Move to Jagran APP

Loksabha Election 2019 : पांच वर्षों में कैराना की बदली हवा, गलियों का दूर हुआ सूनापन

लोकसभा 2014 के चुनाव में कैराना में पलायन बड़ा मुद्दा था। वहां से चली हवा का असर चुनावों में नजर आया था। पिछले पांच सालों में लोगों का विश्वास लौटा है गलियों का सूनापन दूर हुआ है।

By Umesh TiwariEdited By: Published: Tue, 12 Mar 2019 09:26 PM (IST)Updated: Wed, 13 Mar 2019 11:22 AM (IST)
Loksabha Election 2019  : पांच वर्षों में कैराना की बदली हवा, गलियों का दूर हुआ सूनापन
Loksabha Election 2019 : पांच वर्षों में कैराना की बदली हवा, गलियों का दूर हुआ सूनापन

लखनऊ [जय प्रकाश पांडेय]। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के शामली जिला मुख्यालय से महज 11 किलोमीटर दूर स्थित कैराना में अब रात नौ बजे भी बाजार खुले रहते हैं। चाट की दुकानों पर भीड़ मिलती है तो गद्दियों पर भी लगन का जोर दिखता है। सैफ अली खान की चर्चित फिल्म रेस देखने के लिए मनीष सिनेमाहाल में खासी भीड़ जुटी है, यह सिनेमाहाल अभी तीन-चार माह पूर्व ही दोबारा खुला है। इसके पहले अच्छे खासे चलते इस सिनेमाहाल को बंदकर कैराना छोड़कर जा चुके नीरज अब वापस आ चुके हैं और दोबारा कारोबार में रम गए हैं।

loksabha election banner

पानीपत रोड स्थित अपनी सेनेटरी की दुकान में जमकर बैठे विनीत को देखकर आप अंदाजा ही नहीं लगा सकते कि यह वही शख्स हैं, वर्ष 2014 में जिसके दो भाइयों की नृशंस हत्या कर दी गई थी ...रंगदारी न देने के कारण। घटना के बाद पीडि़त परिवार कैराना छोड़कर चला गया और बरस दर बरस सेनेटरी की उस दुकान पर लटका आधा किलो का ताला माफिया राज का मूक गवाह बना रहा। अंतत: वक्त ने करवट ली और ताला भी खुला, शटर भी उठा। आज विनीत की दुकान का खुला शटर इस बात का गवाह है कि कैराना अब अपनी पुरानी जिंदगी की ओर लौट चला है।

दरअसल, कैराना के ही मशहूर शायर मुजफ्फर रज्मी ने जब,...वो जब्र भी देखा है तारीख की नजरों ने, लम्हों ने खता की थी सदियों ने सजा पाई जैसी झकझोर देने वाली पंक्तियां लिखी थीं तब उन्हें भी नहीं पता था कि उनके इंतकाल के करीब दो-ढाई बरस बाद कैराना दहला देने वाली ऐसी ही कई घटनाओं का मूक गवाह बनेगा। शुरुआत धीरे-धीरे हुई लेकिन, सन 2014 आते-आते साफ हो गया कि कर्ण नगरी कैराना पूरी तरह माफिया और गैंगस्टर की गिरफ्त में आ चुकी है। ऐसे अधिसंख्य लोग वर्ग विशेष से जुड़े थे और उन्हें राजनीतिज्ञों का खुला संरक्षण प्राप्त था। ऐसे में कानून का राज मानो खत्म हो गया था और भयभीत लोग कैराना छोडऩे लगे थे।

हालात इस कदर बदतर हो चुके थे कि कैराना से हो रहे पलायन की तुलना जब कश्मीरी पंडितों से जोड़कर की जाने लगी तब इस देश ने राजनीति का स्याह पक्ष भी महसूसा। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी का शासन था ...और वह तारीख थी 30 मई 2016, जब तत्कालीन सांसद हुकुम सिंह ने मीडिया के सामने यह बात रखी कि कैराना से 346 जबकि कांधला से 63 परिवार पलायन कर चुके हैं। कैराना में उद्योग व व्यापार पूरी तरह चौपट हो गया है। कैराना में अब रंगदारी नया उद्योग बन गया है।

सांसद हुकुम सिंह द्वारा दी गई इस जानकारी ने देश-प्रदेश की राजनीति को नए सिरे से परिभाषित किया। हुकुम सिंह गृहमंत्री राजनाथ सिंह से भी मिले। उसके बाद मानवाधिकार आयोग से लगायत राज्य सरकार, भाजपा व सपा के कई दल कैराना पहुंचे और जांच की। आरोप-प्रत्यारोप के दौर चले। हालात की गंभीरता को समझते हुए भाजपा ने विधानसभा चुनाव-2017 पलायन मुद्दे को आगे कर लड़ा। पलायन एक बड़ा मुद्दा बना और भारतीय जनता पार्टी रिकॉर्ड तोड़ बहुमत से सत्ताधारी पार्टी बनी। इसके बाद माहौल को सहज करने का अभियान चला। सबसे बड़ी चुनौती लोगों का विश्वास कायम करने की थी। लोग बताते हैैं कि दुर्दांत मुकीम काला की धरपकड़ और कई अपराधियों के सफाए के बाद यहां की स्थितियां बदलीं।

कैराना की हवा में अब ठंडक है, सुकून नजर आता है। लोग बताते हैैं कि बीते दिनों के आतंकराज में कैराना के दो पेट्रोल पंप बंद हो गए थे, उसी कैराना में अब पेट्रोल पंप खोलने के लिए दो सौ से ज्यादा लोगों ने विभिन्न पेट्रोल कंपनियों के पास आवेदन भेजा है। एक पेट्रोल पंप तो शुरू भी हो गया है। करोड़ों के सिनेमाहाल को बंद कर कैराना छोड़ जा चुके अंकुर मित्तल अब वापस लौट आए हैं, उन्होंने अब मैरिज हाल खोल लिया है। प्रमुख कारोबारी टीटू के मिष्ठान की मिठास फिर लौट आई है।

व्यापार मंडल के पदाधिकारी संजय सिंह राजपूत ने आतंकराज में अपने मित्र विनोद सिंघल को खोया था। उसके बाद उन्होंने बच्चों को पानीपत भेज दिया लेकिन, खुद कैराना में ही कारोबार कर रहे हैं, दूसरी जगह उन्हें अच्छा ही नहीं लगता। मृत विनोद सिंघल के भाई वरुण कुमार सिंघल की कैराना में ही किराने की दुकान है, वो कहते हैं कि अब कानून का राज है यहां। उन्हें इस बात का मलाल जरूर है कि भाई की हत्या के बाद अखिलेश सरकार ने उनसे राहत संबंधी किया गया वादा नहीं निभाया। कैराना में आतंकराज से भयभीत होकर चले गए सेनेटरी कारोबारी मनीष कंसल भी अब वापस आ गए हैं।

रंगदारी न दे पाने के चलते दो बेटों को महेशचंद ने अपनी आंखों के सामने मरते देखा था, सौगंध ली थी कि कैराना कभी नहीं लौटेंगे, महेशचंद भी अब लौट आए हैं और पूरी तल्लीनता से लोहे के अपने परंपरागत कारोबार में जुटे हैं। ...यहीं मेरे भी प्राण निकलें, बेटों का जिक्र छिडऩे पर फफकते हुए महेशचंद की अब यही अंतिम इच्छा है। ...मनीष कंसल, राजू, शंकर, अंकुर मित्तल, ईश्वर उर्फ बिल्लू व डॉ. आसफा समेत 12 से ज्यादा नाम हैं, जो लौट आए हैं अपने कैराना।

भाजपा शासन मे कैराना समेत पूरे प्रदेश का माहौल सकारात्मक भाव में है। पिताजी के पदचिह्नों पर चलते हुए मैं पीडि़तों की आवाज सदैव उठाती रहूंगी।
-मृगांका सिंह, भाजपा नेता (हुकुम सिंह की पुत्री)

कैराना की गलत तस्वीर पेश की गई, सारे आंकड़े गलत हैं। हर जगह से कुछ लोग बाहर जाते ही हैं कमाने-धमाने के लिए, इसे पलायन कैसे कहेंगे।
-नाहिद हसन, विधायक कैराना, समाजवादी पार्टी

कैराना में आतंकराज हो गया था, लोग पलायन कर रहे थे। अब योगी राज में तस्वीर बदली है। यहां से जा चुके लोग अब लौट रहे हैं।
-चौधरी रामपाल सिंह, समाजसेवी  


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.