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Lok Sabha Election Results: आज साफ होगी देश की सियासी तस्वीर, बिहार पर भी पड़ेगा असर

Lok Sabha Election Results लोकसभा चुनाव के बाद आज मतगणना तय कर देगी कि देश की सियासत किस करवट बैठेगी। चुनाव परिणाम बिहार की सियासत को भी प्रभावित करेंगे।

By Amit AlokEdited By: Published: Thu, 23 May 2019 06:46 AM (IST)Updated: Thu, 23 May 2019 11:25 AM (IST)
Lok Sabha Election Results: आज साफ होगी देश की सियासी तस्वीर, बिहार पर भी पड़ेगा असर
Lok Sabha Election Results: आज साफ होगी देश की सियासी तस्वीर, बिहार पर भी पड़ेगा असर

पटना [अरुण अशेष]। करीब तीन महीने के चुनावी घमासान के बाद गुरुवार का इंतजार हर किसी को था।  उन्हें भी जिन्होंने तीखी धूप में सभाएं की। हजारों लोगों से वोट मांगा और उन्हें भी जिन्होंने बिना नहाए-खाए कतार में लगकर मतदान किया। सबसे बड़ी बात यह कि यह कि गुरुवार के नतीजे राजनीति के नए बने समीकरणों को स्थापित भी करेंगे और विस्थापित भी कर सकते हैं। ये चुनावी नतीजे देश के साथ बिहार की सियासी तस्‍वीर भी साफ करेंगे। इसका असर आगामी बिहार विधानसभा चुनाव पर भी पड़ेगा।

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बड़े नेताओं ने लगातार होते रहे दौरे

बिहार के लिए 17वीं लोकसभा का चुनाव कई मायने में दूसरे चुनावों से अलग था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह, उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी, लोजपा अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान, विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव, पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी, पूर्व केंद्रीय राज्यमंत्री उपेंद्र कुशवाहा सहित कई अन्य बड़े नेताओं ने लगातार दौरे कर जनता को अपने-अपने पक्ष में लुभाने की कोशिश की।

1977 के बाद पहली बार नहीं दिखे लालू

1977 के बाद राज्य के लिए यह पहला चुनाव था, जिसमें राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद की सशरीर भागीदारी नहीं हो पाई। फिर भी पक्ष-विपक्ष की ऐसी कोई सभा नहीं हुई, जिसकी चर्चा में लालू प्रसाद हाजिर न रहे हों। नतीजा बताएगा कि जनता ने किन नेताओं पर अधिक भरोसा किया।

चुनाव में मुख्य मुद्दा रहा विकास

चुनाव प्रचार का मुख्य मुद्दा विकास था। एनडीए के घटक दल विकास का दावा कर रहे थे। फिर से मौका मिलने पर विकास की धारा को और तेज करने का भरोसा दे रहे थे। दूसरी तरफ महागठबंधन के घटक दल विकास के दावे को नकार रहे थे। बीच-बीच में राष्ट्रवाद, धर्मनिरपेक्षता और आरक्षण जैसे मुद्दे भी आते-जाते रहे। वोट के लिए जातिवाद का भी खूब उपयोग हुआ। नतीजा से यह भी जाहिर होगा कि जनता के बहुमत हिस्से ने किस मुद्दा के पक्ष में मतदान किया। जनता का भरोसा जीतने के लिए कुल 626 उम्मीदवार मैदान में थे। इनमें से 40 का चुनाव होगा।

दो हिस्से में बंटा दिखा सामाजिक न्याय

धारा के तौर पर देखें तो राजनीति की दो धाराएं बह रहीं थीं। सामाजिक न्याय की धारा दो हिस्से में थी। महागठबंधन का सबसे बड़ा घटक राजद सामाजिक न्याय की पुरानी धारा के आधार पर गोलबंदी कर रहा था। इधर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार न्याय के साथ विकास की धारा की वकालत कर रहे थे। सामाजिक न्याय के एक दौर के बाद राज्य में न्याय के साथ विकास की धारा अधिक कारगर और ग्राह्य साबित हुई है। देखना दिलचस्प होगा कि आम लोगों ने अंतिम तौर पर किस धारा के साथ बहना स्वीकार किया।

जहां तक नए समीकरणों की स्थापना या विस्थापन का सवाल है, इसके दायरे में दोनों गठबंधन आएंगे। लेकिन महागठबंधन पर इसका अधिक असर पड़ेगा। नतीजे से इस तथ्य की भी पड़ताल हो जाएगी कि 2015 के विधानसभा चुनाव में महागठबंधन को मिली शानदार कामयाबी का आखिर असली हकदार कौन है? इस समय तक राजद, जदयू और कांग्रेस-तीनों उस कामयाबी का श्रेय ले रहे हैं। गुरुवार को इस विवाद का पटाक्षेप हो जाएगा।

तय हो जाएगा छोटी पार्टियों का भविष्य

महागठबंधन से जुड़े नए दलों के अगले सफर का अगला मुकाम भी इसी नतीजा से तय होगा। खासकर हम, रालोसपा और वीआइपी जैसी पार्टियों के लिए यह अधिक महत्वपूर्ण है। इन दलों ने जीत की गारंटी के साथ अधिक सीटों पर दावा किया था। नतीजे हक में आए तो ठीक है। विपरीत हुए तो इन दलों की भूमिका नए सिरे से परिभाषित होगी। और सबसे बड़ी बात यह कि लोकसभा चुनाव के नतीजे के आधार पर ही अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारी शुरू हो जाएगा।

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