Election 2019: अनंतनाग सीट: कभी नेकां का किला था, अब पीडीपी का गढ़, इस बार त्रिकोणीय मुकाबला
भाजपा के साथ गठबंधन का पीडीपी को दक्षिण कश्मीर में हुए नुकसान का नेकां व कांग्रेस पूरी तरह फायदा उठाने में जुटी हैं। पीडीपी का वोट बैंक जमात के प्रभाव वाले इलाकों में ही ज्यादा है।
श्रीनगर, नवीन नवाज। आतंक का गढ़ कहे जोन वाले दक्षिण कश्मीर की हॉट सीट अनंतनाग-पुलवामा संसदीय सीट चुनाव की घोषणा के साथ ही चर्चा में है। यह पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की पैतृक सीट मानी जाती है। देश की एकमात्र ऐसी सीट है जहां तीन चरणों में मतदान होगा। सुरक्षा बलों ने चुनाव को सफल बनाने के लिए आतंकियों पर शिकंजा कसा है। यहां सियासी माहौल सरगर्म हो चुका है। पीडीपी से महबूबा स्वयं मैदान में हैं। कांग्रेस ने भी प्रदेश अध्यक्ष जीए मीर को मैदान में उतार मामले को रोचक बना दिया है। नेशनल कांफ्रेंस के हसनैन मसूदी समेत 20 उम्मीदवार मैदान में हैं। यहां मुख्य चुनावी मुकाबला त्रिकोणीय ही माना जा रहा है।
भाजपा के सोफी यूसुफ और रियासत की सियासत में तेजी से उभर रही पीपुल्स कांफ्रेंस के चौधरी जफर अहमद खटाना भी मैदान में हैं। उनकी भूमिका वोट काटने और अपना प्रभाव साबित करने तक सीमित है। यह सीट देश की चुनावी सियासत में कीर्तिमान बनाने जा रही है। देश में पहली बार किसी सीट के लिए तीन चरणों में मतदान होने जा रहा है। इस क्षेत्र में सुरक्षा परिदृश्य का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि महबूबा मुफ्ती ने अप्रैल 2016 में अनंतनाग-पुलवामा की संसद सदस्यता से इस्तीफा दिया था। उसके बाद से यहां उपचुनाव नहीं कराए जा सके। वर्ष 2017 में उपचुनाव घोषित भी हुए, चुनाव की तिथि भी तय हो गई लेकिन सुरक्षा परिदृश्य और ङ्क्षहसा की आशंका के चलते चुनाव अंतिम समय में रद कर दिया। इसे अलगाववादियों की जीत के तौर पर लिया। वर्ष 1991 के बाद यह पहला मौका था जब रियासत में सुरक्षा कारणों से चुनाव रद किया गया हो। उसके बाद इस सीट पर सुरक्षा कारणों से उपचुनाव के लिए कोई प्रयास नहीं हुआ।
16 विधानसभा क्षेत्रों में फैला है अनंतनाग
दक्षिण कश्मीर की यह सीट चार जिलों अनंतनाग, पुलवामा, शोपियां और कुलगाम के 16 विधानसभा क्षत्रों में फैली है। इस पूरे क्षेत्र में लगभग पौने बाहर लाख मतदाता हैं। 1967 से लेकर 1980 के चुनावों तक कांग्रेस ही यहां से चुनाव जीतती रही। 1980 में पहली बार नेशनल कांफ्रेंस के गुलाम नबी कोचक ने यहां से संसद में प्रवेश किया था। वर्ष 1996 में यहां से जनता दल के मोहम्मद मकबूल डार चुनाव जीते थे जो केंद्रीय गृह राज्यमंत्री भी बने थे। बाद में नेकां ने यह सीट दोबारा छीन ली। उसके बाद वर्ष 2004 में यहां से पहली बार पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने चुनाव जीता था। वर्ष 2009 में नेकां ने यह सीट जीती। 2014 में एक बार फिर महबूबा यहां से सांसद बनी थी। वर्ष 2016 में मुफ्ती मोहम्मद सईद के निधन के बाद उन्होंने संसद की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया और तभी से यह सीट खाली पड़ी है। इस क्षेत्र में जमायत ए इस्लामी का भी मजबूत आधार है।
यह रहे हैं अब तक सांसद
- 1967- मोहम्मद शीफ कुरैशी, कांग्रेस
- 1971- एसए शमीम, निर्दलीय
- 1977-बेगम अकबर जहां अब्दुल्ला नेकां
- 1980- गुलाम रसूल कोचक, नेकां
- 1984 बेगम अकबर जहां अब्दुल्ला, नेकां
- 1989- पीएल हांडू, नेशनल कांफ्रेंस
- 1991- चुनाव नहीं हुए
- 1996- मोहम्मद मकबूल, जनता दल
- 1998 मुफ्ती मोहम्मद सईद, कांग्रेस
- 1999 अली मोहम्मद नायक, नेकां
- 2004 महबूबा मुफ्ती, पीडीपी
- 2014 महबूबा मुफ्ती, पीडीपी
यहां के असल मुद्दे
इस पूरे क्षेत्र में बेरोजगारी, स्वास्थ्य, बिजली पानी जैसी सेवाओं का अभाव है। पर चुनाव प्रचार में प्रत्याशी अफस्पा, स्वायतता, सेल्फ रूल जैसे मुद्दों को हवा देने से नहीं चूक रहे। लोगों में अलगाववादी और इस्लामिक भावनाओं को कौन कितना उछालता है, यह भी वोटरों की तादाद को तय करता है। इसके अलावा किसी प्रत्याशी की जीत मतदान के दिन किसी क्षेत्र विशेष में जहां उसका या उसके दल का प्रभाव हो, वहां होने वाले मतदान या मतदान पर बहिष्कार के असर से तय होती है।
16 विधानसभा क्षेत्र
- त्रल, पांपोर, पुलवामा, राजपोरा, वाची, शोपियां, नूराबाद, कुलगाम, होमशालीबुग, देवसर, अनंतनाग, डूरू, कोकरनाग, शांगस, बीजबेहाड़ा, पहलगाम
पीडीपी का भाजपा से गठबंधन का फायदा उठाने में जुटी नेकां-कांग्रेस
दक्षिण कश्मीर के चार जिलों अनंतनाग, कुलगाम, पुलवामा और शोपियां के 16 विधानसभा क्षेत्रों पर आधारित यह संसदीय क्षेत्र ही पीडीपी का सियासी गढ़ है। सिर्फ पांच विधानसभा क्षेत्रों कुलगाम, देवसर, शांगस, होमशालीबुग, पहलगाम में ही वर्ष 2014 में पीडीपी को हार का सामना करना पड़ा था। चार वर्षो में दक्षिण कश्मीर में बहुत कुछ बदला है। भाजपा के साथ गठबंधन का पीडीपी को दक्षिण कश्मीर में हुए नुकसान का नेकां व कांग्रेस पूरी तरह फायदा उठाने में जुटी हैं। पीडीपी का वोट बैंक जमात के प्रभाव वाले इलाकों में ही ज्यादा है। इस समय जमात दबाव में है लेकिन महबूबा को किसी भी तरह से कमजोर नहीं माना जा सकता। कांग्रेस का भी यहां अच्छा खासा प्रभाव है। उसका वोट बैंक प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में नजर आता है। नेशनल कांफ्रेंस की स्थिति इस क्षेत्र में 1996 के बाद से कमजोर हुई है।
लोकसभा चुनाव में 1980 तक कांग्रेस यहां प्रभावी रही और उसके बाद नेशनल कांफ्रेंस। 1998 में मुफ्ती सईद ने यहां कांग्रेस का झंडा दोबारा फहराया। जनता दल का एक प्रत्याशी और एक निर्दलीय यहां से सांसद बन चुका है। जमात शोपियां, पुलवामा, कुलगाम में पूरी तरह और आधे अनंतनाग में प्रभाव रखती है। इस क्षेत्र में गुज्जर समुदाय का वोटर भी खूब है। सिख और कश्मीरी पंडित मतदाता हैं, लेकिन वह संसदीय चुनाव में निर्णायक नजर नहीं आते। भाजपा के सोफी यूसुफ पहलगाम और काजीगुंड के कुछेक इलाकों के अलावा विस्थापित मतदाताओं पर निर्भर हैं। 40 हजार के करीब विस्थापित मतदाताओं में मतदान कम रहता है। नेकां का शहरी इलाकों के अलावा गुज्जर समुदाय में भी जबरदस्त आधार है। नेकां से नाराज वोटर भी पीडीपी की मजबूती का एक हिस्सा रहा है। कांग्रेस ने बीते दस सालों में इस क्षेत्र में अपना जनाधार बढ़ाया है। प्रदेश कांग्रेस प्रमुख जीए मीर ने इस क्षेत्र में बीते तीन सालों के दौरान कई रैलियां और बैठकें कीं। नेकां की गैरमौजूदगी में उन्हें इसका पूरा फायदा मिला।
स्थानीय सियासी माहिर मानते हैं कि नेकां के उम्मीदवार हसनैन मसूदी पीडीपी-कांग्रेस के बीच होने वाली टक्कर का फायदा उठाकर संसद में जा सकते हैं, अन्यथा नहीं। यह तभी होगा जब नेकां के प्रभाव वाले इलाकों में 80 फीसद से ज्यादा मतदान हो। प्रदेश कांग्रेस प्रमुख जीए मीर डुरु, शांगस, कोकरनाग और उसके साथ सटे इलाकों में कांग्रेस के वोटर को किसी तरह से पीडीपी की तरफ न खिसकने दें।