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Loksabha election 2019 : काशी में पब्लिक के मन को भा गया पेंशन देने का संकल्प

भाजपा के घोषणा पत्र को लेकर सबसे अधिक व्यापारी व किसान उत्साहित हैं। वैसे इससे पहले भी किसानों को ही केंद्र में रखकर विभिन्न राजनीतिक दल पहले भी घोषणा कर चुके थे।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Sun, 14 Apr 2019 08:45 PM (IST)Updated: Mon, 15 Apr 2019 09:05 AM (IST)
Loksabha election 2019 : काशी में पब्लिक के मन को भा गया पेंशन देने का संकल्प
Loksabha election 2019 : काशी में पब्लिक के मन को भा गया पेंशन देने का संकल्प

वाराणसी [अशोक सिंह]। भाजपा के घोषणा पत्र को लेकर सबसे अधिक व्यापारी व किसान उत्साहित हैं। वैसे इससे पहले भी किसानों को ही केंद्र में रखकर विभिन्न राजनीतिक दल पहले भी घोषणा कर चुके थे। लेकिन, सरकार बनने पर किसानों व व्यापारियों के हित कुछ विशेष हुआ नहीं। अब सत्रहवें लोस चुनाव में एकबार फिर इन दोनों वर्ग को भाजपा ने लुभाने की कोशिश है। अपने घोषणा पत्र में स्पष्ट कहा है कि दोबारा सत्ता में आए तो किसानों व व्यापारियों को पेंशन देंगे। इसी बिंदु पर व्यापारियों व किसानों से बात की गई तो दोनों वर्ग काफी आशान्वित नजर आया। उन्हें महसूस हुआ कि कम से कम किसी दल ने हम लोगों की सुधि तो ली।

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भाजपा का संकल्प पत्र जारी रखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि इसमें देश के सभी वर्गों की आकांक्षाओं का ख्याल रखा गया है। संकल्प को अगले पांच साल में पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। पार्टी ने स्पष्ट किया है कि उसके लिए राष्ट्र प्रथम है। जय जवान-जय किसान और जय विज्ञान के नारे के साथ भाजपा ने जवानों के बाद अब किसानों की सुधि ली है। साथ में व्यापारियों को भी समेटा है। इन दोनों वर्गों को अब पेंशन देने का संकल्प लिया है। कश्मीर में लागू धारा-370 व 35-ए को हटाने, सर्जिकल स्ट्राइक जारी रखने और आतंकवादियों के खिलाफ सुरक्षा बलों को खुली छूट देने के वादे किए गए हैं। पार्टी अन्य राज्यों में भी नेशनल रजिस्टर आफ सिटीजन लागू करेगी। पार्टी ने मंदिर निर्माण को संविधान के दायरे करने का संकल्प दोहराया है। 

चुनावी चर्चा के दौरान उत्तेजना से दूर रहना यदि सीखना हो तो व्यापारियों के साथ जरूर बैठना चाहिए। अर्दली बाजार में जब व्यापारियों का समूह दलों के घोषणा पत्र पर बात शुरू की तो व्यापारियों व किसानों को पेंशन देने संबंधी भाजपा के घोषणा पत्र पर चर्चा गंंभीर हो गई। व्यापारी मनोज दुबे ने कहा कि यदि कांग्रेस के 72 हजार रुपये देने से यदि आर्थिक नीति डगमगाने की आशंका बन सकती है तो फिर व्यापारियों और किसानों को पेंशन देने पर भी तो वही होगा। इतना सुनने भर की देर थी पवन सिंह बोल पड़े, ऐसा कदापि नहीं होगा। भाजपा ने अब तक जो भी कहा उसे पूरा किया। किसानों और व्यापारियों को पेंशन देने की किसी ने घोषणा नहीं की थी। भाजपा ने ऐसा कर राजनीति के क्षेत्र में एक बेहतर कदम बढ़ाया है। बात शुरू हुई तो आगे बढ़ती ही गई। संतोष सिंह ने भाजपा के घोषणा पत्र से इतर जाकर साम्प्रदायिकता की बात छेड़ दी। लेकिन, उसी समय शेख इकबालुद्दीन ने उन्हें टोका। कहा कि भाजपा पर एक पंथ विशेष को उपेक्षित करने का आरोप लगता है। उससे मैं पूरी तरह से असहमत हूं। क्या किसानों व व्यापारियों को पेंशन मिलेगा तो उसमें केवल एक धर्म विशेष के ही लोग थोड़े ही होंगे। शेख इकबालुद्दीन की हों में हां मिलाते हुए राकेश गुप्ता ने कहा कि वाकई किसान व व्यापारी सभी वर्ग व धर्म के लोग हैं। भाजपा दोबारा सत्ता में आती है तो इसका लाभ सभी को मिलेगा। वैसे बीच-बीच में कई व्यापारियों ने भाजपा को राम मंदिर व अनुच्छेद 370 के मुद्दे पर घेरने की भी कोशिश हुई लेकिन, अन्य व्यापारियों ने पेंशन के संकल्प की बात पर जोर देकर दोनों मुद्दों को दरकिनार कर दिया। 

गोकुल लालवानी व रामकृष्ण श्रीवास्तव ने पेंशन आदि देने के वादे के विषय में उसी तरह के प्रश्न खड़े किए जैसे भाजपा के लोग कांग्रेस के 72 हजार रुपये देने पर उठा रहे थे कि पैसा कहां से आएगा। दोनों व्यापारियों के इस तर्क को रामजी चौधरी, राजेश सिंह व मनोज सोनकर ने खारिज कीर दिया। कहा कि भाजपा पेंशन के वादे को वैसे ही पूरा करेगी जैसे पांच वर्षों के अंदर सड़क, बिजली व पानी की स्थिति को सुधारी है। आकाश श्रीवास्तव, नीरज सिंह विक्की सिंह ने भाजपा के पेंशन वादे पर संदेह जताते हुए कहा कि कहीं यह 15 लाख रुपये देने वाला जुमला न बन जाए। ये लोग कुछ आगे कुछ और बोलते उससे पहले आनंद वर्मा, सुरेश पांडेय, इम्तियाज व संजय चटर्जी एक साथ कूद पड़े। इन लोगों ने कहा कि आप ये बताइए कि 2014 के चुनावी घोषणा पत्र में भाजपा ने क्या 15 लाख रुपये देने की बात शामिल थी। हां, सभाओं में जरूर यह कहा गया था विदेश से काला धन आ जाए तो एक-एक भारतीय के हिस्से में 15-15 लाख रुपये आ जाएंगे। बात आगे बढ़ती उससे पहले ही व्यापारियों ने चुनावी चर्चा पर विराम लगा दिया।


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