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Loksabha Election 2019 :सियासत का हॉट केक रामजन्मभूमि अयोध्या अभी भी फर्श पर

सियासत उगाते-उगाते अयोध्या स्वयं बंजर हो गई। रामलला भी अपने हाल तक सिमट कर रह गए हैं जिनकी जन्मभूमि के सवाल पर अयोध्या का उपयोग आस्था के साथ राजनीति के लिए भी शुरू हुआ।

By Dharmendra PandeyEdited By: Published: Sat, 23 Mar 2019 11:29 AM (IST)Updated: Sat, 23 Mar 2019 11:32 AM (IST)
Loksabha Election 2019 :सियासत का हॉट केक रामजन्मभूमि अयोध्या अभी भी फर्श पर
Loksabha Election 2019 :सियासत का हॉट केक रामजन्मभूमि अयोध्या अभी भी फर्श पर

अयोध्या [रमाशरण अवस्थी]। सियासत का हॉट केक मानी जाने वाली अयोध्या ने भले ही तमाम को सत्ता के अर्श तक पहुंचाया, लेकिन खुद फर्श पर ही रही। कहना गलत न होगा कि मंदिर आंदोलन के राजनीतिक नफा-नुकसान के चलते जाने-अनजाने रामनगरी विकास की दौड़ में शामिल नहीं हो सकी।

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यहां से लोगो को दिल्ली का रास्ता मिला, लेकिन यहां के रास्ते खुद बदहाल हैं। जो नगरी करोड़ों के आराध्य की जन्मभूमि हो, वहां विकास अपनी जमीन तलाश रहा है। तमाम लोगों को भले ही मंदिर मुद्दा आंदोलित करता हो, लेकिन यहां की जमीनी हकीकत कुछ और ही है। देव दर्शन का सुख तो आपको मिलेगा, लेकिन जर्जर सड़कें आपकी तकलीफ के लिए काफी हैं। बढ़ते पर्यटक, शून्य सुविधाएं और ढंग के होटल तक नहीं। घाटों पर गंदगी, स्थानीय गाइड की मनमानी, पर्यटकों की दुश्वारियों के बीच महंतों में वर्चस्व की लड़ाई भी होती है। यहां के लोग रोज असुविधाओं से दो-चार होते हैं, वह भी उस जमीन पर जहां का नाम अयोध्या है।

सियासत उगाते-उगाते अयोध्या स्वयं बंजर हो गई। रामलला भी अपने हाल तक सिमट कर रह गए हैं, जिनकी जन्मभूमि के सवाल पर अयोध्या का उपयोग आस्था के साथ राजनीति के लिए भी शुरू हुआ। यूं तो विश्व हिन्दू परिषद ने 1984 में मंदिर आंदोलन की शुरुआत की और अगले साल फरवरी में जिस इमारत में रामलला विराजमान थे, न्यायिक आदेश पर उसका ताला खोला गया। इसके बाद उम्मीद जगी कि रामजन्मभूमि पर मंदिर निर्माण भी दूर की कौड़ी नहीं रह गई है। विहिप ने पूरे देश में राममंदिर निर्माण यात्रओं और लाखों गांवों में शिलापूजन करा इस उम्मीद को परवान चढ़ाया।

देश में 1989 के आम चुनाव से पूर्व भाजपा ने पालमपुर अधिवेशन में प्रस्ताव पास कर मंदिर निर्माण के पक्ष में खड़े होने का खुला एलान भी किया और लोकसभा में उसके सदस्यों की संख्या दो से बढ़कर 88 तक जा पहुंची। भाजपा के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी 25 सितंबर को सोमनाथ से अयोध्या तक की रथयात्र पर निकले। 30 अक्टूबर एवं दो नवंबर 1990 की कारसेवा में विहिप के साथ भाजपा के लोग भी खुलकर शामिल हुए। समस्तीपुर में गिरफ्तारी के बाद आडवाणी की यात्र बाधित हुई थी। उनकी रिहाई तक कारसेवा हो चुकी थी, पर वे अयोध्या पहुंचकर ही माने और बताया कि सियासत में अयोध्या कितनी अहम है।

इसके बाद 1991 के आम चुनाव में यह सच्चाई परिभाषित भी हुई। भाजपा ने उत्तर प्रदेश सहित चार राज्यों में सत्ता हासिल की और लोकसभा में भाजपा के सदस्यों की संख्या 120 के पार पहुंच गई। एक ओर अयोध्या के बहाने राजनीतिक मलाई कटती रही तो दूसरी ओर अयोध्या दिन बहुरने का इंतजार करती रही। छिटपुट प्रयास तो हुए, पर अन्य तीर्थ नगरियों या पर्यटन केंद्रों की तुलना में अयोध्या हाशिए पर ही नजर आती रही।

केंद्र व राज्य सरकार ने केंद्रित किया ध्यान

वर्तमान केंद्र एवं प्रदेश सरकार ने जरूर रामनगरी की ओर ध्यान केंद्रित किया है और अयोध्या नगर निगम तथा फैजाबाद जिला का नामकरण अयोध्या कर उम्मीद जगाई है, पर यहां से उपजी सियासत को सत्ता का जो शिखर मिला, अयोध्या के लिए वैसा शिखर मिलना अब भी मृगमरीचिका बनी हुई है। पर्यटन नगरी के तौर पर यहां एयर कनेक्टिवटी कब की हो जानी थी, पर अभी हवाई अड्डा बनने की तैयारी शुरू हुई है। फाइव स्टार एवं थ्री स्टार श्रृंखला के होटल या धर्मशाला इस युग में भी रामनगरी के लिए स्वप्न बना हुआ है।

नगर की उपेक्षा पर आह भरते हुए नाका हनुमानगढ़ी के महंत रामदास जयपुर के करीब स्थित खाटूश्याम की प्राकट्य स्थली का उदाहरण देते हैं। कहते हैं, वहां साढ़े तीन हजार होटल और धर्मशालाएं हैं और भगवान राम की नगरी में इसका दशांश तक नहीं है। गत दिनों ही कृष्ण जन्मभूमि के ठाट से निमज्जित होकर आए दवा कारोबारी एवं कांग्रेस नेता सुनीलकृष्ण गौतम कहते हैं, मथुरा जाने पर अयोध्या भूल जाती है। जगतगुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामदिनेशाचार्य कहते हैं, 'अयोध्या की अपनी आध्यात्मिकता है और उसका वाह्यजगत से सरोकार सीमित है।' इसके बावजूद इस रामनगरी के आराध्य और उसके वैभव की चिंता नजरंदाज नहीं होती।

पाबंदियों के चलते फीकी पड़ती चमक

मंदिर-मस्जिद विवाद के चलते यदि सुरक्षा का घेरा कसता रहा है तो नागरिक स्वायत्तता भी प्रभावित हुई है। तकरीबन आधी अयोध्या पुलिस एवं अर्धसैनिक बलों की छावनी के रूप में नजर आती है। सर्वाधिक रोक-टोक के शिकार रामकोट क्षेत्र के लोग हैं। इस क्षेत्र में सैकड़ों पौराणिक महत्व के मंदिर हैं, पर विवादित परिसर के अधिग्रहण और सुरक्षा संबंधी पाबंदियों के चलते उनकी चमक फीकी पड़ी है। कई का अस्तित्व मिटता जा रहा है। इन मंदिरों के इर्दगिर्द अधिग्रहण से पूर्व तक भगवान सहित पुजारियों, मालियों, श्रद्धालुओं, दुकानदारों, संतों-संगीतज्ञों की पूरी दुनिया इतराती-इठलाती थी, लेकिन अब बियाबान है। यहां के बाशिंदे आए दिन होने वाली बेरिकेडिंग से आजिज आ चुके हैं।

मुख्यमंत्री योगी के आगमन से बंधी आस

मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ कई बार अयोध्या का दौरा कर चुके हैं। शायद उनके बार-बार आने का ही असर है कि बाजारों में लाइट लगी है और तमाम जगह सड़क बन गई है। अयोध्या को उसकी पहचान दिलाने के लिए विकास की कई घोषणाएं भी हुई हैं। अब देखना यह है कि हकीकत में अयोध्या को आने वाले वर्षो में क्या मिलता है।

जीर्ण-शीर्ण मंदिर

अयोध्या में तकरीबन पांच हजार से ज्यादा मंदिर हैं और सरकारी आंकड़ों में 182 मंदिर जर्जर है। इनको देखकर ही लगता है कि यह अंतिम सांसें गिन रहे हैं। जब कोई हादसा होता है तो स्थानीय प्रशासन मंदिर में प्रवेश पर रोक लगाकर शांत बैठ जाता है। पहले भी कई बार जजर्र मंदिर और भवन गिरने से लोग चोटिल हो चुके हैं।

अन्य तीर्थ नगरियों की तुलना में अयोध्या हाशिए पर

अयोध्या में पर्यटकों के लिए सुविधाएं शून्य हैं। अन्य तीर्थ नगरियों की तुलना में अयोध्या हाशिए पर ही नजर आती है। पर्यटन विभाग का एक साकेत होटल है और सरयू तट पर एक यात्री गृह है। पर्यटन विभाग को कोई गाइड न होने से कुछ स्थानीय तथाकथित गाइड लोगों को अयोध्या दर्शन कराते हैं। इसमें अक्सर पैसे को लेकर वाद-विवाद के बाद लोग कड़वा अनुभव लेकर जाते हैं। अन्य तीर्थनगरियों और पर्यटन स्थलों से तुलना करें तो अयोध्या सुविधाओं के मामले में बहुत पीछे खड़ी नजर आती है। आंकड़ों के मुताबिक 2017 में एक करोड़ 41 लाख टूरिस्ट पहुंचे थे। यह आंकड़ा साल दर साल बढ़ रहा है लेकिन हकीकत यह है मेहमानों के रुकने के लिए आज भी वहां फाइव स्टार होटल तक नहीं है। 


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