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लोकसभा चुनाव 2019: वक्त कम और सामने खड़ा है चुनौतियों का पहाड़

सियासतदां के माथों पर उभर रहीं लकीरें कम होने की बजाए बढ़ रही हैं। इसकी वजह ये है कि चुनाव नजदीक आ रहे हैं। लेकिन अभी तक तैयारियां पूरी नहीं हुर्इ है।

By Edited By: Published: Tue, 19 Mar 2019 08:01 PM (IST)Updated: Wed, 20 Mar 2019 07:30 PM (IST)
लोकसभा चुनाव 2019: वक्त कम और सामने खड़ा है चुनौतियों का पहाड़
लोकसभा चुनाव 2019: वक्त कम और सामने खड़ा है चुनौतियों का पहाड़

देहरादून, राज्य ब्यूरो। देवभूमि की फिजां में गुलाबी ठंडक है। इसके साथ ही फाल्गुनी रंग बिखर रहे हैं तो सियासी रंग भी घुलने लगे हैं, मगर सियासतदां के माथों पर उभर रहीं लकीरें कम होने की बजाए बढ़ रही हैं। चिंता की वजह है लोकसभा चुनाव के लिए चुनाव प्रचार। चुनाव प्रक्रिया प्रारंभ हो चुकी है और इसके लिए 25 मार्च अंतिम तिथि है। ऐसे में 11 अप्रैल को होने वाले मतदान से पहले चुनाव प्रचार के लिए सियासी दलों और प्रत्याशियों को महज 16 दिन का वक्त ही मिल रहा है। चिंता सता रही है कि इतनी कम अवधि में सूबे के 7717126 मतदाताओं के दर पर कैसे दस्तक दी जा सकेगी।

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दरअसल, लोकसभा की पांच सीटों वाले उत्तराखंड में लोस चुनाव प्रथम चरण में हो रहे हैं। 11 अप्रैल को होने वाले चुनाव के लिए नामांकन प्रक्रिया 18 मार्च से शुरू हो चुकी है, जो 25 मार्च तक चलेगी। इस बीच 21 मार्च को रंगों-उमंगों का त्योहार होली भी है और राज्यवासी इसके रंग में रंगे हुए हैं। जाहिर है कि यहां चुनाव प्रचार 25 मार्च के बाद ही गति पकड़ेगा। इसके लिए सभी सियासी दलों ने बिसात बिछाई हुई है, मगर चिंता के बादल भी कम होने का नाम नहीं ले रहे। चिंता का कारण है चुनाव प्रचार के लिए समय कम मिलना। 

नामांकन प्रक्रिया पूरी होने के बाद यानी 25 मार्च से चुनाव प्रचार को नौ अप्रैल तक का ही वक्त मिल पाएगा। 16 दिन के इस वक्फे में ही प्रत्याशियों, उनके समर्थकों और सियासी दलों को विषम भूगोल वाले उत्तराखंड में पहाड़ से मैदान तक की डगर नापनी होगी। साफ है कि उनके सामने हर मतदाता की चौखट तक पहुंचने की सबसे बड़ी चुनौती होगी। यही चिंता उन्हें सताए जा रही कि इतनी कम अवधि में यह कैसे हो पाएगा। हालांकि, सियासी दलों ने अपना पैगाम मतदाताओं तक पहुंचाने को रणनीति बनाई हुई है, मगर इतना तय है कि इसके लिए उन्हें खासी मेहनत करनी पड़ेगी।

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