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यहां चुनावी शोरगुल से दूर हैं कई गांव, सात घंटे पैदल चलकर पहुंचता है संदेश

उत्तराखंड में टिहरी गढ़वाल संसदीय क्षेत्र के कई गांवों में अभी तक भी चुनावी शोरगुल नहीं पहुंच पाया। पहुंचता भी कैसे इन गांवों में न तो टीवी है और न मोबाइल ही।

By BhanuEdited By: Published: Fri, 05 Apr 2019 01:25 PM (IST)Updated: Fri, 05 Apr 2019 01:25 PM (IST)
यहां चुनावी शोरगुल से दूर हैं कई गांव, सात घंटे पैदल चलकर पहुंचता है संदेश
यहां चुनावी शोरगुल से दूर हैं कई गांव, सात घंटे पैदल चलकर पहुंचता है संदेश

उत्तरकाशी, शैलेंद्र गोदियाल। 17वीं लोकसभा के लिए होने वाले प्रथम चरण के मतदान का प्रचार अभियान अपने चरम की ओर बढ़ रहा है, लेकिन उत्तराखंड में टिहरी गढ़वाल संसदीय क्षेत्र के कई गांवों में अभी तक भी चुनावी शोरगुल नहीं पहुंच पाया। पहुंचता भी कैसे, इन गांवों में न तो टीवी है और न मोबाइल ही। ऐसे में कोई संदेश भी अगर जिला मुख्यालय से इन गांवों तक पहुंचाना हो तो उसके लिए सड़क मार्ग से 200 किमी का सफर तय करने के बाद सात घंटे पैदल चलने की कठिन परीक्षा से भी गुजरना पड़ेगा।

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उत्तरकाशी जिले में ओसला, गंगाड़, पवाड़ी, ढाटमीर, लिवाड़ी, पिलंग, जौड़ाव समेत दस से ज्यादा गांवों में संदेश भी मोबाइल से नहीं, बल्कि पैदल चलकर पहुंचाए जाते हैं। मोरी ब्लॉक के ओसला गांव निवासी मूर्ति सिंह अपने बेटा-बेटी की कुशलक्षेम पूछने के लिए गांव से सौ किमी दूर पुरोला पहुंचे थे। वहां से उन्होंने फोन कर देहरादून में पढ़ाई कर रही अपनी 11 साल की बेटी व 20 साल के बेटे की खैर-खबर ली। 

50-वर्षीय मूर्ति सिंह ने बताया कि उनके गांव में अभी भी तीन से चार फीट बर्फ है। गांव से रोड हेड तालुका तक आने के लिए ग्रामीणों ने 16 किमी लंबे रास्ते से खुद ही बर्फ हटाई। तब जाकर मार्ग पर आवाजाही हो पा रही है। बताया कि गांव में पिछले दस दिनों से बिजली नहीं है। पूरे शीतकाल बिजली की ऐसी ही आंखमिचौनी चलती रही। 

कहते हैं, ओसला गांव में 150 परिवार और 454 मतदाता हैं। ओसला के पास गंगाड़, पवाणी व ढाटमीर गांव पड़ते हैं। इन गांवों की आबादी तीन हजार के आसपास है, जो ओसला की तरह ही समस्याएं झेल रही है। गोविंद वन्यजीव विहार में होने के कारण उनके गांव के लिए सड़क निर्माण की स्वीकृति भी नहीं मिल पा रही। 

ऐसे में इन गांवों से तालुका पहुंचने में सात घंटे का समय लग जाता है। दूसरी समस्या संचार की है। सो, फोन करने के लिए ग्रामीणों को पुरोला आना पड़ता है। नेटवर्क न होने के कारण कोई ग्रामीण मोबाइल भी नहीं रखता। जाहिर है, इन हालात में अगर गांव में कोई घटना घट जाए तो उसकी जानकारी प्रशासन को कई घंटे बाद मिल पाती है।

मूर्ति सिंह कहते हैं कि चिलुडग़ाड लघु जल-विद्युत परियोजना से पांच माह पूर्व उनका गांव जुड़ा था। लेकिन, इस बार भारी बर्फबारी एवं बारिश के कारण परियोजना की नहर बुरी तरह  क्षतिग्रस्त हो गई। यही नहीं, परियोजना के दुरुस्त हाल रहने पर भी लोगों को पर्याप्त बिजली नहीं मिल पाती। 

लिहाजा, प्रत्येक परिवार को सिर्फ एक-एक बल्ब जलाने की ही अनुमति है। हां! इतना जरूर है कि देश-विदेश के पर्यटकों की आवाजाही हरकीदून घाटी में होने पर पर्यटक उनके गांव में भी रुकते हैं। तब देश-दुनिया के बारे में कुछ जानकारी मिल पाती है।

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