियासत में बोलती बंद
Lok Sabha Election: पांच साल खूब बोले ये नेता, अब बदली सियासत में बोलती बंद
पटना [राज्य ब्यूरो]। यह महज संयोग है या कुछ और कि पांच साल तक बड़ी-बड़ी बातें करने वाले कई नेताओं की इन दिनों बोलती बंद सी हो गई है। बोल आज भी रहे हैं, मगर उसमें वो पहले वाली दहाड़ नहीं है। रण में चलने की चुनौती नहीं है। बस, याचना और आह के भाव हैं।
गिरिराज की कोई बात तो सुने
याद कीजिए। बात-बात पर विरोधियों को विदेश जाने की सलाह देने वाले मंत्री गिरिराज सिंह नवादा से बेगूसराय जाने की बात पर आहत हो गए हैं। वे अब तक इसी शोध में लगे हैं कि आखिर अकेले उन्हें ही क्यों क्षेत्र छोडऩे के लिए कहा जा रहा है। वे पूरी विनम्रता से जानना चाह रहे हैं कि उनके साथ ऐसा क्यों किया गया? मुश्किल यह है कि कोई उनके इस वाजिब सवाल का जवाब नहीं दे रहा है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष नित्यानंद राय से मंगलवार को किसी ने यह सवाल पूछा। जवाब नहीं दे सके।

पप्पू का सब्र दे गया जवाब
सांसद पप्पू यादव के बोल को याद कीजिए। राज्य की ऐसी कौन सी पार्टी है, जिसे उन्होंने चुनौती नहीं दी? राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद से लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तक सब कभी न कभी इनके निशाने पर रहे हैं। एक दिन बोलते हैं कि महागठबंधन की मजबूती के लिए कोई भी कुर्बानी देने को तैयार हैं। अगले दिन छह सीटों पर चुनाव लडऩे की घोषणा कर देते हैं।

शाहनवाज के संतोष को मिला आधार
पूर्व केंद्रीय मंत्री शाहनवाज हुसैन चैनलों पर विरोधियों को पानी पिला देते हैं। पार्टी उनसे जितना काम लेती है, उन्हें कभी इसका अंदेशा नहीं हुआ होगा कि टिकट की कौन कहे, उनकी सीट ही चली जाएगी। इस बार ऐसा हो गया। उनकी प्रतिक्रिया बेहद शालीन कही जा सकती है: हमारी सीट नीतीश कुमार की पार्टी जदयू ने ले ली है।

नरेंद्र सिंह ने थक-हार कर साध ली चुप्पी
पूर्व मंत्री नरेंद्र सिंह हिंदुस्‍तानी अवाम मोर्चा (सेक्युलर) से जदयू में आए। इस उम्मीद में कि लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार बनेंगे। बांका से लडऩे का इरादा था। टिकट नहीं मिला। अपने दल के बदले दूसरे दल पर टिकट बेचने का आरोप लगा कर चुप बैठ गए।

रामा सिंह को रह गया मलाल
वैशाली के सांसद रामा सिंह बहुत नहीं बोलते हैं, लेकिन बॉडी लैंग्वेज यही कि कौन ऐसी पार्टी है जो हमें टिकट से इनकार कर दे। लोजपा ने उनकी सीट वैशाली पर दूसरा उम्मीदवार खड़ा कर दिया। शिवहर से राजद के टिकट की आस लगाकर बैठे हुए हैं। पिछली बार लोजपा टिकट पर जीते छह सांसदों में रामा सिंह अकेले हैं, जिन्होंने पार्टी से इस्तीफा नहीं दिया, फिर भी टिकट के समय याद नहीं किए गए।

कैसर की खामोशी और किस्मत
खगडिय़ा के सांसद चौधरी महबूब अली कैसर लंबे समय से पार्टी की गतिविधियों में शामिल नहीं हुए। फिर भी सामाजिक समीकरण के नाम पर उन्हें उम्मीदवारी मिल गई। हां, कैसर की खासियत यह है कि पांच साल एकदम नहीं बोले। संसद के भीतर न संसद के बाहर।
अरुण की उम्मीद पर फिरा पानी
जहानाबाद के सांसद डॉ. अरुण कुमार कम बोले, मगर ऐसा बोले कि जमाना याद रखेगा। संकेत में उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को छाती तोड़ने की धमकी दी थी। रालोसपा से अलग हुए। अपनी पार्टी बनाई। हिंदुस्‍तानी अवाम मोर्चा (सेक्युलर) के जरिए महागठबंधन से उम्मीदवारी चाहते थे। सफल नहीं हुए। निर्दलीय लड़ने जा रहे हैं।
शत्रुघ्न निकले फायदे की राह
शत्रुघ्न सिन्हा के बारे में क्या कहिए। क्षेत्र की जनता पांच साल तक उनकी बोली ही सुनती रहती है। एक से एक धांसू डायलॉग। जनता को कभी संवाद करने का अवसर नहीं मिलता है। बात-बात में हर किसी को खामोश करने वाले शत्रुघ्न सिन्हा इस चुनाव में खुद खामोश हो गए हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना करने के अलावा उन्होंने हर समय दूसरे दलों के नेताओं की तारीफ की। राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद हों या मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, उन्होंने दोनों की जम कर तारीफ की, लेकिन समय का फेर कहिए कि आज टिकट के लिए कांग्रेस और राजद का भ्रमण कर रहे हैं। राजद ने हिदायत दी- हमारे टिकट पर मत लडि़ए। घाटा होगा। कांग्रेस की टिकट पर लडि़ए। फायदे में रहेंगे। उन्होंने फायदा वाला रास्ता चुना। कांग्रेस में जा रहे हैं।

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