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Loksabha Election 2019 : इस बार नहीं रामपुर के नवाब खानदान का नूर

पश्चिमी यूपी की सियासत में गहरी पैठ रखने वाला रामपुर का नवाब खानदान पहली बार चुनावी रण से बाहर है। कांग्रेस ने नूरबानो के स्थान पर संजय कपूर को मैदान में उतारा है।

By Umesh TiwariEdited By: Published: Mon, 01 Apr 2019 04:11 PM (IST)Updated: Mon, 01 Apr 2019 04:11 PM (IST)
Loksabha Election 2019 : इस बार नहीं रामपुर के नवाब खानदान का नूर
Loksabha Election 2019 : इस बार नहीं रामपुर के नवाब खानदान का नूर

मुरादाबाद [संजय मिश्र]। कांग्रेस और नवाब खानदान का रिश्ता कितना गहरा है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि दो बार सांसद रह चुकीं नूरबानो की शादी में खुद प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू आशीर्वाद देने आए थे। चुनावी यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री रहते इंदिरा गांधी ने रामपुर के नवाब के महल में रात्रि विश्राम किया था। ये दोनों वाकये गवाही देते हैं कि रामपुर की सियासत में नवाब खानदान का कितना जलवा था।

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रामपुर संसदीय सीट से नवाब खानदान के लोग नौ बार सांसद चुने गए। आजादी के बाद हुए पहले चुनाव को छोड़ दें तो नवाब खानदान के लोग ही हमेशा कांग्रेस के प्रत्याशी बनते रहे। अधिकतर जीते भी लेकिन, 2019 का यह पहला आम चुनाव है, जिसमें नवाब खानदान का कोई सदस्य नहीं है। इसका कारण उन्हें कांग्रेस का टिकट नहीं मिल पाना है। इससे इस सियासी परिवार की साख पर सवाल उठने लगे हैं।

क्या नवाब खानदान का सियासी रसूख खत्म हो गया है? जवाब में चंद लम्हे सोचने के बाद पूर्व सांसद बेगम नूरबानो कहती हैं 'अभी सिर्फ कामा जरूर लगा है, फुल स्टाप नहीं। देखते रहिए, एक-डेढ़ महीने बाद क्या होता है। 'क्या हो सकता है..?' पास में बैठे समर्थकों की ओर देखती हैं और मुस्कराते हुए बताती हैं-'जो भी होगा, अच्छा होगा, नया होगा।'

नवाबों के इर्दगिर्द रही रामपुर की सियासत

आजादी से पहले रामपुर नवाबों की रसूखदार रियासत थी। देश आजाद हुआ तो रियासत खत्म हो गई, लेकिन नवाबों का दबदबा कायम रहा, क्योंकि वे सियासत में उतर आए। कांग्रेस से जुड़े और नेहरू-गांधी परिवार के बेहद नजदीकियों में शामिल हो गए। 1952 में पहला लोकसभा चुनाव हुआ तो महान क्रांतिकारी मौलाना अबुल कलाम आजाद कांग्रेस के टिकट पर रामपुर से चुनाव लड़े।

पूर्व सांसद बेगम नूरबानो बताती हैं कि तब पंडित जवाहर लाल नेहरू ने नवाब रजा अली खां को बुलाकर कहा था कि मौलाना को रामपुर से चुनाव लड़ाने भेज रहा हूं। नवाब साहब ने उन्हें आश्वस्त किया था, 'आप भेजिये, हम जिताएंगे।' मौलाना रामपुर से जीते और देश के पहले शिक्षा मंत्री बने। इसके बाद के सभी चुनावों में नवाब खानदान के लोग ही रामपुर से कांग्रेस प्रत्याशी बनते रहे। बेगम नूरबानो खुद दो बार सांसद चुनी गईं, जबकि उनके पति जुल्फिकार अली खां उर्फ मिक्की मियां पांच बार सांसद बने।

उनके बेटे नवाब काजिम अली खां उर्फ नवेद मियां भी पांच बार विधायक का चुनाव जीते। हालांकि नवेद ने अपनी सुविधा के अनुसार कई बार दल बदला, लेकिन इस बार तो इस खानदान के किसी भी व्यक्ति को किसी भी दल से टिकट नहीं मिल सका है। नवाब खानदान चुनावी सियासत से इस तरह बाहर हो जाएगा, रामपुर में शायद ही किसी ने सोचा था। समूचे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में यह चुनावी चर्चा का विषय है।

'हमने तो मांगा था टिकट'

आपने टिकट मांगा नहीं या कांग्रेस ने दिया नहीं? इस पर बेगम नूरबानो कहती हैं कि 'हमने टिकट मांगा था, इसके लिए आखिर तक लड़ाई लड़ी, लेकिन नहीं मिला। क्या कर सकती हूं। यह सब राजनीति का हिस्सा है। जिंदगी कई दौर से गुजरती है। हर दौर कुछ सिखाता है।' गहरी सांस छोडते हुए वह कहती हैं 'मैं भी हिंदुस्तानी औरत हूं। ठोकरों की अभ्यस्त हो चुकी हूं। औरत जब ठान लेती है तो करके दिखाती है।'

तो क्या मान लिया जाए कि चुनावी राजनीति में नवाब खानदान का वजूद खत्म होने की ओर है? वह गौर से देखती हैं। माथे पर चिंता की लकीर भी उभरती है लेकिन, वह इसे जाहिर नहीं होने देना चाहती हैं। कहती हैं-'समय का इंतजार कीजिए।'

'सबकी नीति, बांटो और राज करो'

मौजूदा सियासी हालात को लेकर कहती हैं कि आज की सियासत अलग है। पहले के नेता समर्पित कार्यकर्ता को आगे बढ़ाते थे लेकिन, अब तो इस डर से एक सीमा से आगे नहीं लाते कि वह उन्हें पीछे छोडकर आगे निकल जाएगा। बल्कि लोग टांग खींचते हैं। अब लोगों की सोच भी बदल गई है। पहले सभी नेता देश की तरक्की के बारे में सोचते थे, लेकिन अब बांटों और राज करो की नीति पर काम कर रहे हैं।

अब गठबंधन की राजनीति शुरू हो गई है, क्षेत्रीय दलों को एक-दूसरे के सहारे की जरूरत हो गई है। रामपुर की राजनीति के मौजूदा समीकरणों पर वह सिर ऊपर करके बताती हैं कि नवाब खानदान हमेशा सेक्युलर रहा है। नवाबों ने रामपुर और आसपास मस्जिद भी बनवाए और मंदिर भी। कभी समाज को बांटने की कोशिश नहीं की। अब तो यहां लोगों की राजनीति बंटवारे की हो गई है।

बेटे नवेद मियां के बार-बार पार्टी बदलने से तो कहीं नवाब खानदान की सियासी साख नहीं प्रभावित हुई? नूरबानो कहती हैं कि जरूरी नहीं है कि जो बुजुर्गों की सोच हो, वही बेटे भी सोचें। वह अपनी सोच से अच्छा कर रहे हैं।


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