कभी अखिलेश यादव के लिए 'अपशकुन' था यह जिला, अब मायावती के साथ यहां करेंगे रैली
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव 8 अप्रैल को गौतमबुद्ध नगर में मायावती के साथ रैली करेंगे।
नोएडा [मनीष तिवारी]। साइकिल से गौतमबुद्ध नगर की दूरी नापकर अखिलेश यादव जिस मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे थे। वही गौतमबुद्ध नगर पांच वर्ष बाद अखिलेश को फिर याद आया है। जिस जिले को पांच वर्ष तक मुख्यमंत्री रहते हुए अखिलेश अपशगुन मानते रहे, उसी जिले से लोकसभा चुनाव की फसल काटने की शुरुआत करेंगे।
किसी भी चीज की शुरुआत हमेशा शुभ से होती है। ऐसे में सवाल है क्या अखिलेश की नजरों में जिले का अपशगुन समाप्त हो गया है? या किसी टोने-टोटके के बाद जिले में आने की हिम्मत जुटा रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री मायावती और पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी अजीत सिंह के साथ गठबंधन प्रत्याशी के समर्थन में अखिलेश यादव जनसभा को संबोधित करने के लिए आठ अप्रैल को गौतमबुद्ध नगर आ रहे हैं। देखना है उनके मन में जिले के प्रति अपशगुन विराजमान रहता है या नहीं।
शगुन-अपशगुन आम ही नहीं खास को भी गिरफ्त में ले लेता है। कुछ ऐसा ही हुआ पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के साथ। वर्ष 2012 में मुख्यमंत्री बनने के बाद अखिलेश यादव के मन में अपशगुन ऐसा घर कर गया कि उन्होंने गौतमबुद्ध नगर से पांच वर्ष तक दूरी बना ली।
वर्ष 2012 से पूर्व प्रदेश में हुई साइकिल यात्रा में अखिलेश यादव गौतमबुद्ध नगर आए थे। साइकिल चला मतदाताओं को साधा, जिसका परिणाम रहा कि जीत के साथ मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान हुए। उन्होंने लगा कि पूर्व में जो नेता मुख्यमंत्री रहते हुए नोएडा आए उनकी कुर्सी छिन गई। अपने कार्यकाल के दौरान 1987 में नोएडा आने के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह की कुर्सी चली गई थी।
इसी तरह 1988 में नोएडा आने के कुछ महीने बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी को कुर्सी गंवानी पड़ी। 1999 में दादरी आने के बाद कल्याण सिंह भी अपदस्थ हो गए थे। माना जाता है कि इस डर के कारण 2001 में मुख्यमंत्री रहते हुए राजनाथ सिंह ने डीएनडी का उद्घाटन नोएडा से न कर दिल्ली से किया था।
वर्ष 2007 में दादरी आने के बाद मुलायम सिंह यादव फिर से मुख्यमंत्री नहीं बने। इन बातों ने अखिलेश यादव के मन में ऐसा घर किया कि मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने गौतमबुद्ध नगर से दूरी बना ली थी। उनके कार्यकाल में गौतमबुद्ध नगर में कई योजनाओं की शुरुआत हुई। लेकिन किसी का भी फीता गौतमबुद्ध नगर से नहीं कटा। अब एक बार फिर चुनाव में अखिलेश यादव को गौतमबुद्ध नगर की याद आई।