Move to Jagran APP

Loksabha Election 2019 : बड़ा मुद्दा- तीन तलाक सीमित क्षेत्र नहीं, देश का मसला

बरेली से उठकर पश्चिम के कई जिलों में तीन तलाक के खिलाफ गूंजी आवाजें क्या इस चुनाव में मुद्दे का रूप ले पाएंगी।

By Dharmendra PandeyEdited By: Published: Mon, 25 Mar 2019 05:17 PM (IST)Updated: Mon, 25 Mar 2019 05:17 PM (IST)
Loksabha Election 2019 : बड़ा मुद्दा- तीन तलाक सीमित क्षेत्र नहीं, देश का मसला
Loksabha Election 2019 : बड़ा मुद्दा- तीन तलाक सीमित क्षेत्र नहीं, देश का मसला

बरेली [जितेंद्र शुक्ल]। तीन तलाक के खिलाफ आवाज अब एक सीमित क्षेत्र का नहीं, बल्कि पूरे देश का मसला है। यह संवेदनशील मसला मुस्लिम महिलाओं के जमीर से जुड़ा होने के साथ ही अब चुनाव पर भी असर डाल सकता है। बरेली से उठकर पश्चिम के कई जिलों में तीन तलाक के खिलाफ गूंजी आवाजें क्या इस चुनाव में मुद्दे का रूप ले पाएंगी।

loksabha election banner

दोपहर में करीब दो बजे का वक्त रहा होगा जब निशां अपनी डेगची में पक रहे चावल की नुमा बुदबुदाते हुए किस्मत को कोसे जा रही थीं। शौहर के तत्काल तीन तलाक देने के बाद से वह और उनकी जैसी तमाम मुस्लिम महिलाओं की स्थिति कुछ ऐसी ही हो गई है। हालांकि अब आशा की किरण नजर आ रही है।

बरेली से तीन तलाक के खिलाफ उठी आवाज को वह अब आंधी कह रही हैं। सिर्फ निशां ही नहीं, मुस्लिम समाज में पढ़ी लिखी युवतियां भी अब इसे अपने अधिकारों से जुड़ा मसला मानती हैैं। वे मानती हैैं कि भले से ही तीन तलाक चुनाव में हार-जीत का कारण न बने लेकिन, यह तय है कि महिलाओं का एक वर्ग इस नजरिये से भी प्रत्याशियों का आकलन करेगा।

इस समय फागुन की हवा में पतझड़ की बहार छाई है। पेड़ों की शाखाएं पुराने पत्तों को तज कर नए कोपलें धारण कर रही हैं। बदलाव की यह हवा इस बार राजनीतिक रस से भी तर है, जिसमें मुस्लिम महिलाओं का यह दंश भी शामिल है। तीन तलाक से बहुतों की जिंदगी बिखरी हैै लेकिन, यह विडंबना है कि सियासत ने अब इस पर संजीदगी दिखाई है। इसी वजह से इस पर विरोध भी है और समर्थन भी। भाजपा इसे पहले ही अपने एजेंडे में शामिल कर चुकी है। बरेली में ही बीए की एक छात्रा थोड़ा झिझकते हुए यह स्वीकार करती हैैं कि इस पर हम वोट देंगे या नहीं, यह अभी नहीं कहा जा सकता लेकिन, अब हम लोगों के डिबेट में यह विषय भी शामिल है।

वस्तुत: इसके पीछे पारिवारिक तबाही की कहानियां हैं। रबड़ी टोला के पप्पू का परिवार दूसरे माले के एक कमरे के घर में इसे महसूस कर रहा है। उनकी आरजू बस इतनी है कि जिस तीन तलाक से मेरी बेटी की जिंदगी तबाह हो चुकी है। उस पर इतना सख्त कानून बने कि कोई और बेटी इसका शिकार न बन पाए। यह एक तरह से इस बात की ओर इशारा है कि सरकार ने जो कदम उठाया है, वह सही है।

रिक्शा चलाकर परिवार का पेट पालने वाले पप्पू की चार बेटियां हैं। बड़ी बेटी निशां का निकाह वर्ष 2014 में मुहल्ले के ही शादाब से किया गया था। छह महीने बाद खाविंद ने निशां को तलाक दे दिया। मायके में रह रही निशां बताती हैं कि तीन बहनें और हैं। शौहर को दहेज में गाड़ी चाहिए थी, हमारा परिवार वो न दे सका तो तलाक दे दिया। करीब साढ़े तीन साल धक्के खाए। पुलिस-प्रशासन से कोई मदद नहीं मिली। हम चाहते हैं कि सरकार तलाक पर सख्त कानून बनाए, ताकि बेटियों की जिंदगी सुरक्षित हो सके। जब जिसके दिल में आए तीन तलाक बोलकर छुटकारा नहीं पा सके। यह सिर्फ निशां की नहीं तीन तलाक से पीडि़त हर महिला के जमीर की आवाज है। निशां की मां कहती हैं कि तत्काल तीन तलाक पर फौरन रोक लगनी चाहिए। यह जरूरी है कि सरकार इस पर संजीदगी से काम करे। कोई इंसान ये नहीं चाहता कि शादी के बाद उसकी बेटी-बहन तलाक के दर्द के साथ जिये। यह खालिस महिलाओं का मुद्दा है, महिला के नजरिये से ही इसे समझना चाहिए और वे समझ भी रही हैैं।

प्रदेश में कई ऐसे जिले हैैं, जिनमें मुस्लिमों की संख्या अधिक है और वहां पूरी तरह नहीं तो आंशिक तौर पर ही इस चुनाव में तीन तलाक पर जनमत उभरकर सामने आ सकता है। मुरादाबाद, रामपुर, बिजनौर, कैराना, अमरोहा, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, बरेली, मेरठ, सम्भल, बलरामपुर, मऊ, बदायूं, बहराइच, आजमगढ़, कानपुर, बुलंदशहर, गाजियाबाद व बाराबंकी जैसी लोकसभा सीटों पर सबकी नजर है।

इन जिलों में दिखेगा असर

प्रदेश के कई जिलों में मुस्लिमों की आबादी चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाती है। इन्हीं जिलों में तीन तलाक के मुद्दे पर महिलाओं की भूमिका पर भी सबकी निगाह होगी। रामपुर में 50.57 फीसद, मुरादाबाद में 47.12, बिजनौर 43, सहारनपुर 42, मुजफ्फरनगर में 42, अमरोहा में 40, बलरामपुर में 37 फीसद मुस्लिम हैं। इसी तरह मेरठ, बहराइच, श्रावस्ती, सिद्धार्थनगर, बागपत, गाजियाबाद, पीलीभीत, संतकबीर नगर, बाराबंकी, बुलंदशहर, बदायूं, लखनऊ व खीरी में मुस्लिम आबादी 20 फीसद से अधिक है। मुस्लिम लड़कियों में शिक्षा के प्रति बढ़ रही ललक से भी तीन तलाक के मसले को बल मिल सकता है।

कानून खत्म करना समाज के लिए घातक

आला हजरत खानदान की बहू रहीं निदा खान पिछले करीब ढाई साल से तीन तलाक पीडि़ताओं की आवाज उठा रही हैं। वह तीन तलाक पर सख्त कानून की पक्षधर हैं। इसी कारण उनके खिलाफ इस्लाम से खारिज होने का फतवा भी जारी हो चुका है।

निदा कहती हैं कि भले इस बार तीन तलाक का मसला वोट नहीं दिलवा सके लेकिन, यह अब व्यापक बहस का मसला जरूर है। निदा खान, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के उस बयान को मुस्लिम समाज की महिलाओं के लिए सही नहीं मानती हैं, जिसमें उन्होंने कहा था कि अगर हमारी सरकार बनी तो तत्काल तीन तलाक कानून खत्म कर देंगे।

तलाक बन चुका बड़ा मुद्दा

मेरा हक फाउंडेशन की अध्यक्ष फरहत नकवी मानती हैं कि तीन तलाक अब बड़ा मुद्दा बन चुका है। पूरा देश इस पर सजग है। पिछले दिनों मुंबई के एक कार्यक्रम के दौरान लोगों ने मेरी तरफ ध्यान नहीं दिया। जब मैंने तलाक की लड़ाई का परिचय दिया तो लोगों ने बड़े गौर से मुझे सुना और हौसला बढ़ाया। फरहत नकवी मानती हैं कि तीन तलाक पर रोक से मुस्लिम महिलाओं की जिंदगी में बड़ा बदलाव आएगा, यह बात अब वे धीरे-धीरे मानने लगी हैैं।

सरकार को कानून बनाने का हक

देवबंद मसलक के मुफ्ती मुहम्मद मिंया कासमी ने बताया मुसलमान इस्लामिक कानून के मुताबिक जिंदगी गुजारते हैं। सरकार को हक है वो किसी भी मुद्दे पर कानून बनाए।

तीन तलाक पर रोक का सवाल है तो इसके लिए घर का माहौल अच्छा बनाना होगा। बच्चों को शिक्षित करना होगा। यह समझाना होगा कि तलाक दुनिया की सबसे बुरी चीज है।

तीन तलाक को दिया गया तूल

अध्यक्ष सुन्नी उलमा कौंसिल, मौलाना इंतेजार अहमद कादरी ने कहा कि मुस्लिम समाज में तीन तलाक की घटनाएं सीमित हैं। तलाक के मुद्दे को तूल देकर इतना बड़ा बना दिया गया है कि जैसे मुसलमानों में इसके सिवा कोई दूसरी समस्या नहीं है। मुसलमान शरई तरीके से जिंदगी बसर करेंगे। सरकारें हमदर्द हैं तो वो समाज की शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार काम करें।

दखलअंदाजी कर रही सरकार

मोहतमिम, दारुल उलूम मोहतमिम मुफ्ती अबुल कासिम नौमानी ने कहा कि दारुल उलूम ने कहा था कि सरकार मजहबी मामलों में कानून के रास्ते से दखलअंदाजी कर रही है।

दारुल उलूम पहले भी कह चुका है कि इस्लामी उसूलों में बदलाव नहीं किया जा सकता है।

चुनाव से तीन तलाक का लेना-देना नहीं

इमाम, ऐशबाग ईदगाह मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने कहा कि शरियत और सियासत दोनों अलग है। चुनाव से तीन तलाक का मसले का कोई लेना-देना नही हैं, यह कोई मुद्दा नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले पर अपना फैसला सुना दिया है, उसके बाद इस पर कोई चर्चा या कोई मुद्दा बनाना नहीं चाहिए। चुनाव में हम सभी को बढ़चढ़ कर हिस्सा लेना चाहिए, जो बेहतर हो उसे वोट करें। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.