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Loksabha Election 2019 : यूपी में चौथे चरण की 13 सीटों पर दिग्गजों में होगा करीबी मुकाबला, मतदान कल

Loksabha Election 2019 चौथे चरण में उत्तर प्रदेश की 13 सीटों पर मतदान होगा। इन 13 सीटों में 5 सुरक्षित सीटें भी शामिल है। वर्तमान में इन 13 सीटों में 12 भाजपा के पास है।

By Dharmendra PandeyEdited By: Published: Sun, 28 Apr 2019 04:41 PM (IST)Updated: Sun, 28 Apr 2019 05:47 PM (IST)
Loksabha Election 2019  : यूपी में चौथे चरण की 13 सीटों पर दिग्गजों में होगा करीबी मुकाबला, मतदान कल
Loksabha Election 2019 : यूपी में चौथे चरण की 13 सीटों पर दिग्गजों में होगा करीबी मुकाबला, मतदान कल

लखनऊ, जेएनएन। लोकसभा चुनाव 2019 में तीन चरण के बाद अब कल चौथे चरण में उत्तर प्रदेश की 13 सीटों पर मतदान होगा। चौथे चरण में झांसी, हमीरपुर, शाहजहांपुर, लखीमपुर खीरी, हरदोई, मिश्रिख, उन्नाव, फर्रुखाबाद, इटावा, कन्नौज, कानपुर, अकबरपुर व जालौन लोकसभा क्षेत्र के मतदाता 152 में से अपनी पंसद के प्रत्याशी के भाग्य का फैसला करेंगे।

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इन 13 सीटों में 5 सुरक्षित सीटें भी शामिल है। वर्तमान में इन 13 सीटों में 12 भाजपा के पास है। कन्नौज से सांसद डिंपल यादव को छोड़कर सभी सीट भाजपा के पास ही है। भाजपा ने चौथे इस चरण के 12 में से पांच सांसदों का टिकट काट दिया है। बुदंलेखंड में जहां सालभर स्थानीय मुद्दे हावी रहते हैं लेकिन चुनाव के वक्त राष्ट्रीय मुद्दे स्थानीय मुद्दों पर भारी दिख रहे हैं। जातीय ध्रुवीकरण की राजनीति भी जम कर हो रही है। ऐसे में किसी भी सीट पर किसी पार्टी की एकतरफा जीत नहीं दिख रही है।

चौथे चरण में प्रदेश में नामचीन राजनीतिक दिग्गजों की साख दांव पर है। उनमें कानपुर में पूर्व केंद्रीय मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल व राज्य सरकार में कैबिनेट मंत्री सत्यदेव पचौरी, उन्नाव से भाजपा सांसद साक्षी महाराज व पूर्व सांसद कांग्रेस की अनु टंडन कन्नौज से समाजवादी पार्टी की सांसद डिंपल यादव, फर्रुखाबाद से पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद, धौरहरा से पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद और इटावा से पूर्व केंद्रीय मंत्री रामशंकर कठेरिया चुनाव मैदान में हैं।

शाहजहांपुर

शाहजहांपुर लोकसभा सीट पर भाजपा ने 2014 में बड़े अंतर से चुनाव जीती थी। इस सीट पर इस बार भाजपा ने केंद्रीय मंत्री कृष्णा राज के स्थान पर अरुण कुमार सागर को उतारा है। इनके मुकाबले गठबंधन से बसपा के अमर चंद्र जौहर और कांग्रेस से ब्रह्मस्वरूप सागर मैदान में हैं। यहां 2014 में कृष्णराज ने बसपा के उमेद सिंह कश्यप को दो लाख 35 हजार मतों से मात देकर बड़ी जीत दर्ज की थी। इस बार हालात 2014 से अलग हैं। यहां से चुनाव जीती केन्द्रीय मंत्री कृष्णा राज का टिकट काट दिया गया है। 2008 में हुए परिसीमन के बाद जबसे ये सीट सुरक्षित हुई है, कांग्रेस यहां खाता नहीं खोल पाई है। फिलहाल इस सुरक्षित सीट पर मुस्लिम और ओबीसी वोटरों की भूमिका निर्णायक है। योगी आदित्यनाथ सरकार के वरिष्ठ मंत्री सुरेश खन्ना का प्रतिष्ठा भी यहां दांव पर लगी है। पार्टी का प्रत्याशी बदले जाने में उनकी भी अहम भूमिका बताई जा रही है।

प्रमुख उम्मीदवार

भाजपा : अरुण सागर

बसपा : अमर चंद्र जौहर

कांग्रेस : ब्रह्मस्वरूप सागर

कुल वोटर : 20.97 लाख।

लखीमपुर खीरी

लखीमपुर खीरी से भाजपा ने सांसद अजय मिश्र 'टेनी' को ही मैदान में उतारा है। गठबंधन से समाजवादी पार्टी की पूर्वी वर्मा मैदान में हैं। कांग्रेस ने यहां वरिष्ठ नेता जफर अली नकवी पर दाव लगाया है। जिसके बाद जातीय समीकरणों में उलझी भाजपा की लड़ाई थोड़ी आसान दिख रही है। यहां पर मुख्य मुकाबला भाजपा बनाम गठबंधन का ही दिख रहा है। 2014 के चुनाव में अजय मिश्र ने बसपा के अरविन्द गिरी को 10.23 प्रतिशत मत और 1 लाख 10 हजार से ज्यादा वोटों से हराया था। बसपा के अरविन्द गिरी को 26 प्रतिशत मत तथा 288304 वोट मिले थे। कांग्रेस के जफर अली नक़वी तीसरे स्थान पर रहे। उन्हें 183940 वोट मिले थे। सपा के रवि प्रकाश वर्मा चौथे नंबर पर थे। इस बार सपा ने उनकी बेटी डॉ. पूर्वी वर्मा को गठबंधन का प्रत्याशी बनाया है। अवध के तराई बेल्ट की यह सीट लखीमपुर खीरी के नाम से भी जानी जाती है। करीब 18 साल बाद यह सीट मोदी लहर में भाजपा जीती थी। सांसद अजय मिश्र टेनी पर भाजपा ने फिर भरोसा जताया है। इस सीट पर ब्राह्मण वोटरों की अच्छी संख्या है लेकिन अति पिछड़े खासकर कुर्मी वोट निर्णायक भूमिका में हैं। सपा-बसपा गठबंधन ने इस बार यहां पूर्वी वर्मा को उम्मीदवार बनाया है। जिनके दादा-दादी और पिता दस बार इस सीट का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। बसपा के साथ आने से उनकी दावेदारी और मजबूत दिखती है। वहीं, कांग्रेस ने अपने पुराने चेहरे जफर नकवी को उम्मीदवार बनाया है। 2009 में यहां सांसद रहे जफर 2014 में 1.84 लाख वोट पाकर तीसरे नंबर पर रहे थे। ऐसे में त्रिकोणीय लड़ाई में बेस वोटों की गोलबंदी व उसमें सेंधमारी ही निर्णायक होगी।

प्रमुख उम्मीदवार

भाजपा : अजय कुमार मिश्र टेनी

सपा : डॉ. पूर्वी वर्मा

कांग्रेस : जफर अली नकवी

कुल वोटर : 17.57 लाख।

मिश्रिख

मिश्रिख से भाजपा ने सांसद अंजू बाला का टिकट काट कर अशोक कुमार रावत को मैदान में उतारा है। इस बार भाजपा, गंठबंधन और कांग्रेस नये चेहरे पर दांव लगया है। मुख्य मुकाबला भाजपा के अशोक कुमार रावत और गठबंधन से बसपा के के नीलू सत्यार्थ के बीच नजर आ रहा है। मिश्रिख लोकसभा सीट सुरक्षित सीट है। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की अंजू बाला ने बसपा के अशोक रावत(जो वर्तमान में भाजपा के प्रत्याशी है) को करीब 87 हजार वोट से परास्त किया था। उनको यहां से 4,12,575 वोट मिले थे। दूसरे नंबर पर बसपा के अशोक रावत थे उन्हें 325212 वोट और तीसरे स्थान पर रहे जय प्रकाश को 194759 वोट मिले थे। सीतापुर जिले की इस सुरक्षित सीट पर भाजपा 1996 में रामलहर के बाद 2014 में मोदी लहर में जीत पाई थी। इस बार पार्टी ने मौजूदा सांसद अंजू बाला का टिकट काटकर इस सीट पर पिछले चुनाव में बसपा से दूसरे नंबर पर रहे अशोक रावत को टिकट दिया है। अशोक 2004 और 2009 में इस सीट से बसपा के टिकट पर सांसद भी थे। उन्होंने इस बार पाला बदल दिया है। बसपा ने नीलू सत्यार्थी को मैदान में उतारा है। कांग्रेस ने भाजपा विधायक सुरेश राही की भाभी मंजरी राही को टिकट दिया है। इस सीट पर भी कुर्मी और मुस्लिम वोटरों के अलावा अति पिछड़े वोटर निर्णायक भूमिका निभाते हैं। ऐसे में लड़ाई भाजपा और बसपा के बीच में ही रहने की उम्मीद है।

प्रमुख उम्मीदवार

भाजपा : अशोक कुमार रावत

बसपा : नीलू सत्यार्थी

कांग्रेस : मंजरी राही

कुल वोटर : 17.79 लाख।

उन्नाव

कानपुर से सटे उन्नाव सीट की लड़ाई को कांग्रेस की पूर्व सांसद अनु टंडन त्रिकोणीय बना रही हैं। अनु यहां पर भाजपा और गठबंधन के बीच अपनी मजबूत दावेदारी पेश कर रही हैं। वह 2009 में यहां सांसद चुनी गयी थी। उन्होंने बसपा के अरुण शंकर शुक्ला को तीन लाख वोट के अंतर से हराया था। भाजपा के वर्तमान सांसद साक्षी महाराज अपना टिकट बचाने में सफल रहे। गठबंधन से समाजवादी पार्टी के अरुण शकंर शुक्ला 'अन्ना' उम्मीदवार हैं। 2014 के चुनाव में मोदी लहर में साक्षी महाराज को को 518834 वोट मिले थे। उन्होंने समाजवादी पार्टी के अरुण शंकर शुक्ल को 310173 वोट से हराया था। तीसरे स्थान पर रहे बसपा के बृजेश पाठक को 200176 वोट मिले थे। चौथे स्थान पर कांग्रेस की अनु टंडन थी। उन्हें 197098 वोट प्राप्त हुए थे। उन्नाव सीट सपने दिखाने के साथ ही तोडऩे के लिए जानी जाती है। उन्नाव के ही डोंडियाखेड़ा में शोभन सरकार ने सोने का सपना दिखाया था, जिसकी खोदाई के झांसे में तत्कालीन सरकार भी आ गई थी। फिलहाल भाजपा के टिकट पर साक्षी महाराज दोबारा अपनी नाव उन्नाव में पार करने में लगे हैं। कांग्रेस से 2009 में सांसद रही अनु टंडन उनसे मुकाबिल हैं तो सपा ने पूजा पाल का टिकट काटकर अरुण शंकर शुक्ला उर्फ उन्ना महाराज को उम्मीदवार बनाया है। साक्षी महाराज ने जातीय समीकरण गिनाकर भाजपा को धमकाया था कि उन्हें टिकट नहीं मिला तो पार्टी सीट हार जाएगी। इस सीट पर दलित और ओबीसी वोटों की बहुतायत है। खासकर अति पिछड़ा वोटरों की तादात काफी है। 2014 में साक्षी को सपा-बसपा के कुल वोटरों से 1.21 लाख वोट अधिक मिले थे। उन्हें त्रिकोणीय लड़ाई का भी फायदा मिला था। इस बार भी लड़ाई त्रिकोणीय है। ऐसे में वोटों के बंटवारे में भाजपा की उम्मीद छिपी है।

प्रमुख उम्मीदवार

भाजपा : साक्षी महाराज

सपा : अरुण शंकर शुक्ला

कांग्रेस :अनु टंडन

कुल वोटर : 21.77 लाख।

फर्रुखाबाद

उत्तर प्रदेश की चर्चित फर्रुखाबाद सीट पर भाजपा ने सांसद मुकेश राजपूत पर भरोसा जताया है। कांग्रेस ने यहां एक बार फिर सलमान खुर्शीद को उतारकर इस सीट को हाई प्रोफाइल बना दिया है। गठबधंन की ओर से बसपा के मनोज अग्रवाल मैदान में हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के मुकेश राजपूत ने सपा के रामेश्वर सिंह यादव को मात दी थी। मुकेश राजपूत को 406195 वोट मिले थे। रामेश्वर सिंह यादव को 255693 वोट मिले थे। बसपा के जयवीर सिंह तीसरे स्थान पर थे। चौथे नंबर पर केंद्रीय मंत्री रहे सलमान खुर्शीद को 95543 वोट मिला था। आलू बेल्ट की सीट से समाजवादी विचारक राम मनोहर लोहिया भी जीत चुके हैं। यहां लड़ाई त्रिकोणीय है। भाजपा ने सांसद मुकेश राजपूत का टिकट बरकरार रखा है। पिछली बार इस सीट पर सपा दूसरे नंबर पर थी लेकिन गठबंधन में सीट बसपा के खाते में गई है जिसने मनोज अग्रवाल को टिकट दिया है। कांग्रेस ने अपने दिग्गज नेता सलमान खुर्शीद पर फिर दांव लगाया है। इस सीट पर करीब 16' दलित और 14' मुस्लिम वोटर हैं। राजपूत, लोध व यादव वोटरों की संख्या भी काफी है। ऐसे में कांग्रेस व सपा-बसपा गठबंधन में वोटों के विभाजन का खतरा बना हुआ है।

प्रमुख उम्मीदवार

भाजपा :मुकेश राजपूत

बसपा : मनोज अग्रवाल

कांग्रेस : सलमान खुर्शीद

कुल वोटर :16.88 लाख।

इटावा

समाजवादी पार्टी का गढ़ माने जाने वाले इटावा को बीते चुनाव 2014 में सपा से छीन लिया था। भाजपा ने इस बार सांसद अशोक कुमार दोहरे का टिकट काटकर आगरा से सांसद रमाशंकर कठेरिया को मैदान में उतारा है। टिकट कटने से नाराज सांसद अशोक दोहरे ने कांग्रेस का दामन थामकर इस बार मुकाबला रोमांचक बना दिया। गठबंधन ने समाजवादी पार्टी ने प्रेमदास कठेरिया के बेटे कमलेश को मैदान में उतारा है, तो शिवपाल यादव भी इस सीट पर एसपी के वोट बैंक में सेंध लगाते दिख रहे हैं, जिससे मुकाबला त्रिकोणीय होता जा रहा है। चार वर्ष से बसपा के संभावित उम्मीदवार के रूप में शंभू दयाल दोहरे अपनी जड़ें मजबूत करने में जुटे थे। सीट सपा के खाते में जाने से वो शिवपाल यादव की पार्टी से चुनावी मैदान में उतर गए हैं। 2014 में भाजपा अशोक दोहरे ने सपा के प्रेमदास कठेरिया हराया था। तीसरे नंबर पर बसपा के अजयपाल सिंह जाटव रहे थे। दिलचस्प बात ये है कि इटावा से भाजपा ने जब भी जीत दर्ज तो केंद्र में उसकी सरकार बनी। दलितों की कठेरिया और दोहरे जाति का वोट बंट रहा है। यहां पर तो जाटव बिरादरी सपा-बसपा गठबंधन पर एकजुट है। मुलायम परिवार के गृह जिले की इस सीट पर भाजपा ने 2014 में मोदी लहर में 1999 से चला आ रहा समाजवादी रथ रोक दिया था। कांशीराम भी यहां से सांसद रह चुके हैं। भाजपा से यह सीट वापस पाने के लिए सपा ने पूर्व सांसद प्रेमदास कठेरिया के बेटे कमलेश कठेरिया को उतारा है। 2014 में भाजपा के वोट व सपा-बसपा के कुल वोट लगभग बराबर थे। भाजपा ने मौजूदा सांसद अशोक दोहरे का टिकट काटकर आगरा के सांसद रामशंकर कठेरिया पर दांव लगाया है। वहीं, अशोक दोहरे टिकट कटने पर पाला बदल कांग्रेस के सिंबल पर चुनाव मैदान में आ गए हैं। ऐसे में यह सेंधमारी भाजपा को भारी पड़ सकती है। इस सीट पर राजपूत, यादव और शाक्य समुदाय के वोटरों की काफी भागीदारी है। करीब 7-8' मुस्लिम हैं। भाजपा को जहां राजपूतों और शाक्यों के साथ का भरोसा है, वहीं यादव-मुस्लिम सपा-बसपा गठबंधन की गणित को पुख्ता बना रहे हैं।

प्रमुख उम्मीदवार

भाजपा : रामशंकर कठेरिया

सपा : कमलेश कठेरिया

कांग्रेस : अशोक कुमार दोहरे

कुल वोटर : 17.39 लाख।  

कन्नौज

कन्नौज में गठबंधन की प्रत्याशी समाजवादी पार्टी की सांसद डिंपल यादव का सीधा मुकाबला भाजपा के सुब्रत पाठक से है। सुब्रत के पक्ष में पीएम नरेंद्र मोदी ने शनिवार को सभा भी की थी। साफ है कि कन्नौज की लड़ाई इस बार दिलचस्प होने वाली है। कांग्रेस ने यहां उम्मीदवार नहीं उतरा है। 2014 में डिंपल यादव ने मात्र 19907 वोट से जीत दर्ज की थी। उन्हें 489164 वोट मिले थे। भाजपा के सुब्रत पाठक को 469257 वोट हासिल हुए थे। मुलायम के बाद बेटे अखिलेश और फिर बहू डिंपल यादव इस सीट का प्रतिनिधित्व कर रही हैं। 23 वर्ष से इस सीट पर काबिज सपा 2014 में बड़ी मुश्किल से जीत पाई थी। डिंपल यादव भाजपा के सुब्रत पाठक से महज 19 हजार वोटों से ही चुनाव जीती थीं। यह हाल तब था जब अखिलेश यादव यूपी के सीएम थे। पांचों विधानसभाएं सपा के पास थीं। इस बार पांच में चार विधानसभा भाजपा के पास हैं। सपा के लिए सबसे राहत की स्थिति यहां बसपा का उसके साथ होना है। कुल वोटरों में यादव, दलित व मुस्लिमों की संख्या 40' से अधिक है। सपा-बसपा के इन परंपरागत वोटरों में भाजपा की गहरी पैठ है। पिछली बार बसपा के टिकट पर चुनाव लड़े निर्मल तिवारी भी इस बार भाजपा के पाले में हैं। यहां 20' से अधिक ब्राह्मण-ठाकुर हैं। लोधी, कुशवाहा सहित अति पिछड़े वोटरों की भी अच्छी तादात है। ऐसे में डिंपल की राह इतनी भी सिंपल नहीं है।

प्रमुख उम्मीदवार

सपा : डिंपल यादव

भाजपा :सुब्रत पाठक

कुल वोटर : 18.55 लाख।

कानपुर

कानपुर में लड़ाई कांग्रेस तथा भाजपा की दिख रही है। भाजपा ने कद्दावर नेता मुरली मनोहर जोशी का टिकट काटकर योगी आदित्यनाथ के कैबिनेट मंत्री सत्यदेव पचौरी को मैदान में उतारा है। कांग्रेस के कद्दावर नेता श्रीप्रकाश जयसवाल यहां भाजपा के शहरी वोट बैंक में सेंध लगाकर इस सीट को जीतने की कोशिश में लगे हैं। गठबंधन से समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी रामकुमार मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश तो कर रहे हैं। 2014 में भाजपा के मुरली मनोहर जोशी ने एकतरफा जीत हासिल की थी। उन्हें 474712 वोट मिले थे। दूसरे नंबर पर रहे कांग्रेस श्रीप्रकाश जयसवाल को 251766 वोट मिले थे। पूरब के मैनेचेस्टर को सभी दलों ने निराश किया। यहां मौका कम्युनिस्टों, कांग्रेस व भाजपा सबको मिला। यह जरूर है कि सपा, बसपा यहां कभी खाता नहीं खोल पाई। भाजपा के पूर्व अध्यक्ष और सांसद मुरली मनोहर जोशी के राजनीतिक करियर पर 'विराम'लगा। भाजपा ने योगी सरकार के बुजुर्ग मंत्री सत्यदेव पचौरी पर दांव लगाया है। गठबंधन में सपा की ओर से राम कुमार उम्मीदवार हैं लेकिन जानकार इसे कांग्रेस के लिए फ्रेंडली फाइट का गठबंधन का तोहफा मान रहे हैं। कांग्रेस से यहां तीन बार के सांसद श्रीप्रकाश जायसवाल उम्मीदवार हैं 2004 में नजदीकी मुकाबले में सत्यदेव पचौरी को हरा चुके हैं। फिलहाल यहां भाजपा व कांग्रेस की सीधी लड़ाई है। इस सीट पर ब्राह्मण, बनिया, ठाकुर कुल वोटरों के करीब 35% हैं। इसमें दोनों ही पार्टियों के हिस्सेदारी होने का अनुमान है। कोई मुस्लिम प्रत्याशी न होने के चलते लगभग 15 से 18% मुस्लिम वोटरों को कांग्रेस के पक्ष में जाने का अनुमान है। शहरी सीट में भाजपा की पैठ और मोदी का नाम अब भी टॉनिक का काम रहा है। पार्टी कांग्रेस के यहां के एक दिग्गज चेहरे को भी जल्द अपने पाले में कर समीकरण और दुरुस्त करने जा रही है।

प्रमुख उम्मीदवार

भाजपा : सत्यदेव पचौरी

कांग्रेस : श्री प्रकाश जायसवाल

सपा :राम कुमार

कुल वोटर : 15.97 लाख

अकबरपुर

कानपुर देहात की इस सीट पर भाजपा ने सांसद देवेंद्र सिंह भोले पर ही दाव लगाया है। गठबंधन की ओर से समाजवादी पार्टी की निशा सचान मैदान में हैं। कांग्रेस ने पूर्व मंत्री राजा रामपाल को यहां से उतारा है। यहां मुकाबला त्रिकोणीय होता दिख रहा है। 2014 के चुनाव में भाजपा के देवेंद्र ने बसपा के अनिल शुक्ल वारसी को 278997 वोटों से करारी शिकस्त दी थी। तीसरे नंबर पर समाजवादी पार्टी के लाल सिंह तोमर थे तथा चौथे नंबर पर कांग्रेस के राजाराम पाल थे। कभी बिल्हौर के नाम से जानी जाने वाली सीट 2009 में अकबरपुर बनी थी। 2009 में बसपा छोड़ कांग्रेस में आए राजाराम पाल यहां सांसद बन गए। 2014 में मोदी लहर में उनकी एक न चली। भाजपा के देवेंद्र सिंह भोले लगभग 50 प्रतिशत वोट पाकर सांसद बने और राजाराम पाल चौथे पर चले गए। भाजपा ने फिर भोले पर दांव लगाया है और गठबंधन के उम्मीदवार के तौर पर बसपा के टिकट पर निशा सचान की दावेदारी है। पिछड़े वर्ग के वोटरों की अधिक संख्या होने के चलते कांग्रेस व गठबंधन दोनों ने ही पिछड़ों पर दांव लगाया है। शिवपाल यादव की प्रसपा ने कानपुर ग्रामीण के सपा जिलाध्यक्ष रहे महेंद्र सिंह यादव को उम्मीदवार बनाया है। भाजपा ने ठाकुर उम्मीदवार उतारा है जिसकी बिरादरी के करीब डेढ़ लाख वोट यहां है। महत्वपूर्ण यह है कि अकबरपुर में तीन लाख से अधिक ब्राह्मण वोटर हैं। इनकी भूमिका निर्णायक होगी। 2014 में बसपा से लड़े अनिल शुक्ला वारिसी को दो लाख से अधिक वोट मिले थे। अनिल शुक्ला सपरिवार भाजपाई हो चुके हैं और पत्नी प्रतिभा शुक्ला भाजपा से विधायक भी हैं।

प्रमुख उम्मीदवार

भाजपा : देवेंद्र सिंह भोले

कांग्रेस : राजाराम पाल

बसपा : निशा सचान

कुल वोटर : 17.30 लाख

जालौन

भाजपा ने यहां से सांसद भानु प्रताप सिंह वर्मा पर भरोसा जताया है। गठबंधन ने बसपा से अजय सिंह मैदान में हैं। इस सीट से कांग्रेस ने पिछले चुनाव में बसपा से नंबर दो पर रहे बृजलाल खाबरी को टिकट देकर लड़ाई को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश तो की है। मुख्य मुकाबला यहां भी भाजपा बनाम गठबंधन ही दिख रहा है। 2014 में भाजपा के भानु प्रताप सिंह वर्मा ने बसपा के ब्रजलाल खाबरी को पौने तीन लाख मतों से मात दी थी। यहां भाजपा को सपा-बसपा के कुल मत से ज्यादा मिले थे। चौथे चरण की इकलौती सुरक्षित सीट थी, जिस पर भाजपा ने मौजूदा सांसद का टिकट बदलना नहीं है। भानु प्रताप सिंह वर्मा के लिए बदले राजनीतिक समीकरण के चलते इस बार जीत आसान नहीं है। 2014 में भाजपा के भानु प्रताप को 548631 तथा बसपा के बृजलाल को 261429 वोट मिले थे। तीसरे नंबर पर सपा के घनश्याम अनुरागी थे। कांग्रेस के विजय चौधरी चौथे स्थान पर थे। बुंदलेखंड की इस सीट पर भाजपा के मौजूदा सांसद भानु प्रताप सिंह वर्मा पर फिर कमल खिलाने की जिम्मेदारी है। वैसे भाजपा के पुराने चेहरे भानु इस सीट से चार बार सांसद रह चुके हैं। गठबंधन ने बसपा के पूर्व विधायक अजय सिंह पंकज को उम्मीदवार बनाया है। बसपा-सपा गठबंधन की मुश्किल पूर्व बसपाई ब्रजलाल खाबरी बढ़ा रहे हैं। पिछली बार दूसरे नंबर पर रहे खाबरी इस सीट पर 1999 में सांसद भी थे लेकिन इस बार वह कांग्रेस के टिकट से चुनाव लड़ रहे हैं। सुरक्षित सीट पर सवर्ण मतदाताओं की संख्या करीब 5 लाख है, जबकि अति पिछड़े वोटर भी प्रभावी हैं। इस सीट पर करीब 50' वोट पाने वाली भाजपा इस बार भी जीत की उम्मीद संजोए हुए हैं।

प्रमुख उम्मीदवार

भाजपा : भानु प्रताप वर्मा

बसपा : अजय सिंह पंकज

कांग्रेस : ब्रजलाल खाबरी

कुल वोटर : 19.17 लाख

झांसी

केंद्रीय मंत्री उमा भारती के चुनाव न लडऩे के बाद भाजपा ने यहां से प्रख्यात बैद्यनाथ ग्रुप के अनुराग शर्मा पर दांव लगाया है। गठबंधन ने सपा के सीपी सिंह की जगह इस बार श्याम सुंदर सिंह यादव को मैदान में उतारा है। कांग्रेस ने भी अपने पुराने चेहरे पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रदीप जैन आदित्य की बजाय शिव सरन कुशवाहा को मैदान में उतरा है। इस सीट पर सभी पार्टियों ने नए चेहरों पर दांव लगाया है। 2014 में भाजपा की उमा भारती ने 575889 वोट हासिल किये थे। सपा के चंद्रपाल सिंह यादव को 385422 वोट मिले। बसपा की अनुराधा शर्मा तीसरे स्थान पर थीं। पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रदीप जैन चौथे स्थान पर रहे। बुंदेलों की धरती पर इस बार भी जंग दिलचस्प है। केंद्रीय मंत्री उमा भारती के मना करने के बाद भाजपा ने पूर्व सांसद विश्वनाथ शर्मा के बेटे अनुराग शर्मा को टिकट दिया है। गठबंधन में यह सीट सपा के पास है और उसने पूर्व एमएलसी श्याम सुंदर यादव को उम्मीदवार बनाया है। यहां से उनके धुरे विरोधियों में शुमार राज्यसभा सांसद चंद्रपाल सिंह यादव दावेदार थे। यहां सपा को आंतरिक घमासान का नुकसान उठाना पड़ सकता है। चंद्रपाल ने उमा भारती के खिलाफ 3.80 लाख वोट हासिल किए थे। पिछली बार बसपा से चुनाव लड़कर 2.13 लाख वोट पाने वाली अनुराधा शर्मा भी भाजपा प्रत्याशी के नामांकन में दिख रही हैं। कांग्रेस ने यह सीट गठबंधन में बाबू सिंह कुशवाहा की जनाधिकार पार्टी को दी है। कुशवाहा ने भाई शिवशरण कुशवाहा को टिकट दिया है। इस सीट पर ब्राह्मण, दलित, लोध, कुशवाहा व यादव वोटरों की अच्छी संख्या है। यादव-दलितों का फायदा गठबंधन को मिल सकता है। कांग्रेस भी कुशवाहा वोटों में सेंधमारी करेगी।

प्रमुख उम्मीदवार

भाजपा : अनुराग शर्मा

सपा : श्यामसुंदर सिंह यादव

कांग्रेस गठबंधन : शिवशरण कुशवाहा

कुल वोटर :20.15 लाख।

हमीरपुर

भाजपा ने हमीरपुर से सांसद कुवंर पुष्पेन्द्र सिंह चहल पर दांव लगाया है। गठबंधन की ओर से बसपा के टिकट पर दिलीप सिंह मैदान में हैं। कांग्रेस ने अपने पुराने चेहरे प्रीतम सिंह लोधी को ही मैदान में उतारा है। 2014 में कुंवर पुष्पेन्द्र सिंह को 453884 वोट मिले थे। सपा के बिशम्भर प्रसाद निषाद को 187096 वोट मिले थे। बसपा के राकेश कुमार गोस्वामी तीसरे व कांग्रेस के प्रीतम सिंह लोधी चौथे स्थान पर थे। बुंदेलखंड की सीट पर यमुना-बेतवा का संगम है। भाजपा से फिर सांसद पुष्पेंद्र सिंह चंदेल की उम्मीदवारी है जबकि बसपा ने सियासी लिहाज से एकदम नए चेहरे दिलीप सिंह पर दांव लगाया है। कांग्रेस से एक बार फिर प्रीतम सिंह लोधी मैदान में है। भाजपा को पिछली बार सपा-बसपा के कुल वोटों से भी 90 हजार वोट अधिक मिले थे। यहां के बड़े चेहरे चाहे वह गंगाचरण राजपूत हों या बसपा से सांसद रहे अशोक सिंह चंदेल हो सब भाजपा के खाते में हैं। सपा- बसपा का स्वाभाविक जातीय समीकरण भाजपा के लिए मुश्किलें बढ़ा रहा है।

प्रमुख उम्मीदवार

भाजपा : पुष्पेंद्र सिंह चंदेल

बसपा : दिलीप सिंह

कांग्रेस : प्रीतम सिंह लोधी

कुल वोटर : 17.38 लाख।

हरदोई

कद्दावर नेता नरेश अग्रवाल के दम पर भाजपा ने सांसद अंशुल वर्मा का टिकट काटकर जय प्रकाश रावत पर दांव लगया है। जय प्रकाश रावत 2014 में मिश्रिख से समाजवादी पार्टी के टिकट पर मैदान में थे। गठबंधन से समाजवादी पार्टी की उषा वर्मा यहां से उम्मीदवार हैं। कांग्रेस वीरेंद्र कुमार को मैदान में उतारा है। 2014 से इस बार तस्वीर अलग है। सांसद अंशुल वर्मा के समाजवादी पार्टी में शामिल होने के बाद सपा इस सीट पर मजबूत दावा कर रही है। 2014 के चुनाव में अंशुल वर्मा भाजपा के उम्मीदवार के तौर पर 360501 वोट पाए थे। बसपा के शिव प्रसाद वर्मा को 279158 वोट मिले थे। तीसरे नंबर पर सपा की उषा वर्मा तथा चौथे स्थान पर कांग्रेस के सर्वेश कुमार थे। इस सुरक्षित सीट पर लड़े कोई पर दांव पर कई पार्टियों से होकर भाजपा में आए नरेश अग्रवाल की ही प्रतिष्ठा रहती है। भाजपा ने अपने मौजूदा सांसद अंशुल वर्मा का टिकट काटकर नरेश के करीबी जयप्रकाश रावत को उम्मीदवार बनाया है। जयप्रकाश यहां दो बार भाजपा के और 1999 में नरेश अग्रवाल की लोकतांत्रिक कांग्रेस से सांसद रह चुके हैं। सपा उम्मीदवार ऊषा वर्मा भी यहां से तीन बार सांसद रही हैं और पिछली बार 2.76 लाख वोट पाकर तीसरे नंबर पर रही थी। इस बार बसपा का तो साथ है ही, भाजपा के मौजूदा सांसद अंशुल वर्मा भी सपा में आ चुके हैं। वहीं, कांग्रेस ने पूर्व विधायक वीरेंद्र वर्मा को टिकट दिया है। वह बसपा, सपा होते हुए टिकट मिलने के एक दिन पहले ही कांग्रेस पहुंचे हैं। ऐसे में यह सीट दल-बदलुओं की प्रयोगशाला भी है। फिलहाल इस सुरक्षित सीट पर ब्राह्मण, ओबीसी व मुस्लिम वोटरों की तादात अच्छी है। यही कारण है कि नरेश अग्रवाल के बोल लगातार सांप्रदायिक हैं जिससे ध्रुवीकरण की जमीन बनाई जा सके।

प्रमुख उम्मीदवार

भाजपा : जय प्रकाश रावत

सपा : ऊषा वर्मा

कांग्रेस : वीरेंद्र वर्मा

कुल वोटर : 17.94 लाख। 


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