Lok Sabha Election 2019: BIG ISSUE: 60 बरस से पहचान को मोहताज तीन लाख की आबादी
60 के दशक में औद्योगिकीकरण के दौरान मजदूरी करने आए लोगों ने उपक्रमों को नवरत्न बना दिया। पर उनका अपना भविष्य खराब हो गया। अधिकांश लोग यूपी बिहार छत्तीसगढ़ मध्य प्रदेश के हैं।
बोकारो, बीके पाण्डेय। बोकारो में सेल व रेल विभाग की जमीन पर बसी करीब तीन लाख से अधिक ऐसी आबादी है जो जनप्रतिनिधियों की प्राथमिकता सूची में शामिल नहीं है। इस आबादी के दर्द पर किसी ने मरहम नहीं लगाया। चुनाव के वक्त नेता अलग-अलग बस्ती में जाकर वोट ले लेते हैं। फिर उनके दर्शन पांच वर्ष बाद होते हैं। 60 साल का यह दर्द अब नासूर बन गया है। मूलवासी व प्रवासी दोनों ही इससे प्रभावित हैं।
बोकारो का एक बड़ा इलाका आजादनगर ऐसे ही लोगों की बस्ती है। यहां सभी समुदाय और कहें तो कई राज्यों के लोग रह रहे हैं। पर यह बस्ती न तो शहर में है और न पंचायत में। बस्ती के घरों को यहां रह रहे लोगों के नाम से पट्टा देकर स्थायी नहीं किया गया। बस्ती को अवैध कहा जाता है। जनगणना के आंकड़ों के अनुसार ये स्लम में भी नहीं है। मंगलवार को यहां का मिजाज जानने को हम पहुंचे।
बस्ती के संजय दुबे से मुलाकात हुई। कई और लोग जुट गए। बोले 60 के दशक में औद्योगिकीकरण के दौरान मजदूरी करने आए लोगों ने उपक्रमों को नवरत्न बना दिया। पर, उनका अपना भविष्य खराब हो गया। अधिकांश लोग यूपी, बिहार, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश के हैं। तीसरी पीढ़ी यहां रह रही है। बावजूद हमें अपनी पहचान नहीं मिली कि हम भी झारखंडी है। कभी प्रवासी तो कभी अतिक्रमणकारी कहा जाता है। यह कहते हुए उनकी आंखें भर आईं। वोट के समय नेताओं की प्रिय बस्ती बाद में पराई हो जाती है। बोले जमीन का आवंटन मिल जाय तो बात बने। पर नेताजी भरोसा देकर फिर नहीं आते। वीरेंद्र यादव बोले झोपड़ी वालों का वोट लेते हैं पर सुविधा नहीं देते हैं। जब दिल्ली की झुग्गी बस्ती स्थाई हो सकती है तो बोकारो की क्यों नहीं। उनकी बात सुन प्रमोद ओझा से न रहा गया। वे बीच में ही कूद पड़े बोले
हर शहर में पंचायत और नगर निगम का। इस शहर की आजाद नगर की जनता कहां की है किसी को मालूम नहीं। तब तक संजय फिर बोल पड़े भइया हम झोपड़ी वालों की खोज केवल रैली में शामिल होने व वोट लेने के लिए होती है। देश में शौचालय बना यहां के लोगों को नहीं मिला। यह सुन सुधीर कुमार बोले विधायक क्या करे। जमीन केंद्रीय लोक उपक्रम की है। सांसद ही कुछ कर सकते हैं। हर पार्टी के सांसद को देखा पर सिर्फ आश्वासन मिला। 60 साल से यहां रह रहे हैं फिर भी बाहरी कहा जाता है। एमपी और एमएलए के चुनाव में वोट डालने का मौका मिलता है। नगर निगम और पंचायत में नहीं।
बोकारो की प्रमुख अवैध बस्तियां
- 19 विस्थापित गांव जो कि पुनर्वासित नहीं हुए। कुल आबादी लगभग 80 हजार से अधिक है।
- 50 अवैध बस्तियां जो बोकारो शहर एवं उसके आसपास बसी हैं।
- पांच अवैध बस्ती जो रेलवे की जमीन पर हैं और यहां की आबादी 55 हजार के करीब है।
- बेरमो, गोमिया, चंद्रपुरा के विभिन्न कोयला खदानों के आसपास बसी पचास बस्तियां जिनकी आबादी लगभग 1 लाख है।
सरकारी सुविधाओं की स्थिति
- कहीं-कहीं झारखंड सरकार की बिजली तो कहीं चोरी की बिजली।
- आधा-अधूरा राशन कार्ड।
- अपनी जमीन व पहचान के अभाव में प्रधानमंत्री आवास योजना, उज्ज्वला योजना के लाभ से वंचित।
- यहां के बेरोजगारों को आवासीय व जाति प्रमाण पत्र निर्गत नहीं होता है।
- स्वच्छ भारत मिशन का कोई लाभ नहीं मिलता।
- सीएसआर या स्वयं के पैसे से लगाए गए चापाकल से पानी मिलता है।
- कोई प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र नहीं है।
- क्षेत्र में अभियान विद्यालय, उच्च शिक्षा का कोई इंतजाम नहीं।