LOk Sabha Polls 2019: झंडे के साथ नेताजी की गाड़ी भी हो गई गायब
चाय पानी का इंतजार करने वाले लोग निश्चित समय पर जुट रहे हैं लेकिन नेताजी को ना पाकर मायूस होकर लौट जा रहे हैं। लोगों का कहना है कि अब शायद नेताजी नामांकन के बाद ही दिखेंगे।
जमशेदपुर [वीरेंद्र ओझा]। चुनाव आचार संहिता लागू होने के बाद जैसे ही यह फरमान जारी हो गया कि कोई भी राजनीतिक दल का नेता या कार्यकर्ता अपनी गाड़ी पर झंडा नहीं लगाएगा। बाजार में ठसक दिखाने वाले नेताओं की शामत आ गई। गाड़ी से पार्टी के पदनाम वाला नेमप्लेट उतारने का फरमान भी उनके दिल को छलनी कर गया। अब ना सड़क पर नेताजी की गाड़ी दिखाई दे रही है, ना वह दिखाई दे रहे हैं।
एक ठेकेदार टाइप नेता जो सुबह शाम साकची में अड्डा मारने जरूर आते थे, अब कहीं नजर नहीं आ रहे हैं। क्योंकि उनकी गाड़ी से झंडा भी हट गया है और नेमप्लेट भी। सुबह-शाम उनके चाय पानी का इंतजार करने वाले लोग निश्चित समय पर जुट रहे हैं, लेकिन नेताजी को ना पाकर मायूस होकर लौट जा रहे हैं। लोगों का कहना है कि अब शायद नेताजी नामांकन के बाद ही दिखेंगे।
मोलभाव के इंतजार में पेंडुलम कार्यकर्ता
शहर में ऐसे सैकड़ों कार्यकर्ता है जो अलग-अलग दलों के लिए काम करते हैं। सीजन के हिसाब से ये किसी दल में शामिल हो जाते हैं। कुछ कार्यकर्ता तो ऐसे हैं जो एक ही दिल में रहते हैं, लेकिन नफा-नुकसान देखकर अलग-अलग नेता के साथ जुड़ जाते हैं। कभी इसके साथ, कभी उसके साथ। ऐसे कार्यकर्ता इस बात का इंतजार कर रहे हैं कि यहां से किसे टिकट मिलेगा। कौन उन्हें बुलाएगा, क्योंकि उनकी जरूरत तो पडऩे ही वाली है। ऐसे कार्यकर्ता आपस में गिरोह बनाकर यह तय कर रहे हैं कि किसके साथ जाना है और चुनाव में किसके साथ नहीं जाना है। किससे किस काम के लिए कितने पैसे लेने हैं, यह भी तय हो रहा है।
खिसक रहे राष्ट्रीय दल के नेता
शहर में हाल के दिनों में एक ऐसी घटना हुई, जिसके बाद एक बड़ी पार्टी के पदाधिकारी एक-एक करके पार्टी छोड़कर दूसरे दलों में शामिल हो रहे हैं। यह सिलसिला अभी जारी है। ऐसा कैसे हुआ, यह भी सबको मालूम है, लेकिन कोई बोलना नहीं चाहता। उनका कहना है कि जब दल के मुखिया को ही पार्टी की चिंता नहीं है तो हम क्यों उसके लिए मरें। नेतागिरी करनी है कहीं भी कर लेंगे।