Lok Sabha Election 2019 : चुनावी चौपाल : सरकार को वादे याद दिला रहा बेहमई
वैलेंटाइन डे ने जब बाजार और जवानी को जकड़ा नहीं था तब इसी बेहमई ने 14 फरवरी 1981 को वह नरसंहार देखा जब फूलन ने गांव के 21 और तीन बाहरियों को गोलियों से छलनी कर दिया था।
बेहमई [आशुतोष शुक्ल]। एक घर ब्राह्मण का और एक-एक बनिया और नाई के। बाकी गांव ठाकुर और पाल बहुल। सोशल मीडिया की आक्रामक दुनिया से बाहर आकर कृपया भारतीय गांवों का यह समाजशास्त्र समझने का प्रयत्न कीजिये। यह गांव है बेहमई। वही बेहमई जहां फूलन देवी ने कभी 20 लाशें बिछा दी थीं।
वैलेंटाइन डे ने जब बाजार और जवानी को जकड़ा नहीं था, तब इसी बेहमई ने 14 फरवरी, 1981 को वह नरसंहार देखा जब फूलन ने गांव के 21 और तीन बाहरियों को गोलियों से छलनी कर दिया था। चार घायल इलाज के बाद बच गए। मृतकों की याद में एक स्मारक बन गया, एक पत्थर लग गया जहां हत्याकांड की हर बरसी पर फूल चढ़ाए जाते हैं।
बेहमई हम तीन लोग पहुंचे। दैनिक जागरण, कानपुर के संपादकीय प्रभारी नवीन पटेल, छायाकार मुहम्मद आरिफ और मैं। इटावा लोकसभा क्षेत्र में आने वाला बेहमई कानपुर देहात का अंतिम गांव है। उसके बाद यमुना जिसके पार जालौन। इसी गांव में चौपाल लगी। पहले स्कूल के बाहर शिक्षक राकेश कुमार तिवारी ने जुटान कराई और फिर स्मारक पर। स्थानीय सवाल भी थे लेकिन, 38 वर्ष बाद भी सबसे भावनात्मक मुद्दा गोलीकांड ही है। वीरेंद्र सिंह बोले, 'हम खेत से आये हते, लासैं एहीं पड़ी हतीं।' पूर्व प्रधान गांधी सिंह चंदेल मुखर थे। कहने लगे, 'गांव में कोई विवाद नहीं। बस, एक वह दर्द मिल गया।' सेवानिवृत शिक्षक बालमुकुंद तिवारी रोष में थे। बोले, बलात्कार नहीं हुआ था। मीडिया और फिल्म वालों ने तिल का ताड़ बना दिया।' मैंने पूछा, 'फिर गोली क्यों चली'? उत्तर था, 'जातीय वर्चस्व की लड़ाई में।' गांव वाले यह मान रहे थे कि डाकू आते थे। रात में आते, खाना खाते और सुबह निकल जाते। बोले, 'किसकी हिम्मत थी, उन्हें ना करने की।'
बेहमई से काफी पहले ऊंचे-ऊंचे टीले शुरू हो जाते हैं। मिट्टी रंग बदलने लगती है और मकान विरल हो जाते। सिकंदरा, राजपुर से होकर गांव तक हम एक बढ़िया बनी सड़क से पहुंचे थे। गांव में सरकारी योजनाएं भरपूर हैं। योगेंद्र सिंह बताने लगे कि जीरो बैलेंस खाते भी खूब खुले। बिजली है? जवाब मिला गया प्रसाद पाल से, 'बिजली तो जा सरकार में 20 घंटा मिलत है।' चुनाव में जोर किसका है? जातियों की सीमा लांघकर समवेत उत्तर आया, 'मोदी का।' क्यों? 'मुलायम सिंह ने फूलन देवी को टिकट दिया और इसीलिए गांव का वोट तो भाजपा को ही जाता रहा है। बालमुकुंद तिवारी हम लोगों को जबरिया अपने घर ले गए। भरी दुपहरिया दालान में बिछी चारपाई पर एक वृद्धा बैठी थीं। हमें देखा तो उठ बैठीं। हमने नमस्ते की और खेद जताया कि, 'आपको कठिनाई हुई। फौरन प्रेमपगा उत्तर मिला, 'लड़कन से कहीं पुरखन परेसान होत हैं।'
जिस तरह सारा गांव मोदी और बेहमई कांड पर एकमत दिखा, वैसे ही यमुना पर बनने वाले बेहमई पुल को लेकर सामूहिक क्रोध भी था। सुरेश पाल बोले, 'पुल बन जाए तो समझो रामराज आ गया।' यही भावना थी वीरेंद्र सिंह, रामनारायण सिंह व अरुण सिंह की। पुल क्षेत्र की बड़ी मांग है। आजाद बोले, 'पुल न होने के कारण वक्त बेवक्त उस पार जाना हो तो 120 किलोमीटर का चक्कर और दो सौ रुपये लगते हैं।' गोविंद सिंह बताने लगे, 'विधायक मथुरा पाल के निधन के बाद सिकंदरा उपचुनाव में मुख्यमंत्री योगी आए तो उन्होंने राजपुर में कहा था कि पाल के लड़के अजीत जीते तो पुल पर खड़े मिलेंगे पर नए विधायक अजीत पाल तब से लौटकर ही नहीं पहुंचे।
सुरेश पाल कहने लगे, 'पुल बन जाए तो झांसी तक जाने में सुविधा हो जाएगी। पुल के 28 खंभे खड़े हो चुके हैं और अब केवल तीन खंभे बाकी हैं लेकिन, वे नहीं बन पा रहे हैं।' एक परेशानी और भी है। आजाद बताते हैं चार महीने पहले ग्राम्य विकास राज्यमंत्री महेंद्र सिंह गांव आये तो एक ट्यूबवेल का आदेश कर गए थे। ट्यूबवेल तो बना लेकिन, बिजली कनेक्शन नहीं मिला। लिहाजा ट्यूबवेल का बनना न बनना बराबर।
शांत बेहमई सरकारी वादों पर सवाल भी है...!