Lok Sabha Election 2019: सुखराम के आश्रय से भाजपा बेचैन
Lok Sabha Election 2019 हिमाचल के मंडी संसदीय क्षेत्र से टिकट को लेकर पंडित सुखराम व उनका बड़ा पोता आश्रय शर्मा छह माह से भाजपा नेतृत्व को लगातार आंखें दिखा रहे हैं।
मंडी, हंसराज सैनी। सवा साल पहले पंडित सुखराम परिवार की भाजपा में एंट्री पर कार्यकर्ताओं व पार्टी के आला नेतृत्व ने जमकर खुशी मनाई थी। क्योंकि विधानसभा चुनाव के दौरान ऐन मौके पर भाजपा ने कांग्रेस के विरुद्ध ऐसा तुरुप का पत्ता चला था, जिसकी उम्मीद कांग्रेस नेतृत्व को भी नहीं थी। अब यही तुरुप का पत्ता भाजपा के गले की फांस बनने लगा है।
मंडी संसदीय क्षेत्र से टिकट को लेकर पंडित सुखराम व उनका बड़ा पोता आश्रय शर्मा छह माह से भाजपा नेतृत्व को लगातार आंखें दिखा रहे हैं। दोनों पार्टी के प्राथमिक सदस्य तक नहीं हैं, फिर भी सार्वजनिक मंचों से टिकट मांग चुके हैं। आश्रय शर्मा ने छह माह से फील्ड में डेरा डाल रखा है। हर हलके में भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ कई दौर की बैठकें कर चुके हैं। मगर भाजपा हाईकमान अब तक कार्रवाई करने की हिम्मत तक नहीं जुटा पाई है। पंडित सुखराम का खौफ भाजपा नेताओं में दिख रहा है। भाजपा नेता प्राथमिक सदस्य न होने की दुहाई देकर विवाद से पल्लू झाड़ रहे हैं। टिकट को लेकर विवाद अक्टूबर में ऐतिहासिक पड्डल मैदान में आयोजित पन्ना प्रमुख सम्मेलन से शुरू हुआ था।
गृहमंत्री राजनाथ सिंह मुख्यातिथि थे। भाजपा प्रदेशाध्यक्ष सतपाल सत्ती ने सांसद रामस्वरूप शर्मा को 2019 के चुनाव में पार्टी प्रत्याशी घोषित कर दिया था। राजनाथ सिंह ने भी सत्ती की हां में हां मिलाई थी। अगले ही दिन पंडित सुखराम ने पत्रकारों से बातचीत में सतपाल सत्ती व राजनाथ सिंह के बयान पर यह कह सवाल खड़े कर दिए थे कि टिकट का फैसला करने वाले वह कौन होते हैं? टिकट तय करना संसदीय बोर्ड का श्रेत्राधिकार है।
इसके कुछ दिन बाद आश्रय शर्मा ने टिकट की दावेदारी जताई थी। क्षेत्र के टिकट के कई अन्य नेता भी दावेदार हैं, लेकिन अब तक किसी ने सार्वजनिक मंच से दावेदारी नहीं जताई है। पंडित सुखराम व आश्रय शर्मा के बयानों से पार्टी की खूब किरकिरी हो रही है। 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी प्रतिभा सिंह की हार के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र्र सिंह ने पंडित सुखराम परिवार को जिम्मेदार ठहराया था। उन पर ब्राह्मणवाद फैलाने का आरोप सार्वजनिक मंचों से लगाया था।
पंडित सुखराम, अनिल शर्मा व आश्रय शर्मा एक साल से यह दुहाई देते फिर रहे हैं कि उनके परिवार की भाजपा में एंट्री से विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का मंडी जिला में पूरी तरह से सुपड़ा साफ हुआ था। यह बात राजनीतिक पंडितों के गले से नीचे नहीं उतर रही है। मंडी में अगर पंडित सुखराम का जादू लोगों के सिर चढ़कर बोला था तो जोगेंद्रनगर हलके में अपने चेले गुलाब सिंह ठाकुर की कुर्सी क्यों नहीं बचा पाए? वहां निर्दलीय प्रत्याशी बाजी मार गया था। पंडित सुखराम ने गुलाब सिंह ठाकुर के समर्थन में किए सभाएं की थी।
हाईकमान का निर्णय सबको मान्य : अनिल
ऊर्जा मंत्री अनिल शर्मा ने कहा कि पूर्व केंद्रीय पंडित सुखराम का वजूद आज भी पूरे मंडी संसदीय क्षेत्र में कायम है। वह अब भी लोगों के दिलों में हैं। इसका असर विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिला है। भाजपा 17 में से 13 हलकों में विजयी रही थी। मंडी में तो कांग्रेस का खाता भी नहीं खुला था। अब लोकसभा चुनाव में भी इसका लाभ भाजपा को मिलेगा। उनका परिवार भाजपा में है। पार्टी के लिए काम कर रहा है। टिकट मांगना सबका हक है। उनके बेटे आश्रय ने भी टिकट के लिए दावेदारी जताई है। आश्रय के कहने पर उन्होंने परिवार समेत भाजपा में शामिल होने का निर्णय लिया था। यह निर्णय पार्टी के लिए लाभकारी रहा है।
आश्रय शर्मा संसदीय क्षेत्र में घूम कर लोगों की नब्ज टटोल रहे हैं। यह गलत नहीं है। आश्रय ने कभी यह नहीं कहा है कि उसे टिकट मिल चुका है और वह चुनाव लड़ेगा। राजनीति उसका पेशा है। यह सही भी है।अपनी बात रखना कोई गलत नहीं है। लोग खुद आश्रय से मिलने के लिए आ रहे हैं। टिकट देना पार्टी हाईकमान का काम है। इस पर निर्णय होना बाकी है। हाईकमान जो भी आदेश करेगी। वह सबके लिए मान्य होगा। आश्रय शर्मा का भाजपा का प्राथमिक सदस्य न होना अलग बात है।
आंखें दिखाने की वजह
पंडित सुखराम के छोटे पोते आयुष शर्मा की शादी बॉलीवुड अभिनेता दबंग सलमान खान की बहन अर्पिता से हुई है। 2014 के चुनाव में सलमान खान के परिवार ने नरेंद्र मोदी की तारीफ की थी। इससे ऐसा माना जा रहा है कि अगर सलमान खान मंडी संसदीय क्षेत्र से आश्रय शर्मा को टिकट देने के लिए नरेंद्र मोदी को कह देंगे तो वह मना नहीं कर पाएंगे। दूसरा आश्रय शर्मा की शादी क्रिकेटर गौतम गंभीर की चचेरी बहन से हुई है।
भाजपा गौतम गंभीर को भी मैदान में उतार रही है। पंडित सुखराम के भी दिल्ली में भाजपा के कई बड़े नेताओं के साथ अच्छे संबंध रहे हैं। वह भी उन संबंधों को भुना कर पोते के लिए टिकट की जुगत भिड़ा रहे हैं।