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LokSabha Election 2019: पुलिस की सक्रियता से चुनाव बहिष्कार की आवाज बुलंद करने वाले नक्सली बैकफुट पर

राजनीतिक हलचल शुरू होने के बावजूद नक्सलियों द्वारा चुप्पी साधना स्पष्ट रूप से संकेत देता है कि पुलिस की सक्रियता से वे बैकफुट पर चले गए हैं बल्कि उनका जनाधार भी समाप्त हो रहा है।

By mritunjayEdited By: Published: Tue, 19 Mar 2019 01:07 PM (IST)Updated: Tue, 19 Mar 2019 01:07 PM (IST)
LokSabha Election 2019: पुलिस की सक्रियता से चुनाव बहिष्कार की आवाज बुलंद करने वाले नक्सली बैकफुट पर
LokSabha Election 2019: पुलिस की सक्रियता से चुनाव बहिष्कार की आवाज बुलंद करने वाले नक्सली बैकफुट पर

पारसनाथ, जेएनएन। पारसनाथ पर्वत की तराई में आने वाला क्षेत्र चाहे वह डुमरी या पीरटांड़ का हो या फिर पड़ोसी जिला धनबाद का तोपचांची और टुंडी सीमा क्षेत्र। ये गिरिडीह लोकसभा का अहम हिस्सा हैं। ये हिस्से समीकरण को बदल देने का मादा रखते हैं। ये क्षेत्र नक्सलियों के सेफ जोन के रूप में भी विख्यात है। दशकों से चुनाव बहिष्कार की रणनीतियां सर्वप्रथम इसी क्षेत्र से प्रचारित-प्रसारित होती रही हैं। इस बार आसन्न लोकसभा चुनाव को लेकर किसी भी प्रकार की अपील सार्वजनिक नहीं हुई है। पुलिस की सक्रियता व बढ़ती दबिश के कारण गिरिडीह जिला के किसी भी क्षेत्र से कोई माओवादी संदेश प्रसारित नहीं हुआ है। 

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एक समय था जब पीरटांड़ व डुमरी प्रखंड में चुनाव बहिष्कार को ले ग्रामीणों से अपील की जाती थी। खुलकर तो नहीं पर दबी जुबान से स्थानीय निवासी बताते हैं कि गत पांच-छह चुनावों पर गौर करेंगे तो पाएंगे कि चुनाव की घोषणा होते ही नक्सली भी वोट बहिष्कार के पर्चे चिपकाने लगते थे। ग्रामीणों को भी यह कहकर धमकाना शुरू कर देते थे कि अगर मतदान किया तो अंजाम बुरा होगा। इस बार नक्सलियों ने अभी तक अपनी किसी भी तरह की रणनीति सामने नहीं आने दी है। चुनाव की तारीख तय हो जाने व राजनीतिक हलचल शुरू होने के बावजूद नक्सलियों द्वारा चुप्पी साधना स्पष्ट रूप से संकेत देता है कि पुलिस की सक्रियता से वे न केवल बैकफुट पर चले गए हैं, बल्कि उनका जनाधार भी समाप्त हो रहा है। इधर, शांतिपूर्ण चुनाव कराने को ले पुलिस जंगलों व गांवों में ताबड़तोड़ छापेमारी कर रही है। गिरिडीह पुलिस अधीक्षक स्वयं अपने स्तर से छापेमारी पर नजर रखे हैं व उसे निर्देशित कर रहे हैं। 


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