मनसे की रैली में गिनवाईं जा रही हैं मोदी व फड़नवीस सरकार की कमियां
महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के अध्यक्ष राज ठाकरे शिवसेना-भाजपा गठबंधन को हराने के लिए बड़ी-बड़ी रैलियां कर मोदी व फड़नवीस सरकार की कमियां गिनवा रहे हैं।
मुंबई, ओमप्रकाश तिवारी। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के अध्यक्ष राज ठाकरे की स्थिति इस लोकसभा चुनाव में बिना सेना के सेनापति जैसी हो गई है। वह अपने दल को चुनाव नहीं लड़वा रहे हैं, लेकिन शिवसेना-भाजपा गठबंधन को हराने के लिए अपनी पार्टी की बड़ी-बड़ी रैलियां कर रहे हैं और कांग्रेस-राकांपा के पक्ष में मतदान करने का फतवा जारी कर रहे हैं। पिछले शनिवार को महाराष्ट्र का बड़ा पर्व माने जाने वाले गुड़ी पाड़वा की शाम मुंबई के शिवाजी पार्क में उन्होंने मनसे की बड़ी रैली का आयोजन किया। जिसमें बड़ी संख्या में लोग आए और उनके सामने राज ठाकरे ने मोदी व फड़नवीस सरकार की कमियां गिनाईं। मंच पर बाकायदा स्क्रीन लगाकर वह गांव दिखाए, जहां केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा किए गए वादे आज भी पूरे नहीं हो सके हैं। इसी रैली में राज ठाकरे ने कहा कि 2014 से पहले उन्हें मोदी से भी बहुत उम्मीदें थीं, लेकिन उनका शासन विनाशकारी साबित हुआ है। अब राहुल गांधी प्रधानमंत्री बनते हैं तो बनें। देखते हैं क्या होता है। राज ठाकरे की मुंबई जैसी ही आधा दर्जन और रैलियां महाराष्ट्र के विभिन्न हिस्सों में करने की योजना है।
बिना लड़े ही कांग्रेस-राकांपा को समर्थन
लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया शुरू होने के पहले राज ठाकरे के कांग्रेस-राकांपा गठबंधन में शामिल होने की उम्मीद की जा रही थी। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता शरद पवार से उनकी मुलाकात भी हुई थी। सुनने में आया था कि दो सीटें मनसे को मिलने जा रही हैं। ऐसा नहीं हुआ तो राज ठाकरे ने बिना चुनाव लड़े ही कांग्रेस-राकांपा को समर्थन देने की घोषणा कर दी।
बच रहे राकांपा और कांग्रेस
राज ठाकरे अपनी ओर से भले कांग्रेस-राकांपा को समर्थन देने की बात कर रहे हों, लेकिन कांग्रेस-राकांपा खुलकर उनका समर्थन लेने से भी झिझक रही हैं। क्योंकि परप्रांतियों से राज ठाकरे की चिढ़ जगजाहिर है। राज ठाकरे के कांग्रेस-राकांपा के मंच पर जाने से इन दोनों दलों का गैरमराठीभाषी जनधार भी खिसक सकता है। मुंबई राकांपा अध्यक्ष सचिन अहीर साफ कहते हैं कि राज ठाकरे की पार्टी से उनके वैचारिक मतभेद हैं। हमने राज ठाकरे से किसी तरह का चुनावी गठबंधन नहीं किया है। वह खुद हमें समर्थन दे रहे हैं, तो उन्हें कैसे रोका जा सकता है। कांग्रेस तो इस संबंध में कुछ बोल ही नहीं रही है। क्योंकि मुंबई में हिंदीभाषी मतदाताओं की संख्या अच्छी-खासी है, और यह वर्ग कभी कांग्रेस का प्रतिबद्ध मतदाता रहा है। महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फड़नवीस तो राज ठाकरे की इस नीति को 'मान न मान, मैं तेरा मेहमान' की नीति कहकर उनकी खिल्ली उड़ाने से भी नहीं चूकते।
शिखर से शून्य तक
राज ठाकरे के मनसे की यह स्थिति अचानक नहीं हुई है। करीब 13 साल पहले शिवसेना से अलग होकर मनसे का गठन करने के बाद मराठीभाषी समाज को उनसे बड़ी उम्मीदें थीं। इसी उम्मीद के बल पर 2009 के लोकसभा चुनाव में मनसे राज्य के 11 लोकसभा क्षेत्रों में इतने मत जुटाने में कामयाब रही कि उसके कारण शिवसेना को हार का सामना करना पड़ा था। नासिक और दक्षिण मुंबई में तो उसके उम्मीदवार दूसरे स्थान पर रहे थे। उसी वर्ष हुए महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव में भी मनसे ने 13 विधानसभा सीटें जीतकर सबको अचरज में डाल दिया था। मुंबई सहित कई महानगरपालिकाओं में भी उसका प्रदर्शन बहुत अच्छा रहा था। नासिक महानगरपालिका में तो वह बाकायदा सत्ता में आ गई, लेकिन यही उसके राजनीतिक उत्थान का शिखर था। 2014 का लोकसभा चुनाव मनसे लड़ी ही नहीं, और विधानसभा चुनाव में 13 से घटकर एक पर आ गई। पिछले मुंबई मनपा चुनाव में वह एक सीट जीतकर सिर्फ अपना खाता भर खोल सके थे। यही कारण है कि कांग्रेस-राकांपा उनसे खुलकर समर्थन लेने में भी हिचक रही हैं।