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Loksabha Election 2019 : कानपुर क्षेत्र की दस सीटों पर आधा-अधूरा चुनावी जंग का मैदान

चुनावी रणभेरी बजने के कई दिन बाद अभी नहीं बन पा रहा माहौल।

By AbhishekEdited By: Published: Sat, 23 Mar 2019 04:08 PM (IST)Updated: Sun, 24 Mar 2019 11:52 AM (IST)
Loksabha Election 2019 : कानपुर क्षेत्र की दस सीटों पर आधा-अधूरा चुनावी जंग का मैदान
Loksabha Election 2019 : कानपुर क्षेत्र की दस सीटों पर आधा-अधूरा चुनावी जंग का मैदान
कानपुर, जागरण संवाददाता। चुनावी रणभेरी बजे कई दिन बीत गए, राजनीतिक दल चुनावी मैदान में भी उतर आए हैं, लेकिन इसके बाद भी हर तरफ सन्नाटा सा है। कानपुर क्षेत्र की दस सीटों की स्थिति पर नजर दौड़ाएं तो अहसास होता है कि जंग का मैदान अभी आधा-अधूरा ही है। कमल के फूल को प्रत्याशी मानते हुए भाजपा ने संगठन की सेना तो खड़ी कर दी है, लेकिन सेनापति यानी प्रत्याशी का इंतजार उन्नाव छोड़ सभी सीटों पर है। कांग्रेस प्रत्याशी घोषित करने में आगे निकल गई है, लेकिन संगठन की सक्रियता कहीं नजर नहीं दिख रही। गठबंधन की तैयारी भी अधूरी ही है। इन दोनों दलों के संगठन की स्थिति तो ठीक है, लेकिन सभी सीटों पर अभी उम्मीदवार घोषित नहीं किए जा सके हैं बल्कि कन्नौज में तो सपा का संगठन ही तैयार नहीं है।
कानपुर लोकसभा क्षेत्र : यहां अब तक सिर्फ दो दलों ने प्रत्याशी घोषित किए हैं। कांग्रेस से पूर्व केंद्रीय मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल तो प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) से राजीव मिश्रा प्रत्याशी हैं। भाजपा और सपा-बसपा गठबंधन अभी तक कोई निर्णय नहीं ले सके हैं। कांग्रेस का संगठन सुस्त है और अन्य दलों के पास अभी ताल ठोंकने के लिए प्रत्याशी का नाम नहीं है।
अकबरपुर लोकसभा क्षेत्र : इस सीट पर कांग्रेस ने पूर्व सांसद राजाराम पाल पर दांव लगाया है, जबकि प्रसपा ने सिकंदरा के भाजपा विधायक अजीत पाल के भाई इंद्रपाल सिंह को प्रत्याशी बनाया है। भाजपा और सपा-बसपा गठबंधन की स्थिति यहां भी कानपुर जैसी ही है। लिहाजा, सन्नाटा ही है।
फर्रुखाबाद लोकसभा क्षेत्र : कांग्रेस ने पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद को फिर से मैदान में उतारा है, लेकिन बूथ स्तर संगठन नजर नहीं आता। सिर्फ जिला और नगर कमेटी के पदाधिकारी ही हैं। सपा-बसपा गठबंधन और भाजपा के पास यहां संगठन मजबूत है, लेकिन प्रत्याशी घोषित न होने से राजनीतिक हलचल उस तरह की शुरू ही नहीं हो पाई है।
हमीरपुर-महोबा-तिंदवारी लोकसभा क्षेत्र : भाजपा और गठबंधन ने जमीनी तैयारी पूरी रखी है, लेकिन अभी तक प्रत्याशी को लेकर मंथन ही चल रहा है। वहीं, कांग्रेस ने प्रीतम सिंह को उम्मीदवार घोषित कर दिया है। मगर, यहां सेनापति अकेले खड़े नजर आ रहे हैं, क्योंकि कांग्रेस के संगठन की सक्रियता कहीं दिख ही नहीं रही है।
कन्नौज लोकसभा क्षेत्र : सपा के लिए यह सीट बेहद प्रतिष्ठा वाली है। सैफई परिवार की बहू और राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव फिर से प्रत्याशी हैं। यहां सपा की स्थिति मजबूत है, लेकिन अभी जिला कार्यकारिणी भंग होने की वजह से मामला ठंडा पड़ा है। वहीं, कांग्रेस और भाजपा को अभी मजबूत उम्मीदवार की तलाश है।
बांदा-चित्रकूट लोकसभा क्षेत्र : बुंदेलखंड क्षेत्र में भाजपा ने पिछले और फिर विधानसभा चुनाव में शानदार जीत दर्ज की थी। संगठन लगातार यहां सक्रिय है लेकिन, अभी प्रत्याशी तय न होने से चुनावी रंग नहीं चढ़ा है। कांग्रेस में भी उम्मीदवार पर मंथन चल रहा है। ऐसे में सपा-बसपा गठबंधन प्रत्याशी श्यामा चरण गुप्ता अकेले मैदान में खड़े हैं।
जालौन-गरौठा लोकसभा क्षेत्र : यहां चुनावी खुमारी शुरू होने के लिए बस भाजपा के प्रत्याशी का इंतजार है। दरअसल, कांग्रेस ने ब्रजलाल खाबरी तो सपा-बसपा गठबंधन ने अजय सिंह पंकज को प्रत्याशी घोषित कर दिया है। गठबंधन की मेहनत शुरू हो गई है, लेकिन भाजपा में अभी उम्मीदवार को लेकर मंथन चल रहा है।
इटावा लोकसभा क्षेत्र : यहां वर्तमान सांसद भाजपा से हैं, लेकिन यह गढ़ सपा परिवार का है। सपा ने कमलेश कठेरिया को मैदान में उतार दिया है। जितना प्रभाव सपा का है, उतना ही शिवपाल यादव की प्रसपा का भी है। उनके प्रत्याशी का इंतजार है। वहीं, भाजपा जीत दोहराने के लिए समीकरण समझने में लगी है।
उन्नाव लोकसभा क्षेत्र : उन्नाव क्षेत्र में अब सियासी हलचल बढऩे को है। दरअसल, भाजपा ने यहां से वर्तमान सांसद साक्षी महाराज को ही प्रत्याशी बनाया है। इधर, राजनीति के साथ समाजसेवा में सक्रिय अन्नू टंडन कांग्रेस उम्मीदवार हैं। सपा-बसपा गठबंधन ने पत्ते नहीं खोले हैं मगर, अन्य सीटों के मुकाबले यहां सभी का संगठन सक्रिय है।
फतेहपुर लोकसभा क्षेत्र : फतेहपुर में सपा-बसपा गठबंधन की तरफ से बसपा के सुखदेव वर्मा प्रत्याशी हैं। संगठन तो मजबूत है लेकिन सपा कार्यकर्ता कितना साथ आएंगे, यह दोनों पार्टियों के लिए चिंता का विषय हो सकता है। कांग्रेस ने जरूर सपा से टूटे राकेश को टिकट दिया है और उनका अपना नेटवर्क भी है लेकिन पार्टी को बूथ स्तर तक संगठन कसने की जरूरत है। भाजपा का बूथ स्तर पर संगठन तैयार है लेकिन उसके सेनापति का अभी तक पता नहीं है। कार्यकर्ता इंतजार कर रहे हैं कि उनका अगुवा उन्हें जल्द मिले ताकि काम शुरू किया जा सके।

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