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बालाकोट स्ट्राइक के बाद बॉर्डर पर रहने वालों के लिए बदला सियासी पैमाना

लोकसभा चुनाव के पहले चरण से पहले जागरण डॉट कॉम ने आरएसपुरा सेक्टर में जीरो लाइन पर बसे सुचेतगढ़ चंगिया त्रेवा और अरनिया में चुनावी माहौल का जायजा लिया और लोगों से बात की।

By Rajat SinghEdited By: Published: Mon, 08 Apr 2019 02:49 PM (IST)Updated: Mon, 08 Apr 2019 04:56 PM (IST)
बालाकोट स्ट्राइक के बाद बॉर्डर पर रहने वालों के लिए बदला सियासी पैमाना
बालाकोट स्ट्राइक के बाद बॉर्डर पर रहने वालों के लिए बदला सियासी पैमाना

नई दिल्ली, जेएनएन। बालाकोट एयरस्ट्राइक के बाद सीमा पर रहने वाले लोगों के लिए सियासी पैमाना बदल गया है। सीमावर्ती इलाके के कुछ लोग जहां भारत की कार्रवाई से खुश दिखे, वहीं कुछ लोगों का कहना है कि बालाकोट स्ट्राइक से विकास के अन्य मुद्दे दब से गए हैं। लोकसभा चुनाव के पहले चरण से पहले जागरण डॉट कॉम ने आरएसपुरा सेक्टर में जीरो लाइन पर बसे सुचेतगढ़, चंगिया, त्रेवा और अरनिया में चुनावी माहौल का जायजा लिया और लोगों से बात की।

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जम्मू की अंतरर्राष्ट्रीय सीमा पर बसे सैकड़ों गांव देश के कई हिस्सों की तरह पहले चरण में 11 अप्रैल को वोट डालेंगे। ऐसे में ये जानना बहुत जरूरी है कि सीमावर्ती गांव के लोग चुनाव और नई सरकार के बारे में क्या सोचते हैं। अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर बसे होने के कारण ये गांव भारत-पाकिस्तान तनाव को करीब से देखते हैं। पुलवामा और बालाकोट की स्ट्राइक के बाद नियंत्रण रेखा और अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर पाकिस्तान लगातार गोलीबारी कर रहा है। यहां बसे करीब डेढ़ लाख लोगों के लिए ये रोज की बात है। यही वो समय है, जब उन्हें बंकर की कमी खास तौर महसूस होती है। बॉर्डर पर बंकर ही लोगों को सुरक्षित रखते हैं। बशर्ते ये उनके घर के बीच हो। कई बार गोलीबारी के बीच भागना भी खतरे से खाली नहीं होता। लेकिन, बॉर्डर पर बंकरों का निर्माण आधा अधूरा सा है। 15 हजार बंकरों में से अभी तक सिर्फ 200 ही बनकर तैयार हो पाए हैं।

आगामी चुनाव में क्या बंकरों की कमी सियासी मुद्दा बन पाएगी, शायद नहीं। मुद्दों की बात करें तो विकास और उससे भी पहले शिक्षा की बात लोगों की जुबान पर आती है। स्थानीय निवासी कुंती देवी कि दो बेटियां हैं। साल में तीन बार उनका परिवार बॉर्डर से भागकर अपने रिश्तेदारों के पास रहने गया। हर साल बच्चों की पढ़ाई में रूकावट आती है।

आरएसपुरा सेक्टर में जीरो लाइन पर बसे सुचेतगढ़, चंगिया, त्रेवा, अरनियां जैसे गांव में पढ़ रहे बच्चों के लिए ये सिर्फ चुनाव नहीं, भविष्य की बात है। बॉर्डर के करीब होने के कारण यहां पर अस्पताल और स्वास्थ्य संबंधी सेवाओं पर खास ध्यान होना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं है। रोजगार के साधन भी यहां सीमित हैं, इसलिए ज्यादातर लोग खेती करते हैं। लेकिन, सीमा पार से होने वाली गोलीबारी में फसल के नष्ट होने का खतरा बना रहता है।

जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं, विभिन्न दलों के नेता प्रचार में लगे हैं। जिन रास्तों से वे आते हैं, वहां सड़कें खस्ताहाल हैं।बेशक चुनाव में सड़क, स्वास्थ्य और विकास मुद्दा है, लेकिन इस बार भारत द्वारा पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों पर की गई कार्रवाई लोगों के लिए चुनाव में एक बड़ा मुद्दा है। हालांकि कई लोग मौजूदा बीजेपी सांसद से नाखुश हैं। 2019 के चुनाव के बारे में पूछने पर कई लोगों को ये भी नहीं मालूम कि जम्मू-पुंछ लोकसभा सीट से पार्टियों के कौन उम्मीदवार मैदान में हैं। लेकिन, इनमें से कई पाकिस्तान से सख्ती से निपटने की बात पर बिल्कुल स्पष्ट हैं।

ऐसा नहीं है कि विकास के मुद्दे, सुरक्षित बंकर्स, शिक्षा संस्थानों की कमी और सरकारी योजनाओं की धीमी गति इस चुनाव के मुद्दे नहीं हैं। लेकिन, बालाकोट की स्ट्राइक ने रुख थोड़ा बदल दिया है, और ये मुद्दे दबकर रह गए हैं।

लोकसभा चुनाव को लेकर जम्मू-पुंछ इलाके के सीमावर्ती गांव के लोग क्या सोचते हैं, जानने के लिए देखिए जागरण डॉट कॉम की ये खास ग्राउंड रिपोर्ट - 


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