Lok Sabha Election 2019 : सज गया समर्थकों का बाजार, अब खरीदार का इंतजार
झंडा बैनर के साथ भाड़े के समर्थक भी हैं। बस आप खरीद तो सकें उन्हें। जी हां मलिन बस्ती में रहने वाले लोग प्रचार की तैयारी कर रहे हैं। वह हर दल के प्रत्याशी कर प्रचार के लिए संपर्क करते हैं।
प्रयागराज : बाजार यानी ऐसी जगह, जहां जरूरत की सभी चीजें मिलती हैं। लोगों की मांग के अनुसार समय-समय पर बाजार का भी स्वरूप बदलता रहता है। अब चुनावी समर के साजो-सामान के लिए बाजार तैयार हो रहा है। झंडा, बैनर, खादी, टोपी के साथ भाड़े के समर्थक भी हैं बस आप खरीद तो सकें। दिहाड़ी वाले यह समर्थक अपने प्रत्याशी के लिए घर-घर जाकर जी-जान से प्रचार करने के साथ कहां क्या चूक हो रही है, उसे दूर कर समर्थन की रणनीति भी बनाएंगे।
मलिन बस्तियों में भाड़े के समर्थकों का आकार ले रहा बाजार
शहर की मलिन बस्तियों में इस बार भी धीरे-धीरे भाड़े के समर्थकों का बाजार आकार ले रहा है। मिंटो पार्क के पास मलिन बस्ती में रहने वाली फूला, कमला, कैलाश, विमलेश, मो. यासिर को मजहब, विचारधारा और चिह्न के बजाय कौन नेता अधिक पैसा देगा, उससे ही मतलब है। जल्द ही वह ज्यादा पैसा देने वाले का झंडा, बैनर उठाकर पूरे कुनबे के साथ समर्थकों की भीड़ का हिस्सा हो जाएंगे।
...यह बनते हैं बाजार का हिस्सा
दारागंज, तेलियरगंज, करेली, फाफामऊ, नैनी, राजरूपपुर आदि मुहल्लों की मलिन बस्ती में रहकर कूड़ा बीनने वाले, रिक्शा चालक, डलिया बनाने वाले, फेरी व मजदूरी करने वाले लोग भी बाजार का हिस्सा बनते हैं। ऐसे समर्थकों को सुलभ कराने का ठेका लेने वाले शिवकुमार बताते हैं कि वह हर विधानसभा, नगर निगम और लोकसभा चुनाव में प्रत्याशियों का प्रचार कराते हैं, जिससे पैसा मिलता है उसके प्रचार में जुट जाते हैं। प्रत्याशी अथवा पार्टी से कोई लेना-देना नही होता।
प्रत्याशियों की घोषणा के बाद बदलेंगे दिन
बकौल शिवकुमार, अभी राजनीतिक दलों ने प्रत्याशी की घोषणा नहीं की है, इसलिए बुकिंग नहीं हुई। प्रत्याशियों की घोषणा होते ही हमारे दिन बदल जाएंगे। राजनीतिक चिंतक व लोकतंत्र सेनानी नरेंद्र देव पांडेय मानते हैं कि आज की राजनीति उद्देश्य के बजाय व्यापारिक हो गई है। नेताओं के स्वयं भी कई धंधे हैं, जिसमें वह अधिक समय देते हैं। कई मौकों पर समर्पित कार्यकर्ताओं की उपेक्षा होती है। इसलिए नेता और कार्यकर्ता के बीच दूरी बढ़ जाती है। यह चुनाव के समय भी रहती है। ऐसे में उन्हें (नेताओं को) किराए के लोगों को जुटाना पड़ता है।
टेंपो हाई करना मकसद
हर प्रत्याशी अपने पीछे समर्थकों की लंबी चौड़ी भीड़ दिखाना चाहता है। टिकट पाने से लेकर टेंपो हाई करने तक में। माना यह जाता है कि जिस नेता के पीछे जितनी अधिक भीड़ होगी, उसके पक्ष में उतना ही माहौल बनेगा। दलीय निष्ठा के प्रति समर्पित कार्यकर्ताओं की संख्या कम होने एवं अन्य व्यस्तता की वजह उनकी कमी को भाड़े के समर्थकों से पूरा किया जाता है।
ऐसे करते हैं बुकिंग
प्रत्याशी अथवा उनके एजेंट शहर की किसी भी मलिन बस्ती, लेबर चौराहा या रिक्शा स्टैंड में संपर्क करते हैं। महिला समर्थक के लिए तीन सौ, पुरुष एवं 20 साल तक के युवाओं के लिए चार-चार सौ रुपये दिहाड़ी मजदूरी होती है। एक परिवार के तीन से अधिक सदस्य होने पर कुछ अतिरिक्त भुगतान किया जाता है। चाय, नाश्ता और खाने की व्यवस्था प्रत्याशी के जिम्मे रहती है। सुबह 10 से लेकर शाम छह बजे तक सभी प्रत्याशी के पक्ष में जहां तहां सक्रिय रहते हैं। उनकी मानीटङ्क्षरग का भी तंत्र होता है।
कभी भी बदल सकते हैं पाला
नेताओं की तरह भाड़े के प्रचारक भी अधिक पैसा मिलने पर अपना पाला बदल लेते हैं। वैसे अगर कोई एक हफ्ते के लिए बुक है तो वह बीच में नहीं जा सकता। अगर जाएगा भी तो अपनी जगह दूसरा आदमी देगा।