Lok Sabha Election 2019:राजमहल में 'आम' का सबसे अधिक सियासी दाम
राजमहल में 37 फीसद अनुसूचित जनजाति और 5 प्रतिशत अनुसूचित जाति के लोग रहते हैं। 29 फीसदी अल्पसंख्यक और 28 फीसदी सनातनी हिंदू रहते हैं।
पाकुड़, रोहित कुमार। पहाडिय़ों से घिरा राजमहल लोकसभा क्षेत्र। यहां के आम के सामाजिक समीकरण का सबसे अधिक सियासी दाम है। आम का मतलब आदिवासी और मुसलमान। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक यहां 37 फीसदी आदिवासी हैं तो 29 फीसदी मुसलमान। दोनों मिला दें तो 66 प्रतिशत। आदिवासी के साथ मुसलमान का साथ मिल जाय तो किसी भी दल की बल्ले बल्ले। राजमहल संसदीय सीट आदिवासी के लिए आरक्षित है। साहिबगंज और पाकुड़ जिले में फैले राजमहल लोकसभा सीट के भीतर छह विधानसभा क्षेत्र हैं। इनमें चार आदिवासी के लिए सुरक्षित हैं। इसकी वजह है, आदिवासी की आबादी।
राजमहल लोकसभा क्षेत्र पर झारखंड के राजनीतिक दलों का शीर्ष नेतृत्व उतना फोकस नहीं करता है। शुरुआत से ही। मगर यह जगह एतिहासिक है। 1855 में ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ यहां संताल हूल शुरू हुआ था। झारखंड यही पर गंगा की पवित्र धारा को स्पर्श करता है। कन्हैया स्थान में चैतन्य महा प्रभु के कदम पड़े थे।
राजमहल लोकसभा क्षेत्र में पाकुड़ जिला से महेशपुर और लिïट्टीपाड़ा और साहिबगंज जिला से बरहेट तथा बोरियो विधान सभा क्षेत्र से अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवार ही चुनाव लड़ सकते हैं। साहिबगंज में राजमहल और पाकुड़ में पाकुड़ से सामान्य जाति के लोग चुनाव लड़ सकते हैं। राजमहल लोकसभा क्षेत्र के कुछ मतदान केंद्र गोड्डा और दुमका जिला में भी हैं।
गांव और जंगल में 90 फीसद आबादी का बसेराः 2011 के जनगणना के मुताबिक लोकसभा लोकसभा क्षेत्र की 91 फीसद आबादी का बसेरा जंगल और गांवों में है। 37 फीसद अनुसूचित जनजाति और 5 प्रतिशत अनुसूचित जाति के लोग रहते हैं। 29 फीसदी अल्पसंख्यक और 28 फीसदी सनातनी हिंदू रहते हैं। वोटरों की कुल 14.34 लाख हैं। 5.20 लाख आदिवासी, 4.26 लाख अल्पसंख्यक, 4.05 लाख सनातनी ङ्क्षहदू रहते हैं।
2020 मतदान केंद्रों पर डाले जाएंगे वोटः राजमहल लोकसभा चुनाव में 2020 मतदान केंद्र बनाएं गए हैं। 1014 मतदान केंद्र पाकुड़, लिट्टीपाड़ा व महेशपुर व 1006 मतदान केंद्र राजमहल, बोरियो व बरहेट विधानसभा क्षेत्र में पड़ते हैं।