Election 2019: जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनावों की संभावनाओं के बीच नए समीकरण बना रहे राजनीतिक दल
रमजान का महीना चार जून को खत्म हो रहा है जबकि बाबा अमरनाथ की यात्रा पहली जुलाई से शुरू हो रही है। माना जा रहा है कि पांच जून से 30 जून के बीच विधानसभा चुनाव हो सकते हैं।
जम्मू, [अभिमन्यु शर्मा]। जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव करवाने की संभावनाएं तलाशने के लिए चुनाव आयोग द्वारा भेजी गई पर्यवेक्षकों की टीम के बाद से एक बार फिर श्री अमरनाथ यात्रा से पहले विधानसभा चुनाव होने की अटकलें लगाई जाने लगी हैं। इससे संसदीय चुनावों के साथ विधानसभा चुनाव न होने के कारण मायूस हुए राजनीतिक दल सक्रिय हो गए हैं और अभी से नए समीकरण बनाने के भी प्रयास भी करने लगे हैं।
इस महीने के पहले सप्ताह जब भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा राज्य के दौरे पर आए थे तो उस समय कांग्रेस, नेशनल कांफ्रेंस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी सहित सभी राजनीतिक दलों ने संसदीय चुनावों के साथ ही विधानसभा चुनाव करवाने की भी वकालत की थी। भारतीय जनता पार्टी ने उस समय इस मुद्दे पर अपने पत्ते नहीं खोले, लेकिन प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने यह जरूर कहा था कि भाजपा हर प्रकार के चुनावों के लिए तैयार है।
उस समय राज्य के राजनीतिक गलियारे में यह चर्चा होने लगी कि दोनों चुनाव एक साथ होने की घोषणा हो सकती है। दस मार्च को जब मुख्य चुनाव आयुक्त ने देश में आम चुनाव करवाने की घोषणा की तो जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा हालात का हवाला देते हुए दोनों चुनाव एक साथ नहीं करवाने की जानकारी दी। इस पर जम्मू-कश्मीर में तीखी प्रतिक्रिया हुई।
प्रदेश कांग्रेस, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी, नेशनल कांफ्रेंस और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने चुनाव न करवाने के लिए सीधे केंद्र सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया और इसे अलगाववादियों और पाकिस्तान के आगे आत्मसमर्पण करने के आरोप लगा दिए। सोशल साइट्स पर भी राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं और नेताओं ने केंद्र सरकार के खिलाफ जमकर भड़ास निकाली।
इसी बीच मुख्य चुनाव आयुक्त द्वारा नियुक्त तीन पर्यवेक्षक पूर्व आइएएस अधिकारी नूर मोहम्मद, विनोद जुत्थी और एएस गिल जम्मू-कश्मीर के दो दिवसीय दौरे पर फिर से पहुंचे और चुनावों पर राजनीतिक दलों की राय ली। इसके बाद यह अटकलें लगाई जाने लगीं कि रमजान खत्म होने और बाबा अमरनाथ की यात्रा शुरू होने से पहले जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव भी हो सकते हैं। रमजान का महीना चार जून को खत्म हो रहा है, जबकि बाबा अमरनाथ की यात्रा पहली जुलाई से शुरू हो रही है। माना जा रहा है कि पांच जून से 30 जून के बीच विधानसभा चुनाव हो सकते हैं।
राज्य में तीन जुलाई को राष्ट्रपति शासन के भी छह महीने पूरे हो रहे हैं। लोकसभा चुनावों के लिए पहले से ही राज्य में बड़ी संख्या में अर्धसैनिक बल और राज्य पुलिस के जवान तैनात हैं। ऐसे में चुनाव करवाने के लिए सुरक्षाबलों की भी कमी नहीं रहेगी। वहीं चुनावों की संभावनाओं के बीच राजनीतिक दल भी नए समीकरण बना रहे हैं।
एक ओर जहां पूर्व आइएएस शाह फैसल ने दो दिन पहले ही जम्मू-कश्मीर पीपुल्स मूवमेंट पार्टी लांच की, वहीं पूर्व सांसद अब्दुल रशीद शाहीन ने भी नया राजनीतिक दल बनाने की घोषणा की है। अब देखना यह है कि अगर राज्य में विधानसभा चुनावों की घोषणा होती है तो क्या राज्य में सभी राजनीतिक दल अलग-अलग चुनाव लड़ेंगे या फिर कई दलों का आपस में गठबंधन होगा।
बदल चुके हैं अब हालात :
साल 2014 में जब अंतिम बार विधानसभा चुनाव हुए थे तो सभी चार प्रमुख दलों ने अलग-अलग चुनाव लड़े थे। किसी को भी स्पष्ट बहुमत न मिलने के कारण राज्य में भाजपा, पीपुल्स कांफ्रेंस और पीडीपी ने मिलकर सरकार बनाई थी। पिछले साल दोनों पार्टियों का गठबंधन टूट गया और राज्य की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद राज्य में राज्यपाल शासन लगा। इस दौरान पीडीपी ने नेशनल कांफ्रेंस के साथ मिलकर सरकार बनाने की असफल कोशिश की थी। अब राजनीतिक हालात पूरी तरह से बदल गए हैं। पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के कई वरिष्ठ नेता पार्टी छोड़कर नेशनल कांफ्रेंस, पीपुल्स कांफ्रेंस और कांग्रेस में शामिल हो गए हैं। यही नहीं आइएएस टापर शाह फैसल ने नौकरी से त्यागपत्र देकर अपनी नई राजनीतिक पार्टी लांच कर दी है।
भाजपा से जम्मू संभाग के दो विधायक बागी हो गए हैं। आरएसपुरा से विधायक गगन भगत नेशनल कांफ्रेंस में शामिल हो गए हैं, जबकि बसोहली के विधायक लाल सिंह ने डोगरा स्वाभिमान संगठन नाम से राजनीतिक संगठन बनाया है। सभी चुनाव लड़ने के लिए पूरी तैयारी में जुटे हुए हैं। आने वाले दिनों में कौन से गठबंधन बनते हैं, यह विधानसभा चुनावों में बहुत अहम होगा।